डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में अलग व्यवहार करते हैं। उनका शारीरिक विकास देरी से होता है। डाउन सिंड्रोम जिसे ट्राइसोमी 21 के नाम से भी जाना जाता है, एक आनुवांशिक विकार है जो क्रोमोसोम 21 के दोहराव के कारण भी होता है। इस विकार से ग्रस्त बच्चे की चेहरे की विशेषताएं भिन्न प्रकार की होती है। इस समस्या में बौद्धिक अक्षमता और शारीरिक विकास देर से होता है। कई बार यह थायरॉइड या हृदय रोग से भी जुड़ा हो सकता है। इससे पीड़ित बच्चों को सोचने, सीखने-समझने में काफी परेशानी आती है। बच्चा देरी से बोलना शुरू करता है, सुनने में समस्या, इम्यून डेफिशिएंसी, गर्दन के पिछले हिस्से पर अतिरिक्त त्वचा होना, कान की बनावट में समस्या, नाक से सांस न लेकर मुंह से सांस लेना, मोटापा, ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया, हथेलियों और तलवों की त्वचा का मोटा होना, थायरॉयड, दृष्टि विकार जैसी परेशानियां हो सकती हैं।
डाउन सिंड्रोंम में एक्सरसाइज से मिलते हैं ये फायदे
1. मांसपेशियों में ताकत बढ़ती है
एक्सरसाइज की मदद से डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों की मांसपेशियों में ताकत आती है और वह अपने दैनिक काम बिना किसी परेशानी के कर पाते हैं। जैसे सीढ़ियां चढ़ना, कपड़े पहनना और नहाना आदि। रोज एक्सरसाइज करने से उनकी शारीरिक और मानिसक शक्ति भी बढ़ती है और वह आगे बढ़ने को लेकर प्रेरित होते हैं।
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2. बोन डेंसिटी
इस समस्या में पीड़ित बच्चों की उम्र बढ़ने के साथ उनकी हड्डियों में कमजोरी आने लगती है। जैसे-जैसे उनका शरीर बढ़ता है, वैसे-वैसे बोन डेंसिटी कम होने लगती है। ऐसे में एक्सरसाइज की मदद से इसे ठीक किया जा सकता है और चलने-फिरने में आसानी हो सकती है। एक्सरसाइज करने से बच्चे में आत्मविश्वास भी बढ़ता है और समस्याओं को कम करने में भी मदद मिलती है।
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3. मोटापा की समस्या से निजात
डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों का वजन भी असामान्य ढंग से बढ़ता है। ऐसे में उनके लिए दैनिक काम करना और मुश्किल हो जाता है। मोटापे की वजह से कई अन्य बीमारियां हो सकती है। साथ ही उनका पाचन तंत्र भी खराब हो सकता है लेकिन रोज व्यायाम करने से उनकी सेहत अच्छी रहती है और मोटापा भी कंट्रोल में रहता है। इससे उन्हें बड़े होने पर भी कई लाभ मिल सकते हैं।
4. बेहतर श्वसन क्षमता के लिए
इस समस्या से पीड़ित बच्चों में लाल रक्त कोशिकाओं को अभाव होता है। ऐसे में शरीर को उचित मात्रा में रक्त की आपूर्ति नहीं हो पाती है और शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है और सांस लेने में बहुत परेशानी होती है। लेकिन व्यायाम की मदद से आप बच्चे की श्वसन प्रक्रिया में सुधार ला सकते हैं। एक्सरसाइज करने के दौरान शरीर में अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है और कई परेशानियों से बचा जा सकता है।
5. हृदय स्वास्थ्य
सामान्य बच्चों की तुलना में डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे आसानी से थक जाते हैं। ऐसे में शारीरिक गतिविधियों के अभाव में उनकी परेशानी बढ़ सकती है लेकिन नियमित व्यायाम करने से हृदय गति में सुधार होता है और दिल की बीमारियों को भी ठीक करने में मदद मिलती है। इससे कोलेस्ट्रोल या अन्य समस्याओं में भी छुटकारा मिलता है।
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डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे करें ये एक्सरसाइज
1. चलना या टहलना
डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे के लिए सबसे आसान एक्सरसाइज का तरीका है चलना या टहलना। इसके लिए पेरेंट्स अपने बच्चे को चलने या टहलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। चलने से मांसपेशियों में खिंचाव आता है और ये मजबूत होते हैं। साथ ही इससे मोटापा भी कम हो सकता है। पहले उन्हें 5 मिनट चलने के लिए प्रोत्साहित करें और फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाएं।
2. बैलेंस एक्सरसाइज
डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को संतुलन बनाने में काफी परेशानी आती है। ऐसे में आप उन्हें हॉप्सकॉच या बैलेंस बीम पर चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसके अलावा आप बच्चे को मार्शल आर्ट्स या डांस करने के लिए भी उत्साहित कर सकते हैं। इससे उनके स्वास्थ्य को कई लाभ मिलते हैं।
3. ध्यान या मेडिटेशन
ध्यान या मेडिटेशन की मदद से भी डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों को काफी आराम मिलता है। इससे वह ग्रुप में भी कर सकते हैं। साथ ही इससे सांस की समस्या और फोकस करने में भी आसानी होती है। इसके लिए आप उन्हें पहले 2 मिनट के लिए ध्यान करने को कहें और फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाने को कहें।
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4. तैराकी
तैरना एक कला के साथ-साथ सर्वोत्तम व्यायाम भी है। इससे मांसपेशियों का विकास होता है और श्वसन दर भी सही रहती है। कार्डियोवैस्कुलर व्यायाम पूरे शरीर को स्वस्थ और हृदय समस्याओं के इलाज में कारगर साबित हो सकता है। हालांकि आप बच्चे को ये एक्सरसाइज ट्रेनर की देखरेख में ही कराने की कोशिश करें।
5. जॉगिंग करना
अगर बच्चा फिजिकली थोड़ा एक्टिव है, तो आप उन्हें जॉगिंग करने या जंप करने के लिए कह सकते हैं। जैसे-जैसे उनकी शारीरिक गतिविधियां बढ़ती जाएगी, उनके लिए अपने दैनिक कार्य करना और आत्मनिर्भर बनना आसान हो जाएगा। साथ ही इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है और वह खुश रहते हैं।
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