जानिये किस उम्र में कौन सा सप्लीमेंट आपके शिशु के लिए है जरूरी

हर मां यही सोचती है कि उसके बच्चे का विकास ठीक से हो और उसके विकास के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व उसे मिल जाएं। अगर आपकी भी यही परेशानी है तो हम आपको बता रहे हैं कि आपको अपने बच्चे को किस उम्र तक कौन सा सप्लीमेंट देना चाहिए।
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जानिये किस उम्र में कौन सा सप्लीमेंट आपके शिशु के लिए है जरूरी

मां बनने का सुखद एहसास होते ही आपने भी अपने शिशु के लिए तमाम सपने संजोने शुरू कर दिये होंगे। बच्चे के जन्म के साथ ही मां उसके स्वास्थ्य और विकास के बारे में सोचने लगती है। इसलिए ब्रेस्टफीडिंग हो या बच्चों को जरूरी सप्लीमेंट्स देना, मां को हर बात की एक्स्ट्रा चिंता होती है। हर मां यही सोचती है कि उसके बच्चे का विकास ठीक से हो और उसके विकास के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व उसे मिल जाएं। अगर आपकी भी यही परेशानी है तो हम आपको बता रहे हैं कि आपको अपने बच्चे को किस उम्र तक कौन सा सप्लीमेंट देना चाहिए, ताकि उसका मानसिक और शारीरिक विकास अच्छी तरह हो सके।

आयरन

आयरन शरीर में रक्त प्रवाह के लिए और दिमाग के लिए जरूरी तत्व है। अगर मां को एनीमिया की गंभीर शिकायत नहीं है तो मां के दूध में आयरन की मात्रा भरपूर होती है, जो बच्चे के लिए पर्याप्त है। लेकिन जब बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाता है और खाना खाने लगता है या बैठने और चलने लगता है तो उसे आयरन की जरूरत ज्यादा मात्रा में पड़ती है, जो सिर्फ मां के दूध या फार्मूला मिल्क से नहीं पूरी हो सकती है। इसलिए जब बच्चा खाने लग जाए तो उसे हरी सब्जियां खिलाएं और दूध पिलाएं। ज्यादातर प्रीमेच्योर डिलीवरी वाले बच्चों में आयरन की कमी होती है इसलिए उन्हें आयरन सप्लीमेंट देना पड़ता है या कई बार जन्म से कमजोर बच्चों में दो-तीन साल तक आयरन सप्लीमेंट देने की जरूरत पड़ती है।

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विटामिन डी

हड्डियों के विकास और रिकेट्स जैसी बीमारियों से बचाव के लिए विटामिन डी बहुत जरूरी होता है। मां के दूध में विटामिन डी होता है मगर देखा गया है कि जन्म के बाद ज्यादातर मांओं में विटामिन डी की कमी हो जाती है इसलिए बच्चों को इसे सप्लीमेंट के तौर पर देना चाहिए। विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत सूरज की किरणें हैं लेकिन 6 माह से कम के शिशु के लिए ये किरणें हानिकारक हो सकती हैं। इसके लिए तरल विटामिन डी को ड्रापर की सहायता से शिशु को पिलाया जाता है। विटामिन डी की जरूरत बच्चों को जन्म से 2 साल तक होती है।

अन्य विटामिन्स

जन्म के बाद से ही सम्पूर्ण विकास के लिए बच्चों के शरीर को ढेर सारे विटामिन्स की जरूरत पड़ती है। इनमें विटामिन ए, विटामिन डी, विटामिन के, विटामिन ई और विटामिन बी12 प्रमुख हैं। जन्म के तुरंत बाद बच्चों को विटामिन के की डोज दी जाती है ताकि उनके दिमाग की नसों को ब्लीडिंग से बचाया जा सके। जबकि एक साल के बच्चे को विटामिन ए, विटामिन डी और विटामिन ई की जरूरत पड़ती है। विटामिन बी12 की मात्रा सबसे ज्यादा अंडे, मीट, डेरी प्रोडक्ट्स आदि में पाई जाती है। गर्भावस्था से ही आपको इन चीजों का सेवन करना चाहिए जिससे बच्चे को विटामिन बी12 की कमी न हो और स्तनपान के साथ ही बच्चों को ये विटामिन आपके द्वारा मिल सके। बच्चे में अगर इस विटामिन की कमी होती है तो इसे सप्लीमेंट के तौर पर दिया जाता है। विटामिन बी12 की कमी की संभावना उन मांओं और बच्चों में ज्यादा होती है, जो पूरी तरह शाकाहारी होते हैं।

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डीएचए

डीएचए दिमागी विकास और आंखों के लिए बहुत जरूरी है। डीएचए ओमेगा-3 फैटी एसिड का ही रूप एक रूप होता है जो बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। मां के दूध में इसकी मात्रा होती है। डीएचए की मात्रा मीट, मछली और हरी सब्जियों और केले में खूब पाई जाती है इसलिए बच्चे के जन्म के साथ ही आपको इन चीजों का भरपूर सेवन करना चाहिए। आमतौर पर शाकाहारी मांओं के बच्चों को इस सप्लीमेंट की जरूरत नहीं पड़ती है।

फ्लोराइड

फ्लोराइड की जरूरत हर बच्चे को नहीं होती है इसलिए इसकी जरूरत के संबंध में आपको अपने डॉक्टर से संपर्क कर लेना चाहिए। दांतों के विकास और मसूड़ों की मजबूती के लिए फ्लोराइड महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन फ्लोराइड सप्लीमेंट सिर्फ डॉक्टर की सलाह पर ही देना चाहिए।

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