इन प्राकृतिक तरीकों से करें बच्‍चों की देखभाल, दादी-नानी भी करती थी ऐसा

शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली वयस्कों की तुलना में कफी कमजोर होती है। इसलिए उसे संक्रमण का खतरा भी ज्‍यादा होता है। ऐसे में शिशु को खास देखभाल की जरूरत होती है। देखभाल के लिए परंपरागत तरीके सबसे बेहतर रहते हैं। इस लेख में जानें शिशु की देखभाल के परंपरागत तरीके।
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इन प्राकृतिक तरीकों से करें बच्‍चों की देखभाल, दादी-नानी भी करती थी ऐसा


बिना हाथ धोए शिशु को कतई नहीं छूना चाहिए। पहले के समय में घर के बड़े-बुजुर्ग इस बात का खास ख्‍याल रखते थे कि मां व शिशु को किसी तरह का कोई संक्रमण न हो। इसके लिए मां व शिशु को एक साफ सुथरे कमरे में रखा जाता था। वहां हर कोई नहीं जा सकता था। उस कमरे की  साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता था। कोई भी परिवार का सदस्य वहां बिना हाथ पैर धोए नहीं जा सकता था साथ ही उसे अपने चप्पल या जूते कमरे के बाहर ही उतारने होते थे। यह सारी सावधानियां शिशु व मां को होने वाले संक्रमण से बचाती थीं। आज के समय में भी आप इन नुस्खों को अपनाकर बच्चे को संक्रमण से बचाया जा सकता है।

 

संक्रमण से करें बचाव 

जिस कमरे में मां व शिशु को रहना हो वो कमरा मच्छरों व कीड़े मकौड़े रहित होना चाहिए। उस कमरे में सफाई रखने के लिए सुबह शाम कीटनाशक मिलाकर पोंछा मारना चाहिए जिससे शिशु को किसी तरह का संक्रमण नहीं हो सके। साथ ही जो लोग बाहर से आते हैं उन्हें बिना हाथ धोए शिशु को नहीं छूने देना चाहिए। बाहर से आने वाले लोगों पर ना जाने कितने कीटाणु होते हैं। ऐसे में शिशु को संक्रमण हो सकता है।

मालिश है जरूरी 

शिशु की हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए मालिश जरूरी है। इससे शिशु की थकान दूर होती है और उसके अंगों की गतिविधियां भी बढ़ती हैं। शिशु के साथ मां की भी मालिश जरूरी है। प्रसव के बाद मां के शरीर को मालिश की काफी जरूरत होती है। इससे उसके शरीर का दर्द दूर होता है।

शिशुओं का पोषण

प्रसव के बाद जल्द से जल्द शिशु को स्‍तनपान शुरू करा दिया जाना चाहिए। कोलोस्‍ट्रम पीला गाढा दूध जो प्रसव के बाद के पहले कुछ दिनों में स्‍तनों में आता है, उसे शिशु को दिया जाना बेहद जरूरी होता है।  पहले छः महिनों की आयु के दौरान केवल माता का दूध ही दें। कुछ महिनों के बाद माता के दुध के अलावा अन्य पूरक भोजन देना शुरू कर सकते हैं।

मां का भोजन भी संतुलित हो

जन्‍म के बाद के पहले छ: महीने तक शिशु को मां का दूध ही दिया जाता है इसलिए मां जो भी खाना खाती है उसका असर बच्चे के पाचन पर भी होता है। इसलिए मां को अपने भोजन का खास खयाल रखना चाहिए और ज्यादा तला भुना व मसालेदार खाना नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा जिन चीजों से पेट खराब होने की संभावना हो उनसे तो बिल्कुल दूर रहना चाहिए। ऐसे समय में मां को दूध, दही, दाल, हरी सब्जियां, फलों आदि को अपने आहार में शामिल करना चाहिए।

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सचेत रहें और खतरों को पहचाने

जब शिशु बीमार होता है तो अधिकतर माताएं इसके संकेत पहचान सकती हैं। ऐसी किसी भी स्थिति में शुरूआत में ही चिकित्‍सा सहायता लें, क्‍योंकि नवजात की स्थिति जल्‍दी ही खराब हो जाती है। यदि शिशु में कोई खतरे के चिन्‍ह दिखाई दें तो तत्‍काल उसे डॉक्टर के पास ले जाया जाना चाहिए। सुरक्षा की दृष्टी से शिशु को बहुत सारे लोगों को उठाने न दें और भीड-भाड वाली जगहों पर भी न ले जाएं। अतिसार और खांसी जैसे संक्रमणों से ग्रस्‍त लोगों को भी बच्‍चे को दूर रखना चाहिए।

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