मनुष्य शरीर में पानी के कम हो जाने की अवस्था को डीहाइड्रेशन कहते हैं। वैज्ञानिक भाषा में डीहाइड्रेशन को हाइपोहाइड्रैशन कहते हैं। शरीर में पानी की कमी के कारण शरीर से खनिज पदार्थ जैसे कि नमक और शक्कर कम हो जाते हैं। डीहाइड्रेशन के दौरान, शरीर की कोशिकाओं से पानी सूखता रहता है जिसके कारण शरीर के कार्य करने का संतुलन असामान्य हो जाता है।
पानी शरीर के लिए बेहद आवश्यक होता है, यह शरीर से विषैले पदार्थ निकालता है, शरीर की त्वचा को स्वस्थ रखता है, पाचन प्रक्रिया में सहायक होता है और शरीर के जोड़ों और आँखों के लिए भी फायदेमंद होता है। शरीर में पानी की कमी के कारण मध्यम या गंभीर समस्या भी उजागर हो सकती है।
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डिहाइड्रेशन से भी बचाता है
शरीर में पसीने के लगातार आते रहने से शरीर का पानी कम होता रहता है। गर्मियों में डीहाइड्रेशन का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। बुखार, उल्टी, दस्त के कारण भी शरीर में डीहाइड्रेशन हो सकता है। डीहाइड्रेशन का शिकार किसी भी उम्र का व्यक्ति हो सकता है और इसका कोई ठोस कारण भी नहीं होती है। बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़ों तक में यह शिकायत हो सकती है।
हर साल हजारों रोगी बेवजह किडनी की बीमारी से होने वाले रोगों के कारण मर रहे हैं। मगर, इन मौतों को बिना पैसे खर्च किए रोका जा सकता है। इसका इलाज है सिर्फ एक ग्लास पानी। जी हां, डिहाइड्रेशन के कारण हर साल करीब 13 हजार लोग किडनी फेल्योर की एक बीमारी से लड़ते हुए मर जाते हैं।
एक ग्लास पानी है इलाज
एक ग्लास पानी से रोक सकते हैं किडनी की बीमारी को लंदन 11 सितंबर हर साल हजारों रोगी बेवजह किडनी की बीमारी से होने वाले रोगों के कारण मर रहे हैं। मगर, इन मौतों को बिना पैसे खर्च किए रोका जा सकता है। इसका इलाज है सिर्फ एक ग्लास पानी।
पानी की कमी के कारण ऑर्गन फेल्योर होने से हर महीने करीब एक हजार से अधिक लोगों की मौत हो रही है। एनएचएस के सामने एक्यूट किडनी इंज्यूरी सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई है।
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विशेषज्ञों का कहना है कि फ्लूइड की कमी के कारण खून से जहरीले तत्वों को फिल्टर करने की किडनी की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। इसके साथ ही बेकार की चीजों को मूत्र के जरिए पेशाब से बाहर निकालने में भी वह समर्थ नहीं रहती है। जहरीले तत्वों के जमा होने के कारण फैटल किडनी फेल्योर होता है।
इससे बचने वाले रोगियों को किडनी के ट्रांसप्लांट कराने की जरूरत होती है। सिर्फ डॉक्टरों और नर्सों के द्वारा जागरुकता फैलाकर ही इस तरह से होने वाली मौतों को टाला जा सकता है। क्रॉनिक हेल्थ कंसर्न जैसे हृदय संबंधी बीमारियों या डायबिटीज से पीडि़त बुजुर्ग खासतौर पर इसके जोखिम में रहते हैं।
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