गर्भवती महिलाएं अगर गर्भकाल के दौरान जंक फूड का सेवन करती हैं तो इससे होने वाले बच्चे पर भी असर पड़ता है। उनके बच्चों के भी ऐसे ही खान-पान का आदि बनकर मोटापे का शिकार बनने की आशंका बढ़ जाती है। यह तथ्य एडिलेड विश्वविद्यालय के शोध में सामने आया है।
इस शोध में पुरुषों के लिए भी अहम जानकारी मिली है। बताया गया है कि वे पुरुष जो पिता बनने के पहले वजन घटाते हैं और एक्सरसाइज अधिक करते हैं, अपने भ्रूण के विकास में सुधार कर सकते हैं।
एडिलेड विश्वविद्यालय में चूहों पर यह शोध किया गया जिनमें पाया गया कि गर्भधारण के पहले और दौरान और स्तन पान कराते वक्त चर्बीयुक्त और अधिक शक्कर वाली चीजें खाने वाले चूहों की संतान को भी समान खान-पान की चाहत होगी।
जंक फुड खाने वाले चूहों की संतान उनसे दोगुनी मोटी थी जो अच्छे और पोषक भोजन लेने वाली मादा चूहों के गर्भ से पैदा हुईं। जंक फुड खाने वाली मादा चूहों की संतानों को भविष्य में पाचन संबंधी बीमारियों की संभावना भी नजर आई।
ऐसा अनुमान है कि 50 प्रतिशत तक महिलाओं का गर्भधारण के समय वजन अधिक है या वे मोटापे का शिकार होती हैं। ऐसे में उनके बच्चों के लिए आगे जीवन में मोटापे का शिकार होने का खतरा बना रहता है।
एडिलेड विश्वविद्यालय के शोधकर्ता डॉ. बेवर्ली मलहॉज्लर ने बताया कि, “गर्भवती महिलाओं में बढ़ते मोटापे के कारण मोटापे और पाचन संबंधी बीमारियों का एक पीढ़ी दर पीढ़ी चक्र या कायम होने लगा है। संक्षेप में कहें तो, हम ऐसी माताओं को देख रहे हैं जो वजनदार संतान जन्म दे रही हैं जो आगे जाकर मोटे और कमजोर पाचनशक्ति वाले बन रहे हैं।“
इस शोध में यह पता चला कि गर्भावस्था के दौरान जो महिलाएं गलत भोजन करती हैं वे अपनी होने वाली संतान की पाचन क्रिया में भी बदलाव की स्थिति बनाती हैं और यह बच्चे बड़े होने पर आवश्यकता से अधिक भोजन करने के आदि होने लगते हैं। साथ ही इस कारण बच्चों के स्वाद में भी फेरबदल होता है जो सिर्फ चर्बीयुक्त और अधिक मीठा भोजन करना ही पसंद करते हैं।
जंक फुड खाने वाले चूहों को ऐसे भी बच्चे पैदा हुए जिनमें लेप्टिन रिसेप्टर्स कम पाए गए, जिस कारण ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता, भूख लगना और पाचनक्रिया प्रभावित होती है। इनसे मादा चूहों के बच्चों में चर्बी के उपापचय में भी बदलाव होता है जिससे शरीर में चर्बी जमा होने लगती है। डॉ. बेवर्ली मलहॉज्लर ने बताया कि, “जानवरों पर हुए शोध से मिली अच्छी जानकारी यह है कि गर्भकाल और स्तनपान के दौरान अच्छा पोषण मिलने से संतान के शरीर में चर्बी की बढ़ोतरी को रोका जा सकता है।“ उन्होंने कहा कि संतान के मां का दूध छोड़ते वक्त संतुलित आहार कायम करने से बच्चे का बॉडी फैट मास सामान्य बनाने और स्वास्थ में दीर्घकालिक मेटाबॉलिक सुधार किया जा सकता है।
यह सिर्फ गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी नहीं कि वे अपने खान पान का ख्याल रखें क्योंकि एक नए शोध में पता चला है कि पुरुष भी महज महिला के गर्भाशय में अंडे की उत्पत्ति ही नहीं करते बल्कि अपने बच्चे के भविष्य में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
मुंबई के हिंदुजा हेल्थकेअर के वरिष्ठ बैरियाटिक एवं मेटाबॉलिक सर्जन डॉ. रमन गोयल कहते हैं कि, “बार्कर की परिकल्पना से माता के पोषण का अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव का पता चलता है। ऐसा माना जाता है कि गर्भावस्था के दौरान गलत भोजन लेने से सिर्फ अगली पीढ़ी ही नहीं बल्कि दूसरी पीढ़ी भी प्रभावित होती है। इस रिसर्च का दिलचस्प पहलू यह है कि जानवरों पर हुए शोध से उस बात की पुष्टि होती है, जो अगर इंसानों पर रिसर्च कर इस तरह का कुछ पता लगाने की कोशिश की जाए तो उसमें कई दशक लग जाएंगे। साथ ही मेटापॉलिक हेल्थ में पुरुषों की भूमिका का भी पता चला है। दुर्भाग्यवश, अधिकतर पुरुष विवाह के तुरंत बाद से ही एक्सरसाइज करना छोड़ कर अधिक भोजन करना शुरु कर देते हैं। इसी प्रकार, भारत में गर्भवती महिलाओं को भी हर प्रकार का भरपूर कैलरी युक्त भोजन दिया जाता है, जिससे वजन बढ़ने लगता है और उन्हें अस्वस्थ भी बनाता है। अब वक्त आ गया है कि नवविवाहित जोड़ों को पोषक आहार और उनके होने वाले बच्चे पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में समझाया जाए। साथ ही गर्भवती महिला के परिवार को पोषण से जुड़ी काउंसलिंग अनिवार्य बनाई जाए।”
Image Courtesy- google
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