पीरियड्स के बारे में 71 प्रतिशत महिलाओं को नहीं होती कोई जानकारी, एक्‍सपर्ट से जानें जरूरी तथ्‍य

यूनिवर्सल हेल्‍थ कवरेज का आधार विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का 1948 का संस्थापक सिद्धांत है जो स्वास्थ्य को जाति, आयु और आर्थिक या समाजिक स्थिति के बावजूद एक प्रथम मानव अधिकार के रूप में घोषित करता है। 
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पीरियड्स के बारे में 71 प्रतिशत महिलाओं को नहीं होती कोई जानकारी, एक्‍सपर्ट से जानें जरूरी तथ्‍य

विश्‍व स्‍वस्‍थ्‍य संगठन ने अपने 71वें वर्ष में धरती से कई सारी बीमरियों को मिटाने के लिए लगातार प्रयत्न कर रहा है। इस तरह के कुछ उदाहरण है जैसे चेचक, पोलियो, याज और गिनी कीड़ा। इस साल के अभियान का फोकस वित्तीय कठिनाइयों के बिना हर व्यक्ति को हर जगह यूनिवर्सल हेल्‍थ कवरेज यानी प्रत्‍येक व्‍यक्ति तक स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं प्रदान करना है। 

 

यूनिवर्सल हेल्‍थ कवरेज का आधार विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का 1948 का संस्थापक सिद्धांत है जो स्वास्थ्य को जाति, आयु और आर्थिक या समाजिक स्थिति के बावजूद एक प्रथम मानव अधिकार के रूप में घोषित करता है। हालाँकि, यह अधिकार दुनिया भर में हासिल किया जाना बाकी है। अकेले भारत में, 2016 में देखभाल की खराब गुणवत्ता के कारण लगभग 1.6 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गई और स्वास्थ्य सेवा का उपयोग न करने के कारण लगभग दो गुना संख्या ज्यादा यानी लगभग 3.2 मिलियन की मृत्यु हुई। इसके अलावा, देष में निजी स्वास्थ्य सेवा बेहतर माने जाने के कारण अच्छी चिकित्सा सुविधाओं की लागत बहुत ज्यादा है और इस वजह से यह सबके लिए उपल्ब्ध नहीं है। 

पहले के मुकाबले भारत ग्‍लोबल हेल्‍थकेयर एक्‍सेस एंड क्‍वालि‍टी इंडेक्‍स में अब बेहतर रैंक पर है, 1990 में 153 से 2016 में 145 तक, फिर भी रैंक काफी कम है। हमारा राष्ट्र बांग्लादेश और सुडान जैसे कम विकसित देशों के पीछे स्थित है। 

आइए कुछ मुख्य समस्याओं और इसके संभव समाधानों पर नजर डालते हैं। 

मासिक धर्म स्वास्थ्य

भारत में 355 लाख से अधिक महिलाएं और युवतियां है जिन्हे मासिक धर्म आता है लेकिन इनमें से 71 प्रतिशत को मासिक धर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं है। NGO Dasra के शीर्षक Spot On!की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार मासिक धर्म के बारे में जानकारी न होना एवं मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता का ध्यान न रखने से कुछ बीमारियां होती है जैसे पेरिनेल अंश में खुजली, पेल्विक सुजन बीमारी आदि जो स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो सकती है।

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समाधान

मासिक धर्म के समय पुराने कपड़ो का उपयोग न करें। यह स्वस्थ नहीं है व इसे फिर से इस्तेमाल करना संक्रामक और जानलेवा हो सकता हैं। इस प्रकार, डिस्पोजेवल सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करें और इसे नियमित रूप से बदले। इसके अलावा, हाइजीनिक डिस्पोजिंग ऑफ यूज्ड पैड्स भी बहुत महत्वपूर्ण हैं।

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कुपोषण

द ग्‍लोबल न्‍यूट्रीशन रिपोर्ट 2018 के अनुसार 46.6 मिलियन भारतीय बच्चे पूर्ण विकसित नहीं हो पाते है। साथ ही पूरी दुनिया में, भारतीय बच्चे, कुपोषण व संपूर्ण पौष्टिक आहार न मिलने के कारण सही ढंग से विकसित नहीं हो पाते है। नाइजीरिया 13.9 मिलियन और पाकिस्तान 10.7 मिलियन के साथ पीछे है। महिलाओं में कम बॉडी मास इंडेक्‍स, कम उम्र में लड़कियों का विवाह होना, बच्चों में कुपोषण, खुले में शौच, ये कुछ कारण हैं जो समस्याओं को बढ़ाते है।

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समाधान

इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने 2018 में पोषण अभियान शुरू किया है। इस पहल का लक्ष्य 2018 में कुपोषण को 38.4 प्रतिशत से घटाकर 2022 तक 25 प्रतिशत करना है। मुख्य सोच आहार की गुणवत्‍ता को बढ़ाना है जो कि आवश्‍यक विटामिन और खनिजों को आटे, चावल, नमक, तेल और दूध जैसे खाद्य पदार्थो से जोड़कर प्राप्त की जा सकती है। यह कुपोषण से लड़ने का सबसे अधिक व कम लागत वाला प्राभावी तरीका हैं।

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मोटापा

भारत मे लगभग 30 मिलियन मोटे लोग है, 2016 में प्रकाशित हुई The Lancet की एक रिपोर्ट के अनुसार 2025 तक यह आकड़ा 70 मिलियन हो सकता है। मोटापे से न केवल घुटनों, कूल्हों और पीठ में समस्या पैदा हो सकती है, इसके अलावा किसी भी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप, टाइप 2 मधुमेह, कोरोनरी हृदय रोग आदि जैसे गंभीर बीमारियां भी हो सकती है। इसके दो मुख्य कारण हैं, एक निष्क्रिय जीवनशैली और अस्वस्थ खाने की आदतें।

समाधान

इस तेजी से बढ़ती बीमारी का प्राथमिक समाधान स्वस्थ और सही भोजन करना, नियमित योग करना, तैराकी करना, जिम जाना, एवं पैदल चलना आदि है। इसके अलावा अपने वजन का नियमित रूप से मासिक जांच कराते रहना, अति आवश्‍यक है।

आइए, ऊपर दिए गए सुझावों पर हमारे आसपास के लोगों को शिक्षित करने का प्रयास करे और स्वस्थ जीवन जीने की दिशा में कदम बढ़ाए: 

  • फाइबर युक्त भोजन जैसे फल और हरी सब्जी खाना। 
  • अपने शरीर को पर्याप्त आराम देना
  • पर्याप्त मात्रा में पानी पीना। 
  • पूर्ण शरीर का मेडिकल चेक-अप करवाना, खासकर यदि आपकी उम्र 40 वर्ष और उससे अधिक है। 
  • किसी भी मेडिकल टेस्ट से पहले हर बार इस्तेमाल की जाने वाली सिरिन्ज की जांच करना कि वह नई है। 
  • बाहर से आने के बाद अपने हाथ धोना या सैनिटाइजर का उपयोग करना। 
  • यह सरल और दैनिक दिशानिर्देष है, जिनका सभी को पालन करना चाहिए।

यह लेख, दिल्‍ली आईवीएफ एंड फर्टिलिटी रिसर्च सेंटर की डॉक्‍टर आस्‍था गुप्‍ता (एडवांस्‍ड फर्टिलिटी एंड आईवीएफ कंसल्‍टेंट एंड गायनकोलॉजिस्‍ट) से हुई बाचतीत पर आधारित है। 

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