यदि आप दिल्ली में या फिर उसके आस-पास के इलाके में रहते हैं तो यह खबर आपके लिए हैं। एक अध्ययन से यह बात सामने आई है कि दिल्ली की आबोहवा दिन ब दिन जहरीली होती जा रही है। इस स्टडी को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) द्वारा किया गया है।
अध्ययन के मुताबिक राजधानी के वायुमण्डल में कैंसर को बढ़ावा देने वाले रासायनिक कण बढ़ते जा रहे हैं। यहां की हवा में कॉपर, मैग्नीज, निकेल, कैडमियम और लेड के कण मिले हैं। ये सभी सांस के माध्यम से शरीर के अंदर पहुंच कर कैंसर जैसी घातक बीमारी का कारण बन सकते हैं।
अध्ययन ने सरकार के इको फ्रेंडली वातावरण तैयार करने के दांवे की पोल खोल दी है। दिल्ली सरकार लाख कोशिशों के बाद भी अपने इको फ्रेंडली मिशन में कामयाब नहीं हो पा रही है। अध्ययन कर्ताओं ने इन कणों के असर को देखने के लिए रिसर्च में 18 से 45 साल के लोगों को शामिल किया।
शोध करने वाले राजेश कुशवाहा ने एक समाचार चैनल को बताया कि अगर दस सालों तक रोजाना आठ घंटे पीएम10 कणों के संपर्क में रहा जाए तो एक लाख में से 182 लोग बहुत कम उम्र में अपनी जान गंवा सकते हैं। पीए2.5 कणों के संपर्क में रहने से यह आंकड़ा 217 तक पहुंच सकता है।
कैंसर और हार्ट की बीमारियां पीएम 2.5 के संपर्क में आने से 4780 प्रति लाख और पीएम 10 के संपर्क में आने से 4230 प्रति लाख की दर से बढ़ जाएंगी। इस स्टडी के लिए यूजीसी की तरफ से स्पॉन्सर किया गया था और इसे पर्यावरण मंत्रालय ने भी सपोर्ट किया था।
हाल ही में इस स्टडी को नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेज ने प्रकाशित किया है। रिसर्च में पांच जगह हौज खास, धौला कुआं, जेएनयू के आसपास का इलाका, ओखला और एनसीआर के कौशांबी क्षेत्र को शामिल किया गया था। यहां से 15 सैंपल लिए गए थे। इन सैंपल के आधार पर ओखला को सबसे ज्यादा प्रदूषित और जेएनयू सबसे कम प्रदूषित पाया गया।
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