
गर्भावस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमें महिलाओं को अपने होने वाले बच्चे को लेकर कई तरह की चिंताएं होने लगती हैं। लेकिन अभी का कोरोना को जो दौर है, वह ज्यादा चिंता में डालने वाला है। देश में कोरोना के मामले जब तूल पर थे तब कई अस्पतालों से ऐसी खबरें आईं कि गर्भवती महिला को अस्पताल में कोरोना की वजह से भर्ती नहीं किया या पहले कोरोना की जांच अनिवार्य है, तब भर्ती करेंगे। ऐसी सब परेशानियों की वजह से वे औरतें जो गर्भवती थीं या होने वाली हैं उनके मन में बहुत शंकाएं बनने लगीं। हालांकि हम यह जानते हैं कि कोरोना का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है। बेशक वैक्सीनेशन शुरू हो गया हो, लेकिन कोरोना पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है और एक बार फिर से कोरोना का असर बढ़ने लगा है। कोरोना के इस दौर में बड़े से लेकर छोटे तक चिंताग्रस्त हैं। नाउम्मीदी में जी रहे हैं। गर्भवती महिलाओं को यह चिंता रहती है कि कहीं मुझसे मेरे बच्चे को कोरोना न हो जाए। ऐसे संवेदनशील समय में गर्भवती महिलाओं का तनावग्रस्त होना लाजिमी है। गोंडा के जीवनदीप चिकित्सालय एंड आइवीएफ सेंटर में गाइनाकॉलोजिस्ट गुंजन भटनागर का कहना है कि कोरोना के दौर में गर्भवती महिलाओं और वे महिलाएं जिनके 3 या चार माह के बच्चे हैं, को इमोशनल सपोर्ट की जरूरत है। उसके लिए हमें कई स्तरों पर काम करना पड़ेगा।
गर्भवती महिलाओं को ऐसे दें इमोशनल सपोर्ट (Give emotional support to pregnant women by this way)
गर्भवती महिलाओं को इमोशनल सपोर्ट देने के लिए घर, परिवार, ऑफिस और सरकार सभी को मिलकर सपोर्ट करना होगा। एक औरत से ही सृष्टि का निर्माण होगा। इस सृष्टि के निर्माण में हम सभी को मिलकर उसकी मदद करनी होगी। गर्भवती महिलाओं को इमोशनल सपोर्ट देने के लिए हम निम्न तरीकों को अपना सकते हैं।
सरकारें ऐसे कर सकती हैं मदद (Governments can help in this way)
यों तो भारत में पहले ही माओं के के लिए 6 महीने की प्रेग्नेंसी लीव है। लेकिन यह छह महीने एक मां के लिए बहुत कम हो जाते हैं। डॉ. गुंजन भटनागर का कहना है कि वैसे सरकारों ने अस्पतालों में पहले ही सुविधाएं बहुत बेहतर कर रखी हैं। लेकिन चूंकि यह कोरोना महामारी का समय है, इसलिए सरकार को यह सुनिश्चि करना चाहिए कि जिस जगह गर्भवती महिलाओं को जांच के लिए आना होता है उस वार्ड में सामान्य लोगों की ज्यादा भीड़ न हो। वहां सभी ने मास्क पहना हो। गर्भवती महिला को ऑनलाइन डॉक्टर की सुविधा हो। इसके अलावा सरकार अस्पतालों में काउंसलर्स प्रोवाइड करा सकती है।
डॉ. भटनागार का कहना है कि कोरोना होने का जितना खतरा किसी आम नागरिक को रहता है उतना ही प्रेग्नेंट महिला को। लेकिन महिलाएं इसलिए ज्यादा तनाव में रहती हैं कि उनके साथ एक और जिंदगी जुड़ी है। कहीं उनकी लापरवाही की वजह से उनके बच्चे को कोई दिक्कत न हो जाए। डॉ. भटनागर का कहना है कि अभी ऐसे मामले बहुत कम आए हैं जिनमें बच्चा और मां दोनों को कोरोना हो गया हो। ये बात अलग है कि गर्भवती महिलाओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता थोड़ी कम हो जाती है। इस वजह से संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। समस्याओं को हल बताते हुए डॉ. भटनागर ने कहा कि सरकार की मदद से गर्भवती महिलाओं का तनाव बहुत कम हो सकता है। अगर अस्पतालों में काउंसलर्स की संख्या बढाई जाए तो महिलाओं अपनी चिंता उन्हें बता सकती हैं।
डॉ. भटनागर का कहना है कि सरकार चाहे तो अगर सिंगल मदर है तो उनको टैक्स में छूट दे सकती है। तो वहीं, माओं को पैसे ट्रांसफर करके उनके आर्थिक मदद कर सकती है। इसके अलावा अगर किसी गर्भवती महिला पर इएमआई है तो सरकार उसमें राहत दे सकती है। इन उपायों से सरकार गर्भवती महिलाओं का तनाव कम सकती है।
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ऑफिस ऐसे कर सकते हैं मदद (This is how the office can help)
कोरोना के दौर में नौकरी को लेकर अनिश्चितता तो बढ़ी है। यही वजह है कि कर्मचारी ऑफिस की किसी भी दादागीरी पर कुछ कह नहीं पा रहे हैं। ऐसे में काम के घंटे बढ़े हैं। बहुत से कर्मचारियों को छटनी कर दी गई। जिससे हर कर्मचारी के मन में नौकरी को लेकर डर बैठ गया। ऐसे में अगर कोई महिला गर्भवती है तो उसमें अपनी नौकरी सुरक्षित करने को लेकर डर होना लाजिमी है। कहीं नौकरी न चली जाए इसका डर उसे हो सकता है। उससे ज्यादा तनाव उसे ऐसे दौर में ऑफिस जाकर नौकरी करने को होगा। इसलिए ऑफिस के मालिक से गर्भवती महिलाओं को बात करनी चाहिए और अगर उन्हें ऑफिस बुलाया जा रहा है तो वे वर्क फ्रॉम होम की सुविधा मांग सकती हैं।
डॉ. भटनागर का कहना है कि गर्भवती महिलाएं पहले ही कोरोना की वजह से तनाव में हैं, ऐसे में उनका काम करके ऑफिस उनका तनाव कम सकता है। गर्भवती महिला को ऑफिस एक फ्रेंडली एनवायरमेंट दे सकता है। अगर दफ्तर के कर्मचारी खुशमिजाज होंगे तो महिला को तनाव कम होगा। वह अपने मन की बात जो घर पर किसी से नहीं कह पाती वह ऑफिस के लोगों से कह पाएगी। ऑफिस चाहे तो गर्भवती महिलाओं को पेड लीव दे सकता है। इसके अलावा चाइल्ड केयर के लिए पे कर सकता है। हालांकि हमारी व्यवस्था इतना महिला फ्रेंडली नहीं है कि वह महिलाओं को लेकर इतना सोचेगी। लेकिन यह सोचना जरूरी है, अगर मां तनाव में रहेगी तो बच्चे पर इसका गहरा असर पड़ेगा।
घर-परिवार ऐसे कर सकता है मदद (This is how family can help)
सरकार दफ्तर के बाद एक घर ही बचता है जहां सपोर्ट की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है। डॉ. भटनागर का कहना है कि घर के सदस्य गर्भवती महिलाओं को तनाव से दूर रखने और खुशहाल रखने में अहम भूमिका निभाता है। अगर कोई गर्भवती महिला नौकरी भी करती है और घर भी संभालती है तो परिवार घर के काम के बंटवारे में मदद करके उसके तनाव को कम कर सकते हैं। उसकी दवाओं को ख्याल रखकर उसे स्वस्थ रख सकते हैं। महिला को जिन चीजों की जरूरत है उसे वे घर पर ही प्रोवाइड कराके उसका तनाव कम कर सकते हैं।
कोरोना नियमों का रखें ख्याल (Take care of corona protocol)
डॉ. भटनागर ने बताया कि जो महिलाएं प्रेग्नेंट हैं और उन्हें किसी वजह से घर से बाहर जाना पड़ रहा है तो वे कोरोना नियमों का ध्यान रखें।
- -घर से बाहर जाते समय मास्क पहनें
- -भीड़भाड़ वाली जगहों पर न जाएं। दो गज की दूरी का पालन करें।
- -अगर बाहर जा रहे हैं तो सेनिटाइजर साथ लेकर जाएं।
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गर्भवती महिलाएं इन बातों का भी रखें ख्याल (Pregnant women should also take care of these things)
- -हमेशा एक्टिव रहें।
- -ऐसे व्यायाम जो गर्भवती महिलाओं के लिए हैं, उन्हें करें।
- -एंटी ऑक्सीडेंट फूड खाएं। मौसमी फल, हरी सब्जियां खाएं। विटामिन सी के सप्लीमेंट भी ले सकते हैं।
- -अच्छी नींद लें।
एक स्वस्थ मां और बच्चे के लिए जरूरी है कि घर परिवार, सरकार और ऑफिस उसकी मदद करें। कोरोना की वजह से होने वाले तनाव से उसे दूर रखें। जितना हो सके महिलाओं को खुश रखें। व्यक्तिगत तौर पर महिलाओं को समय दें। ऐसे वक्त में होने वाले इमोशनल इंबैलेंस को महसूस करें। उनके मन की बात जानने का प्रयास करें। कुलमिलाकर अगर आप महिला फ्रेंडली वातावरण देंगे तो मां और बच्चा दोनों स्वस्थ होंगे।
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