
खाने में और निगलने में परेशानी एसोफैगल कैंसर की ओर इशारा कर सकता है। आइए एक्सपर्ट से जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
एसोफैगल कैंसर (Esophageal cancer) यानी खाने की नली में कैंसर एक सामान्य कैंसर है, जो पुरुषों को महिलाओं की तुलना में अधिक होता है। इस कैंसर को कई लोग ग्रसिका कैंसर, आहार नली कैंसर के नाम से जानते हैं। अगर समय पर इसका इलाज नहीं किया गया, तो पीड़ित मरीज को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है और इसके साथ-साथ यह उनके मृत्यु का कारण बन सकता है। इस बारे में मनीपाल हॉस्पिटल के गैस्ट्रोलॉजिस्ट डॉक्टर कुणाल दास का कहना है कि एसोफैगल कैंसर हमारी खानी की नली में होने वाला कैंसर है, इसके शुरुआती स्टेज में व्यक्ति को सॉलिड चीजें खाने में परेशानी होती है और धीरे-धीरे यह परेशानी काफी ज्यादा बढ़ जाती है, जिसके बाद मरीज को दलिया जैसी लिक्विड चीजें भी निगलने में परेशानी का सामना करना पड़ता है और मरीज का लाइफ सिर्फ पानी पर सीमित रह जाता है। ऐसे में अगर आपको खाने पीने में किसी तरह की परेशानी हो, तो तुरंत डॉक्टर्स से संपर्क करें। उन्होंने कहा कि अधिकतर मामले ऐसी स्थिति पर सामने आते हैं, जब व्यक्ति के गले में कुछ फंस जाता है और वह डॉक्टर के पास आते हैं। इस स्थिति में बीमारी का डायग्नोस करने पर पता चलता है कि उन्हे एसोफैगल कैंसर (Esophageal cancer) है। ऐसी स्थित मरीज के लिए गंभीर हो सकती है।
डॉक्टर कुणाल दास ने बताया कि एसोफैगल कैंसर 50 की उम्र से ऊपर के लोगों को होने का खतरा ज्यादा रहता है। इसका मतलब यह नहीं है कि यह कैंसर कम उम्र के लोगों को नहीं हो सकता है। आधुनिक लाइफस्टाइल और धूम्रपान का सेवन अधिक करने के कारण कम उम्र के लोगों को भी खाने की नली का कैंसर हो रहा है। इसके अलावा कुछ लोगों को एसिडिटी की शिकायत काफी ज्यादा होने लगती है। एसिडिटी की समस्या अधिक होना एसोफैगल कैंसर की निशानी हो सकती है। इसलिए एसिडिटी जैसी परेशानी को भी इग्नोर ना करें। लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर्स के पास जाएं और एसोफैगल कैंसर (Esophageal cancer) से बचाव के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं।
खाने की नली में कैंसर का प्रकार (Esophageal Cancer Types)
डॉक्टर कुणाल दास बताते हैं कि खाने की नली का कैंसर (Esophageal cancer) को मुख्य रूप से दो भागों में वर्गीकृत किया गया है।
स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (Squamous cell carcinoma)
डॉ. कुणाल दास बताते हैं कि पहले के समय में भारत के व्यक्ति स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा कैंसर से अधिक ग्रसित होते थे। स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा में ग्रास नली का ऊपरी और मध्य हिस्सा सबसे अधिक प्रभावित होता है। इस कैंसर की शुरुआत ग्रासनली के अस्तर को बनाने वाली फ्लैट, पतली कोशिकाओं (Squamous cell) में शुरू होता है।
एडेनोकार्सिनोमा (Adenocarcinoma)
डॉक्टर बताते हैं कि स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा की तुलना में एडेनोकार्सिनोमा कैंसर भारत के व्यक्तियों को अधिक होने लगा है। इसका कारण बदलती लाइफस्टाइल है। इसमें ग्रासनली का निचला हिस्सा अधिक प्रभावित होता है।
खाने की नली में कैंसर के चरण (Stages of Esophageal Cancer)
डॉक्टर कुणाल दास बताते हैं कि खाने की नली के कैंसर को चार भागों में बांटा गया है, जिसमें से 3 स्टेज तक इस कैंसर का इलाज करना संभव है। स्टेज-4 तक आते-आते मरीज की हालत काफी गंभीर हो जाती है। ऐसे में उनके लाइफ की क्वालिटी बढ़ाना संभव है, लेकिन मरीज को बचाया जा सकता है। ऐसा कहना संभव नहीं है।
स्टेज- I: इस स्टेज में कैंसर सिर्फ आहार नली की परतों पर पाई जाने वाली कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं।
स्टेज- II : इस स्टेज में कैंसर की कोशिकाएं आहार नली की बाहरी दीवार तक फ़ैल चुकी होती हैं। इसके साथ ही कैंसर आसपास के 1 से 2 लिम्फ नोड्स तक भी फैल सकता है।
स्टेज- III: इस स्टेज में कैंसर की कोशिकाएं आंतरिक मांसपेशियों की परत या संयोजी ऊतक (connective tissue) की दीवारों पर गहराई से फैल चुकी होती हैं। इस स्टेज तक आते-आते कैंसर के सेल्स अधिकांश लिम्फ नोड्स तक फैल चुके होते हैं।
स्टेज – IV : इस स्टेज तक आते-आते कैंसर के सेल्स पेट के लगभग सभी अंगों को प्रभावित करते हैं। यह आहार नली के साथ-साथ लिम्फ नोड्स तक पूरी तरह से फैल चुका होता है।
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खाने की नली के कैंसर के लक्षण (Esophageal Cancer Symptoms)
- खाने में परेशानी (सोलिड खाने में परेशानी, लेकिन लिक्विड चीजें खाने में परेशानी नहीं है।)
- अनियमित रूप से वजन में कमी आना
- एसिडिटी की शिकायत होना
- खट्टी डकार आना
- उल्टी होना।
- खाने को निगलने में परेशानी होना।
- सीने में जलन (heartburn)
- सीने में दर्द होना
- निगलने में परेशानी
- गले के आसपास दर्द होना।
- पेट में अचानक तेज दर्द होना।
- पुरानी खांसी दोबारा उठना
- थकान महसूस होना
- अत्यधिक हिचकी आना
खाने की नली के कैंसर का कारण (Esophageal Cancer Causes)
डॉक्टर कुणाल दास बताते हैं कि हमारी कुछ आदतों और स्थितियों के कारण खाने की नली में कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है।
- शराब का सेवन
- धूम्रपान
- बैरेट एसोफैगस (Barrett’s esophagus) (इस स्थिति में खाने की नली का अस्तर नष्ट होने लगता है, जिसमें एसिडिटी की समस्या ज्यादा होती है।)
- अधिक वजन होना
- गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (gastroesophageal reflux disease)
- पर्याप्त रूप से संपूर्ण आहार ना लेना। (फल और सब्जियां कम खाना)
- एकैल्शिया (achalasia) की समस्या होना (इस स्थिति में ग्रासनली और पेट के मध्य का हिस्सा पेशी वाल्व सही से कार्य करना बंद कर देता है।)
खाने की नली के कैंसर की जांच – Esophageal Cancer Diagnosis in Hindi
एंडोस्कोपी (endoscopy) – डॉक्टर कुणाल बताते हैं कि फ्लेक्सिवक ट्यूब की मदद से एंडोस्कोपी की जाती है। यह एक लचीली ट्यूब है, जिसके एक सिरे में कैमरा होता है और पहला सिरा मरीज के मुंह में डाला जाता है। डॉक्टर कुणाल दास बताते हैं कि सिर्फ 2 से 3 मिनट के अंदर एंडोस्कोपी की जाती है। एंडोस्कोपी के बाद मरीज नॉर्मल दिनों की तरह ही कार्य कर सकता है। ऐसे में मरीजों को एंडोस्कोपी जांच से घबराना नहीं चाहिए। बहुत से ऐसे मामले हैं, जिसमें मरीज एंडोस्कोपी कराने से डरते हैं। यह एक बहुत ही साधारण टेस्ट है और इससे आपको घबराने की जरूरत नहीं होती है।
बायोप्सी (biopsy) – यह परीक्षण कैंसर का प्रकार जानने के लिए किया जाता है। इसमें डॉक्टर ट्यूमर का साइज पता लगाने के लिए मरीज को यह जांच लिखते हैं, जिसमें एंडोस्कोपी की मदद से कैंसर के सेल्स का छोटा टुकड़ा लिया जाता है और इसका इग्जामिन किया जाता है।
सीटी (CT) - स्कैनिंग परीक्षण की मदद से कैंसर का स्टेज और इसकी गंभीरता का पता लगाने की कोशिश की जाती है। इस टेस्ट से मरीज यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि मरीज का कौन-कौन सा एरिया प्रभावित हुआ है।
PET CT (Positron Emission Tomography) - इसमें मरीज को इंजेक्शन दिया जाता है। यह टेस्ट कैंसर का स्टेज जानने के लिए किया जाता है। इसी के आधार पर डॉक्टर ट्रीटमेंट शुरू करते हैं।
डॉक्टर कुणाल बताते हैं कि इन टेस्ट के अलावा पहले के समय में बैरीयम टेस्ट किया जाता था, जिसका चलन धीरे-धीरे समाप्त हो गया है।
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खाने की नली में कैंसर का इलाज (Treatment of Esophageal Cancer)
डॉक्टर कुणाल बताते हैं कि शुरुआत के स्टेज 3 तक भोजन नली के कैंसर का इलाज संभव है। शुरुआती स्टेज में डॉक्टर सर्जरी की सिफारिश करते हैं। सर्जरी के साथ-साथ पिछले 5 सालों में कीमोथेरेपी और रेडियएशन थेरेपी काफी विकसित हो चुकी है। इससे मरीज का इलाज पुरी तरह से किया जा सकता है, जिसके बाद मरीज को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है। डॉक्टर बताते हैं कि सर्जरी दो तरीकों से की जाती है एक रोबोट और लेप्टस्कोपी द्वारा।
इसके अलावा डॉक्टर कुणाल बताते हैं कि एडवांस स्टेज वाले रोगियों के लिए Palliative Therapy का सहारा लिया जाता है, जिसमें मरीज को मेटालिक सेम्स (Metallic SEMS) लगाया जाता है। ताकि मरीज की औसतन बची हुई 6 महीने से 1 साल की लाइफ क्वालिटी बढ़ाई जा सके।
खाने की नली के कैंसर से बचाव (Prevention of Esophageal Cancer)
- धूम्रपान न करें।
- तम्बाकू के सेवन से दूर रहें।
- नियमित रूप से एक्सरसाइज करें।
- डाइट में फल और सब्जियों का सेवन करें।
- अपने वजन को कंट्रोल करें।
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