एक नया अध्ययन अभिभावकों के लिए कमाल की जानकारी लेकर आया है। इस अध्ययन के अनुसार भोजन के समय बच्चे जितनी अधिक खेल व शरारत करते हैं, वे आगे चलकर उतने ही अच्छे विद्यार्थी (लर्नर) बन सकते हैं।
लोवा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया कि कैसे 16 महीने की उम्र में बच्चे तरल (नॉन सौलिड) खाद्य पदार्थों, जैसे दलिया से लेकर गोंद तक के लिए शब्दों को जान पाते होंगे।
पुराने शोध बताता है कि नन्हा बच्चा ठोस वस्तुओं के बारे में ज्यादा आसानी से इस लिए जान पाता है क्योंकि वे आसानी से उनके अपरिवर्तनीय आकार और शक्ल के हिसाब से उनकी पहचान कर सकते हैं।
लोवा विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर लारिसा सैमुएलसन ने कहा, "अगर आप बच्चों को परिचित जगह पर बैठाते हैं। उन परिस्िथतियों में शब्द सीखने की क्षमता बढ़ जाती है क्योंकि इस दौरान बच्चे खाने में नॉन-सॉलिड चीजें ज्यादा खाते हैं।
सैमुएलसन ने कहा कि अगर बच्चों को हाईचेयर (बच्चों के बैठने वाली कुर्सी) पर बैठाकर इस चीजों से तार्रुफ कराते हैं, तो यह उनके लिए और अच्छा होता है। वे ऐसे बैठने के भी आदि होते हैं, तो इससे उन्हें नॉन सॉलिड चीजों के बारे में जानने और उन्हें याद रखने में मदद मिलती है।
सैमुएलसन और उनकी टीम ने अपने विचार को परखने के लिए छह महीने के बच्चों को 14 नॉन सॉलिड वस्तुओं, जिनमें अधिकतर भोजन और पेय पदार्थ थे, से परिचित कराया। इनमें एप्पल सॉस, पुडिंग, जूस और सूप आदि शामिल थे।
शोधकर्ताओं नें इन बच्चों को ये चीजें दी और " डैक्स (dax) और (kiv) जैसे शब्द बनाने को दिये। एक मिनट बाद उन्होंने इन बच्चों को इसी भोजन को दूसरे आकार और रूप में पहचानने को कहा।
बेशक, कई बच्चे मुस्कराते हुए इस कार्य में जुट गए और इस भोजन को छूकर, फेंककर, हाथ लागाकर उससे खेल कर नॉन सॉलिड चीजों को समझने लगे और उन्होंने इन्हें उनके काल्पनिक नामों से पुकारा।
अध्ययन से पता चला कि वे बच्चे जो खाद्य पदार्थों में ज्यादा रुचि से जुटे हुए थे, उन्होंने इन खाद्य पदार्थों को उनकी बनावट द्वारा सही ढंग से पहचान लिया।
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