फाइब्रॉएड महिलाओं के पेट में होने वाली एक गंभीर समस्या है, इसके कारण महिला बांझपन का शिकार भी हो सकती है। अगर समय रहते इसका उपचार न किया जाये तो यह यूटेराइन कैंसर का कारण बन सकता है। एक अनुमान की मानें तो पूरी दुनिया में लगभग 35 प्रतिशत महिलाओं में यह बहुत सामान्य समस्या है।
फाइब्रॉएड महिला के जीवन में कभी न कभी होता जरूर है और इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार अनियमित दिनचर्या है। भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार देश में लगभग 20-45 आयु वर्ग की 25 प्रतिशत महिलायें इस समस्या की शिकार होती हैं। फाइब्राएड के उपचार और उसके विभिन्न विकल्पों के बारे में इस लेख में विस्तार से जानें।
फाइब्रॉएड क्या है
जब यूटरस की मांसपेशियों का असामान्य रूप से विकास होने लगता है तो उसे फाइब्रॉएड कहा जाता है। यह एक प्रकार का ट्यूमर है जो कैंसर के लिए जिम्मेदार नहीं है। इस ट्यूमर का आकार मटर के दाने से लेकर क्रिकेट की बॉल से भी बड़ा हो सकता है। जब यह गर्भाशय की मांसपेशियों के बाहरी हिस्से में होता है तो इसे सबसीरस कहा जाता है और अगर यह यूटरस के भीतरी हिस्से में भी होता है तो ऐसे फाइब्रॉएड को सबम्यूकस कहा जाता है।
फाइब्राएड होने पर बांझपन की स्थिति हो सकती है। फाइब्राएड में मासिक-धर्म के दौरान सामान्य से अधिक रक्तस्राव, यौन संबंध बनाते वक्त तीव्र दर्द, यौन संबंध के समय योनि से खून निकलना, मासिक धर्म के बाद भी रक्तस्राव जैसी समस्यायें होती हैं। इनके कारण अंडाणु और शुक्राणु आपस में मिल नहीं पाते हैं जिसका परिणाम बांझपन होता है। आनुवंशिकता, मोटापा, शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा का बढ़ना और लंबे समय तक संतान न होना इसके प्रमुख कारकों में से एक हैं।
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फाइब्राएड के उपचार के विकल्प
फाइब्राएड के लिए पहले चीरा लगाया जाता था, जिसका घाव भरने में बहुत मुश्किल होती थी, लेकिन लेकिन दूरबीन विधि से इसका उपचार करने में त्वचा पर कोई दाग नहीं रहता है। लेप्रोस्कोपी विधि से फाइब्रॉइड की सर्जरी वरदान की तरह है।
फाइब्रॉएड के संबंध में सबसे आम बात यह है कि इसकी गांठें कैंसर रहित होती हैं। इसलिए इनका आसानी से उपचार संभव है। पहले ओपन सर्जरी द्वारा इसका उपचार होता था, जिससे मरीज को स्वस्थ होने में लगभग एक महीने या उससे अधिक समय लगता था। लेकिन अब लेप्रोस्कोपी की नई तकनीक के जरिये इस बीमारी का कारगर उपचार आसान हो गया है।
लेप्रोस्कोपिक तकनीक से उपचार के दौरान पेट में बड़ा चीरा लगाने के बजाय सिर्फ आधे से एक सेंटीमीटर का सुराख बनाकर दूरबीन के जरिये मॉरसिलेटर नामक यंत्र का उपयोग कर फाइब्रॉयड के छोटे-छोटे बारीक टुकड़े कर उसे बाहर निकाला जाता है। इस तरीके से उपचार के दौरान मरीज को अधिक तकलीफ नहीं होती, खून भी ज्यादा नहीं निकलता और सर्जरी के 24 घंटे बाद महिला घर जा सकती है।
यदि फाइब्रॉयड का आकार बहुत बड़ा हो या अत्यंत छोटे आकर के कई फाइब्रॉइड्स हों, या मरीज को डायबिटीज या हृदय रोग हो तो ऐसी स्थिति में भी उसे प्रति सप्ताह जीएनआरएच एनालॉग का इंजेक्शन लगाया जाता है। यह धीरे-धीरे बड़े फाइब्रॉयड को सूखाकर छोटा कर देता है, और इससे मरीज की तकलीफ कम हो जाती है।
इसके अलावा पॉलीविनाइल एल्कोहॉल के क्रिस्टल के जरिये फाइब्रॉयड की ऑर्टरी को ब्लॉक कर दिया जाता है, इससे ट्यूमर के लिए रक्त का प्रवाह रुक जाता है और ट्यूमर गलकर छोटे-छोटे टुकड़ों में पीरियड्स के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है, लेकिन इलाज की यह प्रक्रिया ज्यादा महंगी है। इसके लिए मरीज को कुछ दिनों तक अस्पताल में भर्ती भी होना पड़ सकता है, क्योंकि जब ट्यूमर के लिए खून अवरुद्ध हो जाता है, तो इससे पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द या यूटरस में संक्रमण की संभावना भी रहती है।
परिवार में किसी को फाइब्राएड की समस्या पहले रही हो तो प्रत्येक 6 महीने के अंतराल पर एक बार पेल्विक अल्ट्रासाउंड जरूर कराएं, जिससे कि शुरुआती चरण में ही इसका पता चल जाए। इससे बचाव के लिए स्वस्थ आहार के सेवन के साथ एक्सरसाइज को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
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