क्या कोई रिश्ता महज इसलिए टिक सकता है कि पार्टनर खूबसूरत है या वह इसलिए खत्म हो सकता है कि पार्टनर सुंदर नहीं है? शादी तय करते हुए भले ही सुंदरता को देखा जाता हो लेकिन दांपत्य जीवन की सफलता कई अन्य बातों पर निर्भर करती है।
आकर्षण क्या है
आकर्षण को कई तरह से परिभाषित किया जाता है। कुछ लोग इसके लिए बायोलॉजी का सहारा लेते हैं, कुछ वैचारिक-भावनात्मक समानता को महत्व देते हैं तो कुछ का मानना है कि आमतौर पर लोग पार्टनर में उन गुणों की तलाश करते हैं, जो उनमें नहीं होते। बायोलॉजिकल थ्योरी कहती है कि प्रकृति (हॉर्मोन्स या प्रेम की भावना) पार्टनर के चयन में काम करती है, जबकि व्यावहारिक धारणा कहती है कि भविष्य में कौन साथी बनेगा, इसके बीज काफी हद तक बचपन में पड़ जाते हैं।लोग पार्टनर में वे गुण देखना चाहते हैं, जो अपने पेरेंट्स में पाते हैं। लड़कियों के लिए पिता आदर्श होते हैं तो लड़के भी अपनी मां से प्रभावित रहते हैं। कई बार बिना किसी अट्रैक्शन के भी शादियां चल जाती हैं तो इनके पीछे कई सामाजिक-आर्थिक और नैतिक आधार होते हैं।
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मिसमैच्ड कुछ नहीं होता
कई दंपती सोशल सर्कल में मेड फॉर ईच अदर या परफेक्ट कपल माने जाते हैं, जबकि दूसरी ओर कुछ दंपतियों को मिसमैच्ड जैसा टैग दे दिया जाता है। मिसमैच्ड है क्या? मिसमैच्ड जैसी कोई अवधारणा नहीं होती। पार्टनर्स का एक-दूसरे से संपर्क, संवाद और एक-दूसरे के प्रति स्वीकार्यता ही वे तत्व हैं, जिनके आधार पर शादियां टिकती हैं। आमतौर पर कुछ समय साथ बिताने के बाद ही पति-पत्नी का रीअल सेल्फ एक-दूसरे के सामने आ पाता है। कानूनी पहलू पर भी देखें तो तलाक लेने से पहले पति-पत्नी को कुछ समय दिया जाता है ताकि वे सोचें-समझें और अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें। जब कोई अपने पार्टनर को मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक या आर्थिक आधार पर न स्वीकार कर सके, उस स्थिति में मिसमैच्ड का कॉन्सेप्ट काम करता है।
खूबसूरती आंखों में है
एक पहलू यह भी है कि प्यार में डूबे कपल्स की आंखें एक-दूसरे में गुण ही तलाशती हैं। वास्तविक जीवन में कथित रूप से मिसमैच्ड कपल्स कम नजर आते हैं क्योंकि हर व्यक्ति अपने लिए बेस्ट पार्टनर तलाशता है। चेहरे के आधार पर किसी की परख नहीं की जा सकती। हां अगर आपका पति काबिल और गुणी होने के साथ साथ स्मार्ट भी है तो ये तमाम गुणों में से एक गुण होता है।
मैट्रिमोनियल साइट
एक मैट्रिमोनियल साइट द्वारा कुछ वर्ष पूर्व कराए गए सर्वे में 33 फीसदी पुरुषों और 43 प्रतिशत स्त्रियों ने कहा कि उन्होंने ऐसे व्यक्ति से प्रेम या शादी की, जिसके प्रति शुरुआत में वे आकर्षित नहीं थे मगर बाद में उनके बीच आकर्षण पनप गया। यह आत्म-स्वीकृति उसी कहावत को चरितार्थ करती है कि खूबसूरती देखने वाले की आंखों में होती है।
परिभाषाएं बदलती भी हैं
भारतीय समाज के संदर्भ में देखें तो पति की तुलना में पत्नी का सुंदर होना एक हद तक यहां स्वीकार्य है। परंपरागत सोच कहती है कि पुरुष की कमाई और स्त्री का लावण्य अधिक महत्वपूर्ण है। पिछले वर्ष साइकोलॉजिकल साइंस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, आकर्षक व्यक्तित्व रिश्ते में संतुष्टि की गारंटी नहीं हैं। पति-पत्नी दोनों सुंदर हों, तो भी उनके रिश्तों में दरार पड़ सकती है। सलेब्रिटीज की टूटती शादियां इसका सबसे सही उदाहरण हैं। दूसरी ओर आकर्षण की परिभाषा भी उम्र के अलग-अलग पड़ावों पर बदलती है। पहले प्रेमी या प्रेमिका का चेहरा पसंद होता है, बाद में उसके भीतर छिपा मां या पिता का चेहा।। जरूरत इसकी है कि खूबसूरती और आकर्षण के प्रति अपना नजरिया बदला जाए।
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