कोरिओनिक विलस सैंपलिंग टेस्ट को प्रेगनेंसी के दौरान गर्भस्थ शिशु की सेहत का पता लगाने के लिए किया जाता है। इससे प्रेगनेंसी की शुरूआत में ही फीटस की समस्याओं का पता लगा लिया जाता है। कोरिओनिक विलस सैंपलिंग की बात करें तो उससे रिस्क 46 क्रोमोसोम्स पाए जाते हैं, ये 23 के पेयर में पाए जाते हैं। किसी भी तरह की असामनता नजर आने पर आप डॉक्टर आपको आगे का इलाज बताएंगे। इस लेख में हम कोरिओनिक विलस सैंपलिंग के बारे में जानेंगे। इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने लखनऊ के केयर इंस्टिट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज की एमडी फिजिशियन डॉ सीमा यादव से बात की।
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क्या इस टेस्ट से पहले किसी तैयारी की जरूरत होती है?
नहीं, इस टेस्ट को करने के लिए किसी तरह के कोई टेस्ट करने की जरूरत नहीं है। टेस्ट के दौरान आपका ब्लैडर पूरी तरह से भरा हुआ होना चाहिए इसलिए आपको टेस्ट से कुछ घंटे पहले खूब सारा पानी पीने के लिए कहा जाता है। कोरिओनिक विलस सैंपलिंग की मदद से फीटल में कई समस्याओं के बारे में पता लगाया जाता है जैसे कई बच्चे को किसी तरह की कोई आनुवंशिक समस्या (genetic disorders) तो नहीं है जैसे सिस्टिक फाइब्रोसिस, डाउन सिंड्रोम आदि। सैंपल को गर्भाशय ग्रीवा की मदद से लिया जाता है।
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कोरिओनिक विलस सैंपलिंग कैसे की जाती है? (Steps of chorionic villus sampling test)
- कोरिओनिक विलस सैंपलिंग की बात करें तो इसके लिए मरीज के पेट पर जेल लगाया जाता है।
- इसके बाद ट्रांसड्यूसर मशीन की मदद से रेज को अंदर भेजा जाता है।
- अब रिफ्लेक्टेड रेज की मदद से तस्वीरें बनाई जाती हैं ताकि डॉक्टर ये पता लगा सकें सैंपल कहां से लेना है।
- सुई या कैथिटर की मदद से कोरिओनिक विलस सैंपल को पेट और यूट्रस के रास्ते से निकाला जाता है। ये पहला तरीका है।
- दूसरे तरीके की बात करें तो सर्विक्स से कोरिओनिक विलस सैंपल लिया जाता है और इसमें डॉक्टर सही पोजिशन देखकर सैंपल निकालते हैं।
कोरिओनिक विलस सैंपलिंग टेस्ट के फायदे (Benefits of chorionic villus sampling test)
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अगर माता-पिता या परिवार में किसी को बीमारी है तो आपको बच्चे का ये सीवीएस टेस्ट जरूर करवाना चाहिए। कोरिओनिक विलस सैंपलिंग टेस्ट, गर्भस्थ शिशु की अच्छी सेहत सुनिश्चित करते हैं इस टेस्ट को करवाने के कई फायदे हैं जैसे-
- अगर आपकी उम्र 35 साल से ज्यादा है तो भी आपको बच्चे की सेहत सुनिश्चित करने के लिए इस टेस्ट को करवाना चाहिए।
- इस टेस्ट को करवाने से जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाया जा सकता है।
- अगर गर्भस्थ शिशु को खून से जुड़ी कोई बीमारी है तो आप उसका पता भी कोरिओनिक विलस सैंपलिंग टेस्ट के जरिए लगा सकते हैं।
- गर्भस्थ शिशु को मानसिक रोग हैं तो उसे प्रेगनेंसी की स्टेज (stgaes of pregnancy) पर ही खत्म किया जाए इसके लिए इस टेस्ट को करवाने की जरूरत पड़ती है।
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कोरिओनिक विलस सैंपलिंग के नुकसान (Side effects of chorionic villus sampling test)
कोरिओनिक विलस सैंपलिंंप के कुछ नुकसान भी हैं जिनके बारे में आप जान लें-
- कोरिओनिक विलस सैंपलिंग से गर्भस्थ शिशु की कुछ ब्लड वैसल्स गर्भवती महिला के ब्लडस्ट्रीम में प्रवेश कर सकती हैं।
- अगर महिला आरएच नेगेटिव है और आरएच पॉजिटिव रक्त के प्रति एंटीबॉडी विकसित नहीं करती है तो उसे आरएच इम्यून ग्लोब्युलिन नाम का रक्त उत्पाद इंजेक्ट किया जाएगा।
- कोरिओनिक विलस सैंपलिंग टेस्ट के बुरे प्रभाव की बात करें तो इससे गर्भाशय में इंफेक्शन की समस्या हो सकता है उसकी आशंका बहुत कम होती है।
- सीवीएस टेस्ट की मदद से न्यूरल ट्यूब डिसऑर्डर का पता नहीं लगाया जा सकता।
- जोखिम की चिंता उस समय ज्यादा होती है जब ये टेस्ट प्रेगनेंसी के 10वे वीक से पहले किया जाता है।
सीवीएस के रिजल्ट पूरी तरह से सही नहीं हो सकते, पर इससे बीमारी का पता लगाया जा सकता है। सीवीएस टेस्ट करवाने के बाद भी आपको अन्य टेस्ट जैसे एमनियोसेंटेसिस करवाना पड़ सकता है।
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