क्या आपको रात में बिना अपने प्यारे दो साल पुराने तकिए के नींद नहीं आती है।, अगर ऐसा है तो आपको अपने तकिए के बारे में थोड़ी ज्यादा जानकारी करने की जरूरत हैं। क्योंकि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि आपका तकिया ज्यादा पुराना है, जिस पर आप हर रात सिर रखकर सोते हैं, तो वह कीटाणुओं और बीमारियों के प्रजनन की सबसे बेहतर जगह है।
लगभग 70 प्रतिशत लोगों का कहना है कि रात को अच्छी नींद के लिए एक आरामदेह तकिया बेहद महत्वपूर्ण होता है। लेकिन जब बात हमारे पसंदीदा तकिए की आती है तो हम में से कई लोग एक महत्वपूर्ण गलती करते हैं। हम उन्हें बहुत लंबे समय तक इस्तेमाल करते हैं।
डायरेक्टर ऑफ दी स्लीप टू लाइव इंस्टिट्यूट के रोबर्ट ऑक्समन कहते हैं कि वास्तव में तो हर छह महीने के आसपास आपको अपने तकिए को बदलना चाहिए। दो साल के भीतर तो तकिये को बदल ही लेना चाहिए। वहीं वेबएमडी नामक हेल्थ साइट के अनुसार गद्दे से जीवन पर 5 से 10 साल तक का फर्क पड़ता है। ऑक्समन बताते हैं कि लोग गद्दे की बात तो करते हैं लेकिन अक्सर तकिये को नजरअंदाज कर दिया जाता है। गद्दे के विपरीत, तकिये के टूटने पर कम ध्यान दिया जाता है, जबकि इसे हर 6 महीने में बदल देना चाहिए।
ऐसा इसलिए क्योंकि आपके तकिये में जिस पर हर रात आप मुंह रख कर सोते हैं, तमाम जीवाणु और गंदगी होती है। वहीं गंदगी, तेल और मृत त्वचा कोशिकाएं रोज रात उसी पर सोने से उस तकिये में फंस जाती हैं, जो एक्ने या त्वचा संक्रमण का कारण बन सकते हैं। केंसास सिटी एलर्जी एंड अस्थमा एसोसिएट्स के मार्क आर नुस्ट्रॉम के अनुसार, तकिये में व्याप्त धूल और गंदगी के चलते मकडियां भी उपयोग न होने के समय इस पर खूमती हैं और आप उन्हें देख नहीं पाते। यही कारण है कि आपके तकिये और गद्दे साल बीतने पर वजन में दोगुने से भी ज्यादा हो जाते हैं। यह वजन दरअसल धूल और कीटाणुओं का ढ़ेर होता है।
अपने तकिए में बैठकें कर रही मकड़ियां और उनके रिश्तेदारों को भूल भी जाएं तो आपके तकिये में मौजूद धूल कणों का संचय काफी सारी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं। खासतौर पर वे लोग जिन्हें धूल कणों व कीड़ों से एलर्जी होती है, ये पुराने तकिये उन्हें बीमार कर सकते हैं। नुस्ट्रॉम के अनुसार लगभग 20 प्रतिशत लोगों को इस तरह की एलर्जी है।
हालांकि अच्छी खबर ये है कि धूल के कण अपने साथ एलर्जी या दमा प्रतिक्रियाओं के सिवा वे और किसी रोग को नहीं फैलाते। लेकिन फिर भी इसका मतलब ये नहीं कि आप अपने पुराने तकिये में समाए हजारों एलर्जिक धूल कणों में सोएं।
तकिये पर शोध
द ब्राट्स और द लंदन एनएचएस ट्रस्ट द्वारा किए एक शोध के असुसार आपके तकिए के वजन का एक तिहाई भाग कीटाणुओं, मृत त्वचा, धूल और कीटाणुओं के मल से भरा होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार अस्पतालों के तकिए की हालत तो घर के तकियों से कई गुना ज्यादा खराब होती है। उसमें एमआरएसए, सी डिफ, फ्लू, चेचक और यहां तक कि कुष्ठ रोग के जीवाणु भी हो पाये जा सकते हैं।
कुछ समय पूर्व आई डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, शोध के लेखक डॉक्टर आर्थर टुकेर ने इस संदर्भ में बताया था कि लोग तकिए पर नया लिहाफ लगा कर उसे साफ और स्वच्छ समझने लगते हैं, लेकिन वे यह नहीं जानते कि वे इस तरह कीटाणुओं को चादर ओढ़ा रहे हैं। टुकेर के अनुसार तकिए में पनपने वाले कुछ कीटाणुओं और जीवाणुओं को कभी धोया या मारा नहीं जा सकता। इनसे ई-कोलाई संक्रमण, सांस तथा पेशाब संबंधी परेशानियां हो सकती हैं।