बढ़ती उम्र के साथ तरह-तरह की परेशानियां और बीमारियां भी इंसान को घेर लेती हैं। और शरीर का सबसे प्रमुख अंग आंखें भी इससे बची नहीं रहती। आंखों की कुछ बीमारियां बढ़ती उम्र में आ घेर लेती हैं। क्योंकि इस समय आंखों की मांसपेशियां कमजोर होती जाती हैं और उनका लचीलापन भी कम हो जाता है। परिणाम स्वरूप व्यक्ति के देखने की क्षमता कम होती जाती है। तो चलिये जानते हैं बढ़ती उम्र में होने वाली ऐसी ही कुछ अन्य बीमारियों के बारे में जिनका समय रहते चेकअप कराया जाये, तो इनसे बचा जा सकता है।
दरअसल आंख कई छोटे हिस्सों से बनी जटिल ग्रन्थि होती है। साफ देख पाने की क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि ये हिस्से रूप से कितने सही तरीके से काम करते हैं। दृष्टि, एक छवि बनाने के लिए दोनों आंखों के साथ में उपयोग की क्षमता होती है। सटीक दृष्टि के लिए दोनों आंखें एक साथ आसानी से सटीक एवं बराबर काम करती हैं। जब कोई संक्रमण या अन्य समस्या होती है तो आंखों की रोशनी जाती रहती है। ये समस्याएं निम्न प्रकार से हैं-
प्रेस बायोपिया
आयु बढ़ने के साथ ही आंख की मांसपेशियां भी कमजोर होने लगती हैं और उनका लचीलापन भी धीरे-धीरे कम होता जैता है। जिस कारण आंख के लेंस के फोकस करने की क्षमता कम भी घटती जाती है। यही कारण है कि इंसान के नजदीक के चीजों को देखने की क्षमता कम हो जाती है और उसे धुंधला दिखाई देने लगता है। इस समस्या को ‘प्रेस बायोपिया’ कहा जाता है। हालांकि इस समस्या का इलाज मौजूद है। आप कॉनवेक्स लेंस से बने चश्मे को लगाकर इस समस्या से दो-दो हाथ कर सकते हैं।
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मोतियाबिंद
बढ़ती उम्र के साथ होने वाली आंखों की सबसे सामान्य समस्या मोतियाबिंद है। इस समस्या में आंख के अंदर के लेंस की पारदर्शिता धीरे-धीरे कम होती जाती है, जिसके परिणाम स्वरूप अस व्यक्ति को धुंधला दिखाई देने लगता है। दरअसल आंखों का लेंस प्रोटीन और पानी से बना होता है। जब उम्र बढ़ने लगती है तो ये प्रोटीन आपस में जुड़ने लगते हैं और लेंस के उस भाग को धुंधला कर देते हैं। मोतियाबिंद धीरे-धीरे बढ़ कर पूरी तरह दृष्टि को भी खराब कर सकता है। डॉक्टरों के अनुसार 50 साल की उम्र के बाद हर व्यक्ति को मोतियबिंद की जांच के लिए नेत्र चिकित्सक के पास जरूर जाना चाहिए। मोतियाबिंद की चिकित्सा में शल्य क्रिया द्वारा अपारदर्शी लेंस को निकाल कर कृत्रिम पारदर्शी लेंस लगा दिया जाता है। इसके बाद दृष्टी लगभग सामान्य हो जाती है।
एज रिलेटेड मैकुलर डिजनेरशन (एआरएमडी)
उम्र बढ़ने के साथ दृष्टि को प्रभावित करने वाली एक बड़ी समस्या एआरएमडी अर्थात एज रिलेटेड मैकुलर डिजनेरशन भी है। एआरएमडी के महत्वपूर्ण लक्षणों में, धुंधला दिखाई देना, चीजों का विकृत दिखाई देना, सीधी लाइन का टेढ़ी व कटी हुई या लहरदार दिखई देना, काला धब्बा सा दिखाई देना तथा रंगीन वस्तुओं का कम रंगीन दिखाई देना आदि शामिल होते हैं। दरअसल हमारी आंख में ‘कौन’ नामक कोशिकाएं होती हैं, जो हमें प्रकाश में देखने में तथा रंगीन वस्तुओं की पहचान में काम आती हैं। ये कौन कोशिकाएं आंख के संवेदनशील भाग रेटिना के मैकुला में स्थित होती हैं। एएमआरडी में इन कोन कोशिकाओं को नुकसान होता है जिससे हमारा सेंट्रल विजन प्रभावित होता है। हालांकि एआरएमडी होने पर पेरिफेरल विजन प्रभावित नहीं होता, इसलिए व्यक्ति किसी वस्तु को देख तो पाता है, लेकिन उसका ठीक प्रकार से विश्लेषण नहीं कर पाता। इसलिए उपरोक्त में से कोई भी लक्षण दिखाई देने पर पर तुरंत नेत्र विशेषज्ञ से संपर्क कर इलाज कराना चाहिए।
फ्लोटरस
फ्लोटरस नामक समस्या होने पर आंखों के आगे काले धब्बे दिखाई देते हैं। दरअसल उम्र बढ़ने के साथ आंखों के कमजोर होने पर व्यक्ति को अपनी आंख के सामने मच्छर की तरह उड़ते हुए काले धब्बे दिखाई दे सकते हैं, जिसे ‘फ्लोटरस’ कहा जाता है। हमारे आंख के अंदर एक जेली जैसा विट्रस हनूमर नामक पदार्थ होता है। जब उम्र बढ़ती है तो विट्रस r हनूमर की संरचना में परिवर्तित होता है और इसके सूक्ष्म फाइबरस टूट कर अलग हो जाते हैं। इसके बाद ये फाइबरस आपस में जुड़ जाते हैं और विट्रस r हनूमर के अंदर तैरते रहते हैं। जिस कारण इन फाइबर का रेटिना के ऊपर काला प्रतिबिंब बनता है और व्यक्ति को आंख के आगे काले धब्बे नजर आने लगते हैं। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ आंखों से संबंधित कुछ अन्य समस्याएं जैसे, ड्राइ आइ, डायबिटीक रेटिनोपैथी, हाइपरमेट्रोपिया, रेटिनल डिटैचमेंट, आंखों से पानी आना इत्यादि भी हो सकती हैं। इससे बचने के लिए हर छह महीने में नेत्र चिकित्सक से अपने आंखों की जांच करानी चाहिए, ताकि आंखों को किसी भी नुकसान से बचाया जा सके।
ग्लूकोमा
ग्लूकोमा भी आंखों में होने वाली एक आम समस्या है। इसमें आंख के अंदर का दबाव बढ़ जाता है जिस कारण देखने मेंमदद करने वाले ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचाता है। यदि ग्लूकोमा की चिकित्सा समय रहते ना की जाए तो यह अंधेपन का कारण भी बन सकता है। यह लंबे समय तक चलने वाला रोग है अर्थात इससे होने नुकसान भी धीरे-धीरे होता है। इसलिए अधिकांश लोग इसे सामान्य दृष्टि की समस्या समझ कर ऐसे ही छोड़ देते हैं, जो हानिकारक हो सकता है। उम्र बढ़ने के साथ ही कॉर्निया की मोटाई कम हो जाती है, इसलिए ग्लूकोमा होने की आशंका भी बढ़ जाती है। ग्लूकोमा की पहचान जितनी जल्दी हो जाये, उतनी अच्छी तरह उसकी रोक-थाम व इलाज हो सकता है। इसका उपचार आइ ड्रॉप्स, लेजर चिकित्सा अथवा शल्य चिकित्सा द्वारा की जाती है।