क्या आपने कभी सोचा है कि अरेंज्ड मैरिज की तुलना में लव मैरिज क्यों कामयाब नहीं होती हैं? अगर आप अभी ये सोच रहे हैं कि ये सिर्फ कहने की बात है और लव मैरिज भी कामयाब होती हैं तो हम आपके आत्मविश्वास की कदर करते है। लेकिन बड़े—बुजुर्ग अपने बच्चों को जो लव मैरिज करने से रोकते हैं, उसमें सिर्फ उनकी चिंता ही नहीं होती है बल्कि कई ऐसे फेक्ट भी होते जो शायद वो लोग हमें सही शब्दों में बता नहीं पाते हैं। इसका कारण उनके पास आधी अधूरी जानकारी और सही शब्दों का अभाव हो सकता है। लेकिन बच्चे अपनी मर्जी कर शादी कर लेते हैं जिसके चलते उन्हें भविष्य में बुरे परिणामों का सामना करना पड़त है। इसलिए आज हम आपको कुछ ऐसी सटीक और वैज्ञानिकों की सोच के आधार बातें बता रहे हैं जिससे आपको अपना लाइफ पार्टनर चुनने में या फिर शादी जैसे नाजुक रिश्ते को समझने में काफी मदद मिलेगी।
इतनी अपेक्षाएं क्यों
शोध बताते हैं कि रिश्ते में जितनी कम अपेक्षाएं होंगी, उतनी ही कम निराशा होगी और शादी की सफलता की संभावनाएं उतनी ही बढ़ जाएंगी। फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी (यूएस) में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि ज्य़ादा अपेक्षाएं रिश्ते को नुकसान पहुंचाती हैं। जब कोई यथार्थ को समझे बिना अपेक्षाएं रखता है तो वे पूरी नहीं हो पातीं। इससे निराशा होती है, फिर आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू होता है। अंत में शादी और प्रेम गायब हो जाता है, रह जाती हैं अंतहीन बहसें। हालांकि कुछ रिश्तों में इसका सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलता है पर ऐसा तब होता है, जब दोनों को गलती का एहसास हो और वे खामियों को दूर करने की कोशिश करें। पार्टनर्स की इच्छाएं, सोच, स्किल्स के अलावा उनकी परिस्थितियां भी भिन्न होती हैं। शोध के नतीजों में कहा गया कि हर नवविवाहित जोड़े के दिमाग में पहले ही यह बात साफ होनी चाहिए कि उन्हें शादी से क्या चाहिए। उन्हें अपनी ताकत और कमजोरी की पहचान होनी चाहिए, तभी वे शादी को आगे बढ़ा सकते हैं।
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अंत से शुरुआत
हम फिल्मों के अंत में देखते हैं कि हीरो और हीरोइन खुशी-खुशी साथ रहने लगे। बचपन में पढ़ी गई हर परीकथा का अंत इसी सुखद मोड़ पर होता था। हिंदी फिल्मों को देखें तो वहां प्रेम के लिए होने वाली सभी लड़ाइयां शादी पर आकर खत्म हो जाती हैं, जबकि असल जिंदगी में कहानी 'अंत के बाद' शुरू होती है। कई बार युवा शादी से ज्य़ादा अपेक्षाएं रख लेते हैं, उन्हें लगता है कि शादी उनके हर सवाल का जवाब है या पार्टनर उनकी हर जरूरत पूरी करेगा। जब ऐसा नहीं हो पाता तो उनके ख्वाब दरकने लगते हैं। वे सोचने लगते हैं कि उनसे गलती कहां हुई।
किसी के आदर्शों पर अगर दूसरा खरा न उतर पाए तो इसमें गलती किसकी है? हड़बड़ी में किसी नतीजे पर पहुंचने और पार्टनर को दोषी ठहराने के बजाय एक बार यह भी सोचें कि कहीं आपके आदर्श तो ज्य़ादा ऊंचे नहीं हैं? यूएस की एक यूनिवर्सिटी में युवा लड़के-लड़कियों और दस साल पुरानी शादियों के बीच अपेक्षाओं के बारे में एक तुलनात्मक अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि विवाहित दंपतियों के मुकाबले युवाओं की आकांक्षाएं शादी से कहीं अधिक थीं क्योंकि वे 'अंत में खुशी-खुशी साथ रहने लगे' वाली फैंटसी में जी रहे थे और खुली आंखों से सपनों की एक हसीन दुनिया रच रहे थे।
अपेक्षाओं को करें मैनेज
बड़े-बुजुर्ग कहते रहे हैं कि खुश रहना है तो दूसरों से उम्मीदें न रखें। यह भी जरूरी नहीं कि अपेक्षाएं पूरी होने पर इंसान वाकई खुश हो पाता हो। अगर कोई स्त्री चाहती है कि उसका जीवनसाथी घरेलू कार्यों में मदद करे और ऐसा न हो पाए तो जाहिर है, उसकी उम्मीद टूटती है। दूसरी ओर पार्टनर मददगार हो, तो भी जरूरी नहीं कि वह सचमुच खुश रहे। दरअसल खुशी अप्रत्याशित घटनाओं से ज्य़ादा होती है। जहां उम्मीद न हो और मनचाहा हो जाए, वहां खुशी होती है।
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जैसे, कभी ऑफिस में देर हो जाए, थके-मांदे घर लौट रहे हों, यह सोचते हुए कि घर में जाते ही ढेरों काम करने होंगे, डिनर तैयार करना होगा, मगर घर में जाने पर गर्मागर्म चाय से स्वागत होता है और आपकी थकान मिनटों में दूर हो जाती है। जैसे ही किचन में घुसती हैं, पता चलता है कि डिनर तैयार भी हो चुका। जाहिर है, खुशी दुगनी हो जाएगी क्योंकि ऐसी उम्मीद नहीं की गई थी। हर रिश्ते में थोड़ा व्यावहारिक होना जरूरी है। अगर कोई समस्या बार-बार रिश्तों के आड़े आ रही है तो पार्टनर से नहीं उलझें बल्कि समस्या को सुलझाने के बारे में सोचें। शादी सबसे करीबी रिश्ता जरूर है लेकिन इसमें भी यथार्थवादी रहते हुए ही उम्मीदें रखें ताकि इनके टूटने पर रिश्ता न दरकने लगे।
5 बातें रखें याद
- शादी हर सपने पूरे नहीं कर सकती। अगर शादी में अपने सारे सपनों को पूरा करने के बारे में सोचेंगे तो हमेशा असंतुष्ट रहेंगे। दूसरे के बजाय खुद से अपेक्षाएं रखें और उन्हें पूरा करें।
- शादी अकेलेपन या बोरियत को दूर करने की दवा नहीं है। अगर किसी के भीतर ही अकेलापन है तो कोई दूसरा उसे नहीं मिटा सकता।
- शादी में हमेशा हनीमून पीरियड बना रहेगा, यह अपेक्षा गलत है। हनीमून से लौटते ही वास्तविकता को जितनी जल्दी स्वीकार करेंगे, उतने ही ख्सुखी रह सकेंगे।
- व्यक्ति जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकार करें। उसे बदलने के लिए शादी न करें। अपनी ऊर्जा और समय का बड़ा हिस्सा बर्बाद करने के बाद आप इस हकीकत को समझ जाएंगे कि कोई किसी को बदल नहीं सकता।
- याद रखें, कोर्टशिप पीरियड उस दुलहन की तरह है, जो घूंघट में है और जिसका चेहरा किसी ने नहीं देखा। घूंघट हटाने के बाद ही असलियत सामने आती है। इसलिए हर ख्सुंदर सपने की लगाम अपने दिल के साथ-साथ दिमाग से भी थामे रखें।
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