कहते हैं कि एक लड़की की सबसे अच्छी दोस्त उसकी मां ही होती है। उम्र के अलग-अलग पड़ावों में मां एक सखी बनकर अपनी लाडली को उन सभी बातों के बारे में बताती है, जो उसके आगामी जीवन में सहायक होते हैं। खासतौर से, किशोरावस्था में जब लड़की को पहली बार पीरियड्स होते हैं तो उसके शरीर में कई तरह के शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक परिवर्तन होते हैं। साथ ही अपने शरीर में होने वाले हार्मोन्स परिवर्तन को डील करना उसके लिए कठिन हो जाता है। ऐसे में मां उसे कई तरह की बातें बताती हैं। तो चलिए जानते हैं कि पहले पीरियड्स के बाद लाडली को किन बातों के बारे में बताएं-
करें सहज
दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रंजना शर्मा कहती हैं कि किसी भी लड़की के जीवन में माहवारी की शुरूआत एक बहुत बड़ी बात होती है। चूंकि उन्हें पहले से इसके बारे में पता नहीं होता, इसलिए कुछ लड़कियां ब्लड देखकर डर जाती है तो कुछ को बेहद घबराहट होती है कि उन्हें क्या हो रहा है। कुछ तो आत्मग्लानि, तनावग्रस्त व डिप्रेशन में भी चली जाती है। ऐसे में मां का यह फर्ज बनता है कि वह बेटी को बताएं कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है और हर लड़की एक उम्र के बाद अपने जीवन में इस मासिक प्रक्रिया से गुजरती है।
टॉप स्टोरीज़
बताएं बेसिक बातें
मासिक धर्म के दौरान हाइजीन का ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है, लेकिन पहले मासिक धर्म के दौरान लड़कियों को इस बारे में कुछ ज्यादा पता नहीं होता। ऐसे में हाइजीन का सही तरह से ख्याल न रखने के कारण उन्हें संक्रमण व अन्य बीमारी होने का खतरा काफी हद तक बढ़ जाता है। अगर बात हाइजीन की हो, तो कुछ बातों का ध्यान रखना सबसे ज्यादा आवश्यक है। मसलन, पैड को हर चार से पांच घंटे में अवश्य बदलें। माहवारी के अंतिम दो दिनों में जब रक्त स्त्राव कम होता है, तो लड़कियां एक ही पैड को पूरा दिन इस्तेमाल करती हैं, जिसके कारण प्राइवेट पार्ट में बैक्टीरिया पैदा होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। चूंकि आपकी लाडली स्कूल जाती है, इसलिए उसके बैग में एक अतिरिक्त पैड अवश्य रखें और साथ ही अगर उसे अत्यधिक दर्द हो तो पेनकिलर देने में भी कोई हर्ज नहीं है।
अगर बात हाइजीन की हो सेनेटरी पैड के इस्तेमाल के साथ-साथ उसके डिस्पोजल के बारे में बताना भी बेहद जरूरी है। कुछ लड़कियां उसे टॉयलेट में फ्लश करने की कोशिश करती हैं तो कुछ उसे खुले में छोड़ देती हैं। यह दोनों ही तरीके गलत हैं। जहां पैड्स टॉयलेट में पूरी तरह फलश आउट नहीं होते, वहीं खुले में इन्हें छोड़ने पर इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। बेहतर होगा कि किसी कागज या पुराने अखबार में इन्हें लपेटकर फिर पॉलिथिन में रैपकर डस्टबिन में डाला जाए।
समय में गड़बड़ी
भले ही माहवारी एक मासिक प्रक्रिया है, लेकिन फिर भी लड़कियां अपने मासिक धर्म के समय को लेकर आशंकित ही रहती है। ऐसे में उन्हें बताना जरूरी है कि साधारणतया मासिक धर्म 28 दिन का होता है लेकिन वास्तव में यह 21 से 45 दिनों के बीच कुछ भी हो सकता है। इतना ही नहीं, कुछ लड़कियों को जब मासिक धर्म होता है, तो शुरूआत के कुछ वर्षों तक यह अनियमित होता है लेकिन इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है।
इसे भी पढ़ें: लाइलाज नहीं है ल्यूकोरिया, बचाव और सावधानियां भी दिला सकती हैं रोग से छुटकारा
होते हैं मूड स्विंग्स भी
कुछ लड़कियों में माहवारी आने से पहले ही कुछ बदलाव दिखाई देने लगते हैं, जैसे कि उनके मूड स्विंग्स होना, ब्रेस्ट व प्राइवेट पार्ट में दर्द होना, बिना वजह की थकान, अत्यधिक क्रोध या फिर कुछ भी अच्छा न लगना। इस तरह के बदलावों से घबराना नहीं चाहिए। यह बदलाव शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलावों के कारण होते हैं और खुद ब खुद ठीक हो जाते हैं।
इसे भी पढ़ें: मानसून में औरतों को होता है सिस्टाइटिस रोग का खतरा, ऐसे पहचानें इसके लक्षण
इनका लें सहारा
लाडली को तरह-तरह के मिथ से दूर रखने व बारीकी से इसकी जानकारी देने के लिए किसी पत्रिका, किताब, शॉर्ट फिल्म व इंटरनेट आदि का सहारा लिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त पहले मासिक धर्म के बाद एक बार बेटी को किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से अवश्य मिलवाएं। डॉक्टर उनके मन के हर सवाल को न सिर्फ शांत करते हैं, बल्कि इस उम्र में लगने वाले कुछ वैक्सीनेशन आदि के बारे में भी बताते हैं, जो उन्हें सेहतमंद भविष्य के लिए जरूरी होते हैं। मसलन, सर्वाइकल कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी के बचाव के लिए एचपीवी का टीकाकरण इसी उम्र में किया जाता है। यहां खास बात यह है कि आमतौर पर इन टीकाकरण के बारे में मांओं को भी ज्यादा जानकारी नहीं होती। इसलिए एक बार बेटी के साथ डॉक्टर से अवश्य मिलें।
मिताली जैन