पैंक्रिएटिक कैंसर को अग्नाश्य का कैंसर भी कहते है। प्रत्येक वर्ष लाखों लोगों की इस बीमारी के कारण मौत हो जाती है। आंकड़ों के अनुसार, 5 प्रतिशत से कम लोग ही इस बीमारी से बच पाते हैं। इसे साइलेंट किलर भी कहते है, क्योंकि शुरुआत में इस कैंसर को लक्षणों के आधार पर पहचाना जाना मुश्किल होता है और बाद के लक्षण प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं। लेकिन एक नए शोध से शोधकर्ताओं ने पाया है कि एथेरोस्केरोसिस (धमनियों के अंदर का प्लॉक) के इलाज के लिए ईजाद दवा का इस्तेमाल पैंक्रिएटिक कैंसर के इलाज में हो सकता है।
एथेरोस्केरोसिस से दिल के रोग का खतरा बढ़ जाता है। एथेरोस्केरोसिस वसा, कोलेस्ट्रॉल और धमनियों के अंदर के दूसरे पदार्थो से बनता है, जिससे रक्त प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होता है। नए शोध से यह खुलासा हुआ है कि कोलेस्ट्रॉल मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करने से पैंक्रिएटिक की कैंसरग्रस्त कोशिकाओं की मेटास्टासिस प्रक्रिया रुक जाती है। मेटास्टासिस प्रक्रिया से ही कैंसरग्रस्त कोशिकाएं दूसरी स्वस्थ कोशिकाओं को अपनी चपेट में लेती हैं।
शोध के अनुसार
अमेरिका के परडू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीन शिन चेंग के अनुसार, 'हमें पहली बार पता चला है कि अगर आप कोलेस्ट्रॉल मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित कर दें तो आप पैंक्रिएटिक के कैंसर को दूसरे अंगों तक फैलने से रोक सकते हैं।' चांग कहते हैं, 'हमने जांच के लिए पैंक्रिएटिक के कैंसर का चयन इसलिए किया, क्योंकि यह सभी तरह के कैंसर में सबसे खतरनाक माना जाता है।' यह शोध ओंकोजेन नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
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शोध के निष्कर्ष
इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर जिंगवू शी बताते हैं, 'इस शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि कोलेस्ट्रॉल इस्ट्रीफिकेशन को रोक कर मेटास्टेटिक पैंक्रिएटिक कैंसर का इलाज किया जा सकता है।' इस शोध के निष्कर्षो से पता चला है कि एथेरोस्केरोसिस के इलाज के लिए विकसित की गई एवासिमिबे जैसी दवाइयों से कोलेस्ट्रॉल इस्टर को रोका जा सकता है। पैंक्रिएटिक कैंसर से पीड़ित मरीज इस बीमारी का पता लगने के बाद काफी कम समय तक जीवित रह पाता है। चांग का कहना है, 'उम्मीद है कि नए इलाज से पैंक्रिएटिक कैंसर से पीड़ित मरीजों की जिन्दगी कम से कम एक साल बढ़ाई जा सकती है।'
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