गर्भावधि मधुमेह का भ्रूण पर प्रभाव

मधुमेह गर्भवती महिलाओं को हो जाए तो इसका असर बच्‍चे पर मां से ज्‍यादा होता है, जानिए डायबिटीज कैसे भ्रूण को प्रभावित करता है।
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गर्भावधि मधुमेह का भ्रूण पर प्रभाव


यूं तो डायबिटीज एक खतरनाक बीमारी है, लेकिन यदि मधुमेह गर्भवती महिलाओं को हो जाए तो इसका असर बच्‍चे पर मां से ज्‍यादा होता है। यदि मां प्रेग्‍नेंट होने से पहले या गर्भवती होने के बाद मधुमेह की चपेट में आ गई है तो इसका असर गर्भ में पल रहे बच्‍चे पर भी पड़ सकता है।

गर्भावस्‍था के दौरान मधुमेह
गर्भधारण करने से पहले महिला यदि टाइप1 या टाइप2 मधुमेह से ग्रस्‍त है या फिर गर्भावस्‍था के दौरान गर्भावधि मधुमेह की चपेट में आ गई है तो इसका असर गर्भ में पल रहे बच्‍चे के स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ता है। इतना ही नहीं यदि गर्भावस्‍था के दौरान मधुमेह नियं‍त्रण में नहीं है तो भ्रूण के लिए भी जोखिम पैदा कर सकता है। आइए हम आपको इसके बारे में विस्‍तार से जानकारी देते हैं।

 

 

डायबिटीज का भ्रूण पर प्रभाव

 

मैक्रोसोमिया

वर्जीनिया हेल्‍थ सिस्‍टम के एक शोध के अनुसार, यदि गर्भवती महिला मधुमेह से पीडि़त है तो बच्‍चे को मैक्रोसोमिया का खतरा ज्‍यादा होता है। मैक्रोसोमिया ऐसी स्थिति है जिसमें बच्‍चे का वजन सामान्‍य से ज्‍यादा होता है। उसकी लंबाई भी ज्‍यादा हो सकती है। ग्‍लूकोज ज्‍यादा मात्रा में बनने के कारण यह स्थिति आती है। इतना ही नही शरीर में इंसुलिन का स्‍तर बढ़ाने के लिए और ग्‍लूकोज की कमी को पूरा करने के लिए भ्रूण अलग अग्‍नाशय बनाता है। मां के शरीर में ग्‍लूकोज की ज्‍यादा मात्रा और बच्‍चे के शरीर में ज्‍यादा इंसुलिन होने के परिणाम स्‍वरूप बच्‍चे के शरीर में वसा की मात्रा ज्‍यादा हो जाती है और बच्‍चा समान्‍य की तुलना में बड़ा हो जाता है।

हाइपोग्‍लाइसीमिया

गर्भावस्‍था के दौरान अनियंत्रित मधुमेह के कारण बच्‍चा हाइपोग्‍लाइसीमिया के साथ पैदा होता है। ऐसी स्‍िथति इंसुलिन का स्‍तर बढ़ने के कारण होती है। मां के खून में शुगर की मात्रा ज्‍यादा होने से ऐसा होता है। इस अवस्‍था के साथ जब बच्‍चा पैदा होता है तो उसे जरूरत से ज्‍यादा इंसुलिन की आवश्‍यकता होती है, जिसकी पूर्ति के लिए बच्‍चे का शरीर अधिक मात्रा में इंसुलिन का निर्माण करता है।

मेटाबॉलिक समस्याएं

बच्‍चा पैदा होने के बाद कुछ मेटाबॉलिक संबंधी समस्‍याओं से ग्रस्‍त हो सकता है। मेटाबॉलिक समस्‍यायें जैसे - पीलियाग्रस्‍त होने की ज्‍यादा संभावनायें होती हैं, ऐसा इसके शरीर में कैल्शियम और मैग्‍नीशियम की कमी के कारण होता है। वर्जीनिया के मेडिकल डिवीजन स्‍कूल ऑफ मैटर्नल फेटल मेडिसिन के अनुसार टाइप1 मधुमेह ग्रस्‍त मां से जन्‍मे बच्‍चे को मधुमेह होने की संभावना 5 प्रतिशत हो सकती है।

 

 

जन्‍मजात दोष

गर्भधारण करने से पहले जो महिलायें टाइप1 या टाइप2 मधुमेह से ग्रस्‍त होती हैं उनसे जन्‍म लेने वाले बच्‍चे को कई प्रकार के जन्‍मजात दोष हो सकते हैं, ऐसा गर्भ के दौरान सही तरह से ऑक्‍सीजन की आपूर्ति न हो पाने के कारण होती है। जन्‍म लेने के बाद बच्‍चे को सांस लेने में दिक्‍कत हो सकती है। बाद में बच्‍चे को रीढ़ और दिल से संबंधित समस्‍या होने का खतरा बढ़ जाता है।

मृत प्रसव

गर्भावस्‍था के दौरान मधुमेह से ग्रसित महिलाओं में स्टिलबर्थ यानी मृत प्रसव होने की आशंका बहुत कम होती है, लेकिन इस स्थिति से बिलकुल नकारा नही जा सकता। ऐसा उन महिलाओं में ज्‍याद होता है जो गर्भधारण करने से पहले टाइप1 और टाइप2 मधुमेह से ग्रस्‍त होती हैं। उच्‍च रक्‍त शर्करा के कारण गर्भनाल की रक्‍त वाहिनियां क्षतिग्रस्‍त हो सकती हैं, गर्भनाल के जरिये ही बच्‍चे को ऑक्‍सीजन और पोषण मिलता है। यदि बच्‍चे को गर्भ में पर्याप्‍त आक्‍सीजन न मिले तो मृत प्रसव की  आशंका बढ़ जाती है।


उपर्युक्‍त बात से ऐसा साबित नहीं हुआ है कि मधुमेह ग्रस्‍त महिलायें स्‍वस्‍‍थ बच्‍चे को जन्‍म नही दे सकतीं। लेकिन यदि डायबिटिक महिलायें गर्भधारण करने से पहले डायबिटीज को नियंत्रण में रखें और चिकित्‍सक से नियमित परामर्श लेती रहें तो प्रसव के बाद बच्‍चा स्‍वस्‍थ पैदा होगा।

 

 

 

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