हर महिला के लिए मां बनना इस दुनिया की सबसे बड़ी खुशी है। लेकिन मां बनने का सफर आसान नहीं होता। इसमें महिला विशेष के जीवन में बहुत सारी उठा-पटक होती है। ऐसे में यह हर महिला को जानना चाहिए कि गर्भावस्था के नौ महीनों में महिलाओं को किस किस मंजर से होकर गुजरना होता है। इतना ही नहीं इसमें कितने चरण होते हैं और उसमें क्या करना चाहिए, ये जानना भी आवश्यक है। आइये इस पर चर्चा करते हैं।
प्रथम चरण
पहला चरण संक्षेपण से शुरु होता है। इसके चलते गर्भाशय में प्रगतिशील बदलाव देखे जाते हैं। इस चरण का अंत गर्भाशय के फैलाव से होता है। यह चरण मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है।
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पूर्व प्रसव
इसके दौरान गर्भाशय सिकुड़ता और फैलता है। पूर्व प्रसव के दौरान आपको इसका पता ही नहीं चलता कि आप गर्भवती हैं। इसमें बेहद सामान्य से बदलाव होते हैं। हल्का फुल्का कमर में दर्द हो सकता है या अन्य किस्म का दर्द महसूस कर सकती हैं। आपमें बेहद सामान्य सा बदलाव आता है जो कि नोटिस नहीं किया जा सकता। बहरहाल अन्य भाग एक्टिव लेबर यानी सक्रिय प्रसव है। इसके तहत गर्भाशय अधिक तेजी से फैलता है। सिकुड़न लम्बे समय के लिए होता है और यह पहले की तुलना में ज्यादा मजबूती से होता है। इसे यदि परिवर्तनकाल का नाम दिया जाए तो कतई गलत न होगा। यह चरण महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा थकाऊ भरा होता। इस दौरान महिला जल्दी थकान महसूस करती है। असल में इसके तहत महिला में बदलाव तेजी से आ रहे होते हैं। सिकुड़न प्रत्येक तीन से चार मिनट में होता है। चूंकि आपका भ्रूण दिनों दिन बढ़ रहा है, ऐसे में आप अधिकतर बीमार महसूस कर सकती हैं। ज्यादातर नींद आती है, थकान महसूस होती है। इसमें मानसिक तनाव भी आपको घेरे रहता है। ऐसे में आप अपने खानपान से समझौता न करें। हालांकि इस स्थिति में खाने का मन नहीं होता। बावजूद इसके अपनी और अपने शिशु की सेहत के लिए यह जरूरी है।
इसके अलावा इस चरण में अपनी चहलकदमी पर भी ध्यान दें। अकसर इस स्थिति में महिलाओं को ज्यादा चलना फिरना चाहिए। इस दौरान बार बार पेशाब आता है। इसका ध्यान रखें कि आप कुछ देर के अंतराल में पेशाब करने जाती रहें। अपने भ्रूण के हिलने को भी नोटिस करें। यदि वह एक दिन में कम से कम दस बार नहीं घूमता है तो यह स्थिति भयावह हो सकती है। इस स्थिति में डाक्टर के पास अवश्य जाएं।
द्वितीय चरण
द्वितीय चरण में आपका शिशु बाहर आने का इंतजार कर रहा होता है। कहने का मतलब यह है कि इस चरण में आपको अपने शिशु को योनिमार्ग से नीचे की ओर धकेलना होता है। यदि आप पहले भी मां बन चुकी हैं तो यह प्रक्रिया कुछ कम दर्दभरी होती है। लेकिन यदि आप पहली बार शिशु को जन्म दे रही हैं तो यह प्रक्रिया लम्बे समय तक चल सकती है। इसके तहत आपको अपनी सांसों में भी नियंत्रण रखना होता है। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान यह ध्यान रखें कि आपको सर्दी, जुकाम आदि न हो। इससे शिशु की सेहत पर तो असर पड़ता ही है साथ ही प्रसव के दौरान अतिरिक्त समस्या का सामना कर पड़ सकता है।
बहरहाल शिशु की पोजिशन के अनुसार ही आप प्रेशर बनाती हैं। सामान्यतः प्रसव के दौरान शिशु का सिर योनि द्वार की ओर ही होता है। प्रेशर करते हुए सबसे पहले आपके शिशु का सिर ही बाहर आता है। यह याद रखें कि जब भी आप धक्का देती हैं तो अपनी सांस में नियंत्रण रखें। सांस कभी भी ऊपर की ओर न लें। इससे शिशु बाहर निकलने की बजाय ऊपर की ओर चढ़ सकता है। इसके लिए आप विशेषज्ञों से सलाह ले सकती हैं ताकि आपकी प्रसव पीड़ा कुछ कम हो। आपके प्रत्येक धक्के के साथ आपका शिशु आपकी कोख से बाहरी दुनिया में प्रवेश कर रहा होता है। इस दौरान आपके मुंह से चीखें निकल सकती है। यह बिल्कुल सामान्य है। असल में चीखने से प्रेशर बेहतर बनता है जिससे शिशु को बाहर निकलने में आसानी होती है।
तृतीय चरण
तृतीय चरण आपके शिशु के जन्म के साथ ही शुरु हो जाता है। प्रसवकाल के बाद एक मां के लिए यह सबसे खुशनुमा पल होता है। उसका शिशु जो कि नौ महीने तक उसकी कोख में पल बढ़ रहा होता है, इस चरण में वह मां के हाथ में होता है। इस समय में महिला बहुत ज्यादा कमजोर हो जाती है। यहां तक गर्भाशय के सिकुड़ने की प्रक्रिया बेहद धीमी हो जाती है। इस चरण में आपकी गर्भनाल को सही करना होता है। यह प्रक्रिया पूर्णतया चिकित्सकों के हाथों होता है। आपको इस चरण में अपने शिशु का ख्याल रखना होता है। अपने शिशु को अपनी त्वचा से चिपकाकर रखें।
यूं तो आधुनिकता के नाम पर कई महिलाएं अपना दूध पिलाने से बचती हैं। लेकिन ऐसा करना शिशु एवं मां दोनों की सेहत के लिए नुकसानदायक है। इस चरण के तहत मां को चाहिए कि वह अपना पीला दूध अपने शिशु को पिलाए। अंततः प्रसवकाल चूंकि खत्म हो चुका है एक कप चाय की चुस्की जरूर भरें। इससे आपको तुरंत एनर्जी मिलती है।
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