भारत आज 'बाल दिवस' मना रहा है, तो वहीं पूरा विश्व 'वर्ल्ड डायबिटीज डे'। पर दुख ही बात ये है कि आज डायबिटीज हमारे बच्चों के लिए एक जानलेवा खतरा बन रही है। राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (CNNS) द्वारा जारी किए गए नए आंकड़ों की मानें, तो भारत में 19 साल के कम उम्र के लगभग 10 प्रतिशत बच्चे डायबिटीज के शिकार हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, यूनिसेफ और जनसंख्या परिषद द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चलाता है कि 19 वर्ष की आयु तक के 10 प्रतिशत बच्चों में प्री-डायबिटिक अवस्था पाई गई है, जो आगे चलकर डायबिटीक हो सकते हैं। इन बच्चों में ब्लड शुगर का लेवल सामान्य से अधिक पाया गया है, जो आगे चलकर इनमें टाइप-2 डायबिटीज होने का खतरा बढ़ाता है। वहीं ये खतरा डायबिटीज के इन सभी मामलों में लगभग 90 प्रतिशत का है। वहीं आहार और जीवन शैली में परिवर्तन इसके मुख्य कारणों में से एक हैं।
भारत में किशोर बच्चों में डायबिटीज की बात करें तो 2016 में लगभग 72 मिलियन बच्चों को डायबिटीज था, जो अब बढ़ गया है। अब ये आंकड़े कुछ इस प्रकार से हैं-
- 5-7 वर्ष के बीच के 1.3 प्रतिशत बच्चों को डायबिटीज है
- 8-9 वर्ष के बीच के 1.1 प्रतिशत बच्चों को डायबिटीज है
- 10-14 वर्ष के बीच के 0.7 प्रतिशत बच्चों को डायबिटीज है
- 15-19 वर्ष के बीच के 0.5 प्रतिशत बच्चों को डायबिटीज है
वहीं इस पर यूनिसेफ के भारत कार्यालय में निगरानी और मूल्यांकन विशेषज्ञ प्रवीण अग्रवाल का कहना है कि ये तमाम डेटा बताती है कि कैसे इन बच्चों को आगे चलकर मधुमेह हो सकता है। इसलिए अब जरूरी है कि हम अब पूरी तरह से डायबिटीक को लेकर जागरूक हो जाएं। नीति आयोग (NITI Aayog) के सदस्य और एम्स (AIIMS) में बाल रोग विभाग के प्रमुख विनोद.के.पॉल का कहना है कि ये बड़ा आश्चर्य है कि आने वाली भारतीय युवापीढ़ी इस व्यापक स्तर पर डायबिटीज का शिकार हो सकती है। पॉल कहते हैं, "यह एक वास्तविकता है, जिसके बारे में हमें सावधान रहना चाहिए और कोशिश करना चाहिए कि कम विकसित क्षेत्रों में भी डायबिटीज को लेकर लोगों को जागरूक किया जाए।
इसे भी पढ़ें : बढ़ता प्रदूषण भी बन सकता है मोटापे की वजह, रिसर्च में हुआ खुलासा
भारत में बच्चों को सही और पोषक खाना पहुंचाना एक लंबी लड़ाई है। भारत में आज भी बच्चों को उच्च प्रोटीन, उच्च फाइबर आहार के साथ, सही पोषण वाला आहार नहीं मिल पा रहा है।अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान में वरिष्ठ अनुसंधान सह अध्यक्ष पूर्णिमा मेनन कहती हैं कि सार्वजनिक कार्यक्रमों में सभी खाद्य पदार्थों की पोषण संरचना की पूरी समीक्षा होनी चाहिए क्योंकि उनमें से कई परिष्कृत अनाज हैं और इसमें चीनी भी शामिल है। वहीं अब भारत को स्वास्थ्यप्रद खाद्य पदार्थ खरीदने का ही लक्ष्य होना चाहिए।
इसे भी पढ़ें : हर 4 में से 1 नौकरीपेशा है मानसिक विकार या डिप्रेशन का शिकार, सर्वे में सामने आई हकीकत
विशेषज्ञों का कहना है कि प्री-डायबिटीज पर डेटा कोर्स करेक्शन का मौका देता है। प्री-मधुमेह और मधुमेह के समय के बीच एक खिड़की है। इसे आहार और जीवन शैली में परिवर्तन करने के अवसर की खिड़की के रूप में माना जाना चाहिए। अगर अब अपने जीवन-शैली और आहार को ठीक कर लेंगे तो शायद हम मधुमेह को हरा पाएंगे। डॉक्टरों की मानें तो अगर हम इन लोगों को प्री-डायबिटीक लक्षणों से जागरूक कर दें और अगर वो इन पर काम करना शुरू कर देते हैं, तो भविष्य में डायबिटीज अपने आप कम हो जाएगा।वहीं सीएनएनएस ने चेतावनी दी है कि यदि अधिक वजन और मोटापे को आक्रामक रूप से संबोधित नहीं किया जाता है, तो डायबिटीज का बोझ भारत के विकास को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। एनसीडी के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक हाई ब्लड शुगर है। मधुमेह को रोकने के लिए जरूरी है कि हम अपने बच्चों के जीवन शैली और खान-पान को ठीक करवाएं। साथ ही उन्हें खेल, एक्सरसाइज और योग आदि को ज्यादा से ज्यादा करने के लिए प्रेरित करें।
Read more articles on Health-News in Hindi