थायरॉइड पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को प्रभावित करता है। भारत में थायरॉइड मरीजों की संख्या लाखों में है। थायरॉइड महिलाओं की फर्टिलिटी यानी प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित करता है। दरअसल थायरॉइड एक विशेष ग्रंथि होती है, जो हमारे गले के हिस्से में होती है। इसका आकार तितली नुमा होता है। ये ग्रंथि हमारे शरीर में कई हार्मोन्स के उत्पादन के लिए जिम्मेदार होती है। थायरॉइड ग्रंथि की प्रजनन में महत्वपूर्ण भूमिका होती है इसलिए ये बीमारी होने पर महिलाओं की फर्टिलिटी प्रभावित होती है।
महिलाओं में थायरॉइड का प्रभाव
थायरॉइड शरीर के कई हार्मोन्स के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार होता है। इसलिए थायरॉइड का अन्य शारीरिक कार्यों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। कुछ अधिक प्रभावित हार्मोनल कंडीशन जैसे मासिक धर्म चक्र में परिवर्तन, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन के अस्थिर स्तर, रजोनिवृत्ति की शुरुआत, ब्रेस्ट फीड करने की क्षमता आदि थायरॉइड के कारण प्रभावित हो सकते हैं। हालांकि, थायराइड सबसे अधिक महिला की प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं, विशेष रूप से जब वह गर्भवती होने की कोशिश में है या उसकी गर्भावस्था की पूर्ण अवधि चल रही है।
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हाइपोथायरॉइडिज्म का फर्टिलिटी पर प्रभाव
जिन महिलाओं में हाइपोथायरॉइडिज्म होता है उनको प्रजनन संबंधी कठिनाइयों का सामना ज्यादा करना पड़ता है। हाइपोथायरॉइडिज्म होने पर थायरॉइड ग्लैंड कुछ जरूरी हार्मोन्स का स्राव नहीं कर पाता है। इन हार्मोन्स की कमी की वजह से महिलाओं को अंडाणु के उत्सर्जन में समस्या हो सकती है, जिससे गर्भधारण करने में परेशानी आती है। अगर आपको थायरॉइड की समस्या है और आप प्रेग्नेंसी की प्लानिंग कर रही हैं, तो आपको अपने डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए। हाइपोथायरॉइडिज्म के उपचार के अभाव में बच्चे के विकास में अनेक प्रकार की समस्याएं आती है, जैसे- बच्चे में कम बुद्धि, बौनापन, बच्चों के अंगो का ठीक प्रकार से न बनाना आदि। हाइपोथायरॉइडिज्म महिलाओं में स्टील बर्थ और गर्भपात का कारण भी बन सकता है।
हाइपरथायरॉइडिज्म का फर्टिलिटी पर प्रभाव
जिन महिलाओं को हाइपरथायरॉइडिज्म होता है, उन्हे भी प्रेग्नेंसी में परेशानी होती है। अमूमन ऐसी महिलाओं का गर्भावस्था का समय अधिक कठिन होता है। हाइपोथायरॉइडिज्म की तरह हाइपरथायरॉइडिज्म में भी महिलाओं में गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, अगर उनके थायरायड की हालत कम मॉडरेट है (जो एक एंडोक्राइनोलॉजिस्ट द्वारा निर्धारित), तो वहां पर मां या बच्चे में से किसी को भी स्वास्थ्य जोखिम ज्यादा रहता है। गंभीर हाइपरथायरॉइडिज्म होने पर महिलाओं में एनीमिया, उच्च रक्तचाप और संक्रमण होने की संभावना अधिक रहती है और साथ ही साथ बच्चे को भी कई परेशानियों से गुजराना पड़ता है।
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शिशु के विकार से लिए जरूरी है थायरॉइड हार्मोन
ऐसा माना जाता है कि गर्भावस्था की पहली छमाही के दौरान भ्रूण का विकास थायरॉइड हार्मोन के लिए मां पर निर्भर करता है, इसलिए यह जरूरी है कि जिन महिला को थायरॉइड की बीमारी हो उनको उचित उपचार करवाना चाहिए। साथ ही साथ जिन महिलाओं को लगता है उनको थायरॉइड की समस्या हो सकती है उनको भी तुरंत अपने डॉक्टर से इस विषय की चिंताओं के बारें में बात करके उचित जांच की पेशकश करनी चाहिए।
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