OMH HealthCare Heroes Awards: रामकृष्ण ने महामारी में घर से 1500 Km दूर रहकर की संक्रमितों की सेवा

रामकृष्ण ने 1,500 किलोमीटर की यात्रा कर कोविड-19 के लिए अपनी सेवाओं की पेशकश की। कारण जानने के लिए पढ़िए पूरा लेख।
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OMH HealthCare Heroes Awards: रामकृष्ण ने महामारी में घर से 1500 Km दूर रहकर की संक्रमितों की सेवा


Category : Beyond the call of Duty

वोट नाव

कौन : रामकृष्‍ण
क्या : महामारी में घर से 1500 Km दूर रहकर की संक्रमितों की सेवा।
क्यों : रामकृष्ण ने अपने परिवार से ऊपर अपने कर्तव्य को रख कर समाज के लिए एक उदाहरण दिया है।

असाधारण परिस्थितियों में एक साधारण नागरिक को हीरो कहना न तो गलत होगा और न ही जरूरत से ज्यादा तारीफ ही कहलायेगा। यह माइक्रो बायोलॉजिस्ट अपनी जिंदगी के दिन प्रतिदिन के कार्यों को रोक कर तेलंगना से 1500 किलोमीटर दूर लखनऊ तक आए। वो भी सिर्फ इसलिए ताकि वह इस महामारी में अपना कुछ योगदान दे पाएं। 

ओनली माय हेल्थ का हेल्थ केयर हीरो अवॉर्ड इंडिया के कोविड हीरो़ज़ को सलाम करता है। हमने बड़े ध्यान से उन लोगो की कहानियों को चुना है, जिन्होंने महामारी के दौरान लोगो की मदद की है। हम आप से यह कहानियां पढ़ने के लिए आग्रह करते हैं और जिस कहानी ने आप को सबसे अधिक प्रभावित किया हो उसके लिए वोट दें। यह कहानी तेलंगाना के निवासी रामकृष्ण की है जोकि इस अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किए गए हैं।

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रामकृष्ण ने अपने परिवार से ऊपर अपने कर्तव्य को रख कर समाज के लिए एक उदाहरण दिया है एक मिसाल कायम की है। लखनऊ के माइक्रो बायोलॉजी डिपार्टमेंट के इस पी.एच.डी स्कॉलर ने वायरस के सैंपल्स को टेस्ट करने की जिम्मेदारी ली। वे कहते हैं कि यह मौका स्वयं को साबित करने का था। यह पहली बार नहीं था जब वह मुझे एक आउटब्रेक के दौरान काम करना पड़ रहा है, एईएस, जिका व डेंगू आउटब्रेक के दौरान भी उन्होंने काम किया थे।  उनके चिंतित माता पिता, तेजी से फैलने वाला संक्रमण व जान का खतरा, कुछ भी रामकृष्ण को अपनी ड्यूटी निभाने से नहीं रोक पाया। 

रामकृष्ण को इस जंग में खड़े होने के लिए किस चीज ने उकसाया? 

जब रामकृष्ण के डिपार्टमेंट के हेड ने लखनऊ से उन्हें फोन किया तो वह अपने गांव में थे। उनके पास लखनऊ में करने के लिए कोई प्रोजेक्ट नहीं था और उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह लखनऊ रह पाएं। वह धान का खेत में अपने माता पिता की मदद कर रहे थे और अपनी कुछ थीसिस पर कार्य कर रहे थे। 21 मार्च को डॉक्टर अमिता जैन ने उन्हें वायरस के सैंपल की टेस्टिंग के लिए, मदद करने के लिए बुलाया। इस समय रामकृष्ण के दिमाग में एक बार भी यह नहीं आया कि अब उनको क्या करना चाहिए? उनको तो ऐसा लगा, मानो किसी सिपाही को अपने देश की रक्षा करने के लिए बॉर्डर पर बुलाया गया हो। वह लखनऊ जाने के लिए तैयार थे। लेकिन उनके मां बाप इतनी आसानी से उन्हें भेजने वालों में से नहीं थे। 

रामकृष्ण कहते हैं कि यदि किसी की भलाई करने के लिए झूठ बोला जाए तो वह झूठ नहीं होता है। रामकृष्ण ने बोला कि वह हैदराबाद अपने मित्र के घर कुछ थीसिस से सम्बन्धित कार्य करने जा रहे हैं। वह इस के लिए मान गए परन्तु उन्हें पता नहीं था कि वह 1500 किलोमीटर दूर का सफर तय करने जा रहे हैं।

रोड ब्लॉक व जनता कर्फ्यू 

फोन आने के एक घंटे बाद ही रामकृष्ण ने अपना बैग पैक किया और जाने के लिए तैयार हो गए। एक दिन के बाद वह हैदराबाद पहुंचे। परंतु यह वह दिन था जब जनता कर्फ्यू लागू हुआ था। यह रामकृष्ण के सफर का अंत बन सकता था। परंतु वह इतनी जल्दी हार मानने वालो में से नहीं थे। अगले ही दिन 23 मार्च को वह हैदराबाद के एयरपोर्ट पर पहुंच गए। विभिन्न प्राधिकारियों ने उन्हें वहीं से वापिस लौट जाने को बोला। परंतु रामकृष्ण ने अपने जाने के बारे में उन्हें बताया और कुछ पुलिस वालों ने उनकी मदद भी की। अंत में वह लखनऊ जाने वाली फ्लाइट में पहुंच ही गए।

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स्वार्थ रहित कार्य 

लखनऊ पहुंचने के बाद रामकृष्ण ने दूसरे डॉक्टर व वैज्ञानिकों को ज्वाइन किया और बिना थके हुए दिन रात सैंपल्स की टेस्टिंग में जुट गए। रामकृष्ण उस विभाग में शामिल थे जो वायरस के सैंपल्स को फ़रवरी से जांच कर रहे थे। प्रियंका वाड्रा ने उनके काम की तारीफ करते हुए एक ट्वीट में कहा कि, "वह इस काम के लिए ऐसे आगे आए हैं जैसे एक सिपाही अपने देश की रक्षा के लिए आता है!" 

रामकृष्ण की यह कहानी जज्बाती व सशक्त है। यदि इस कहानी ने आप को जरा सा भी छुआ है तो आप रामकृष्ण के लिए वोट अवश्य करें। हेल्थकेयर हीरोज़ अवार्ड्स या जागरण न्यू मीडिया के माध्यम से आप राम कृष्ण को अपना वोट दे सकते हैं।

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