साइंस की नई तकनीक कृत्रिम गर्भाधान या आइवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) के जरिये आज उन महिलाओं को मातृत्व का सुख मिल रहा है जो किसी कारणवश मां नहीं बन पाती हैं। लेकिन इसके सुरक्षित और असुरक्षित होने पर हमेशा सवाल उठाए गए हैं जिसके ऊपर अब भी विचार करने की जरूरत है। कृत्रिम गर्भाधान में अंडों को अंडाशय से ऑपरेशन के जरिये बाहर निकाल कर पेट्री डिश में शुक्राणु के साथ मिलाया जाता है। करीब 40 घंटे के बाद जब अंडे फर्टिलाइज हो जाते हैं और उनमें कोशिकाओं का विभाजन हो जाता है तो उसे महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है।
क्यों हो रही इसकी जरूरत
कृत्रिम गर्भाधान महिला और पुरुष दोनों के लिए वरदान साबित हो रही है। क्योंकि आज के जमाने अधिकतर लोग करियर के कारण अधिक उम्र में शादी करते हैं जब महिलाओं को शरीर बच्चे को पैदा करने के लिए फिट नहीं रहता। ऐसे में महिला को बच्चा पैदा करने में काफी तकलीफ होती है और कई केस में महिला और बच्चे दोनों की जान को खतरा भी हो जाता है। ऐसे में कृत्रिम गर्भाधान ऐसे जोड़ों के लिए वरदान सबित हो रहा है। लेकिन इस पर भी कई सवाल उठाए जाते रहे हैं और ये प्रश्न आज भी साइंस के सामने यक्ष प्रश्न बना हुआ है कि कृत्रिम गर्भाधान सुरक्षित है कि नहीं?
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कृत्रिम गर्भाधान और डाउन्स सिंड्रोम
एक रिपोर्ट के अनुसार ज़्यादा उम्र की महिलाओं में दवा के ज़रिए कृत्रिम गर्भाधान करने पर पैदा होने वाले बच्चों में डाउन्स सिंड्रोम के ख़तरे ज़्यादा होते हैं। डाउन्स सिंड्रोम वाले बच्चों में शारीरिक और मानसिक विकास की दृष्टि से असामान्य लक्षण देखने को मिलते हैं। कई बार तो गर्भावस्था विफल हो जाते हैं या फिर बच्चा आनुवंशिक बीमारियों के साथ पैदा होता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इन सबको देखते हुए चिकित्सक कृत्रिम गर्भाधान का उपाय काफी जटिल परिस्थितियों में देते हैं साथ ही पति-पत्नी को इससे जुड़े खतरे भी बता देते हैं।
इस तकनीक का इस्तेमाल उनको करना चाहिए, जिसमें-
- महिला की फेलोपियन ट्यूब्स ब्लॉक होती हैं।
- अगर महिला टीबी या किसी घातक बीमारी की मरीज हो।
- अगर महिला पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से ग्रस्त हो मतलब की ओवरी में अंडे न बन पाते हों।
- 50 साल के बाद या बड़ी उम्र में बच्चे की चाहत रखना।
- मेनोपाज होने के बाद मां बनने की चाहत।
क्या कृत्रिम गर्भाधान सुरक्षित है?
इस तकनीक में पुरुष के स्पर्म और महिला के अंडे को ऑपरेशन के जरिए फलोपियन ट्यूब में डाला जाता है, जहां से वह महिला के गर्भ में जाता है। इसलिए जरूरी है कि महिला की ट्यूब ठीक हो। ये तकनीक आर्टिफिशियल इंटरकोर्स का रूप है। साथ ही इस तकनीक की सबसे बड़ी जरूरत है कि महिला की ट्यूब और पुरुष के स्पर्म ठीक हों। इसका इस्तेमाल कम ही होता है क्योंकि इस तकनीक की कामयाबी के आसार एक-तिहाई रहते हैं। इसके जरिये आपको बच्चा मिल ही जाएगा, इसकी सौ फीसदी गारंटी नहीं है और अगर बच्चा मिल भी गया तो बीमारीमु्क्त होने के चांसेस बहुत कम होते हैं।
इस तकनीक का प्रयोग करने से पहले इसके बारे में सटीक जानकारी होना बहुत जरूरी है।
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