स्‍कूल जाने से नहीं रोएगा आपका बच्‍चा, घर में करें सिर्फ ये छोटा सा काम

स्कूल के नाम पर कभी पेट में दर्द होने लगता है तो कभी बुखार सा महसूस होता है, कभी कोई और शिकायत हो जाती है। यदि वे अकसर ऐसे बहाने बना रहे हों तो इन्हें नज़रअंदाज़ न करें क्योंकि ऐसा कुछ गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण भी हो सकता है।
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स्‍कूल जाने से नहीं रोएगा आपका बच्‍चा, घर में करें सिर्फ ये छोटा सा काम

बच्चों के पास स्कूल न जाने का बहाना हमेशा तैयार रहता है। स्कूल के नाम पर कभी पेट में दर्द होने लगता है तो कभी बुखार सा महसूस होता है, कभी कोई और शिकायत हो जाती है। यदि वे अकसर ऐसे बहाने बना रहे हों तो इन्हें नज़रअंदाज़ न करें क्योंकि ऐसा कुछ गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण भी हो सकता है।

अगर स्कूल जाने में आनाकानी करने की समस्या केवल शुरुआती दिनों में ही हो तो इसे कुछ समय के लिए अनदेखा किया जा सकता है...लेकिन जब नियमित स्कूल जाने वाले बच्चे अकसर स्कूल जाने के नाम पर कतराने लगें तो इस समस्या पर गंभीरता से विचार करना बहुत ज़रूरी है। कई बार कुछ मनोवैज्ञानिक समस्याओं की वजह से भी बच्चों के व्यवहार में बदलाव नज़र आता है।

क्यों घबराते हैं बच्चे

जब बच्चे प्ले स्कूल जाना शुरू करते हैं तो पहली बार घरवालों से कई घंटों के लिए दूर होने की वजह से वे घबराने लगते हैं। ज़रूरी नहीं है कि सबके साथ ऐसा हो पर कुछ बच्चे स्कूल जाने के नाम से ही रोने लगते हैं। न सि$र्फ प्ले स्कूल वाले बल्कि कई बार बड़े बच्चे भी स्कूल जाने में आनाकानी करने लगते हैं। यह पूरी तरह से मनोवैज्ञानिक समस्या है। अगर चार से आठ साल की आयु वर्ग वाले बच्चे ऐसा करते हैं तो इसका कारण अकसर सेपरेशन एंग्ज़ायटी होता है।

कभी-कभी उनके मन में यह डर बैठ जाता है कि स्कूल में छोड़ कर जाने के बाद घरवाले उन्हें वापस लेने आएंगे भी या नहीं? वहीं कुछ बच्चे स्वभाव से बहुत जि़द्दी होते हैं, वे स्कूल में भी घर की तरह मनमानी करना चाहते हैं और वहां के अनुशासित माहौल से घबराकर स्कूल जाने से कतराने लगते हैं। अगर बच्चे को पहले से ही मानसिक रूप से तैयार न किया जाए तो स्कूल के नए माहौल के साथ एडजस्टमेंट में उन्हें भी बहुत परेशानी होती है।

चाहे बच्चे छोटे हों या बड़े, अगर वे लगातार स्कूल जाने से घबरा रहे हों, बीमारी का बहाना बनाकर घर पर ही रुक रहे हों या स्कूल से लौटने के बाद बहुत उदास या सुस्त नज़र आएं तो पेरेंट्स को इस समस्या की असली वजह जानने की कोशिश करनी चाहिए। अगर वे स्कूल में अपनी दिनचर्या के बारे में ढंग से न बता पा रहे हों, तब भी चाइल्ड अब्यूज़ और क्लासरूम बुलिंग की बढ़ती घटनाओं को मद्देनज़र रखते हुए पेरेंट्स को इस समस्या की गंभीरता समझते हुए उसका हल ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए।

जानें स्कूल रिफ्यूज़ल के कारण

स्कूल में बच्चों को घर से बिलकुल अलग माहौल मिलता है। वहां उसे बिलकुल नए चेहरे नज़र आते हैं और वहां उन्हें एक अनुशासित दिनचर्या का पालन करना पड़ता है। जिन बच्चों के साथ घर पर अनावश्यक लाड़-प्यार भरा व्यवहार किया जाता है, वे बाहर भी इसी की उम्मीद रखते हैं। जब स्कूल में उन्हें वह $खास केयर और अटेंशन नहीं मिल पाती है तो वे वहां जाने से कतराने लगते हैं। इसके अलावा कुछ बच्चे इन वजहों से भी स्कूल जाने से मना करते हैं  :

  • क्लास में किसी दूसरे बच्चे से परेशानी
  • पढ़ाई समझने में दिक्कत
  • किसी टीचर का सख्ती भरा व्यवहर
  • कई बार सज़ा या सीनियर द्वारा चिढ़ाए जाने के डर से भी वे नहीं जाना चाहते।

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क्या करें अभिभावक

अगर स्कूल जाते समय कोई बच्चा अकसर बहाने बनाए तो पेरेंट्स का परेशान होना स्वाभाविक है। कभी वे उन्हें डांट देते हैं तो कभी उनके आंसुओं के आगे पिघल भी जाते हैं पर ऐसा करना इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। अगर आपके बच्चे भी ऐसा करते हैं तो सचेत ढंग से इन सुझावों पर अमल करें :

  • सबसे पहले उसकी क्लास टीचर से बातचीत करके उसके रोने का असली कारण जानने की कोशिश करें।
  • उनसे ऐसा व्यवहार बनाकर रखें कि वे अपनी परेशानियां आपसे बांट सकें (न तो ज़्यादा स्ट्रिक्ट हों, न बहुत ढील दें)।
  • जब वे स्कूल से आएं तो वहां के माहौल, टीचर्स और क्लासमेट्स के बारे में उनसे ज़रूर बात करें।
  • अगर बच्चा अपनी कोई समस्या आपसे बांट रहा हो तो उसे धैर्यपूर्वक सुनने के बाद उसका समाधान निकालें।
  • रोज़ाना स्कूल जाते और लौटते समय आप  खुद उसे बस स्टॉप तक छोडऩे-लेने जाएं।
  • घर पर उसके सोने-जागने का सही समय निर्धारित करें।
  • बच्चों के साथ खेलने के लिए समय निकालें। कभी पार्क ले जाएं तो कभी घर पर ही खेलें।
  • अगर आप व्यस्त हों तो टीवी का रिमोट या मोबाइल थमाने के बजाय आउटडोर गेम्स की अहमियत समझाएं।
  • जब आपको लगे कि बच्चा कुछ परेशान है तो उसके टीचर्स से संपर्क ज़रूर करें।

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बच्चे पर ध्यान देने और उसके साथ समय बिताने पर हर समस्या का समाधान हो सकता है। उस पर विश्वास करने के साथ ही उसके मन में अपने प्रति भरोसा भी जगाएं, ताकि वह अपनी बातें आपसे शेयर कर सके। बेहतर होगा, यदि बच्चों के साथ होने वाली हिंसक घटनाओं का जि़क्र उनके सामने न किया जाए। सच्ची घटनाओं पर आधारित टीवी शोज़ में भी स्कूल से जुड़े एपिसोड्स दिखाए जाते हैं। हो सके तो उन्हें बच्चों के सामने न देखें पर समय-समय पर उन्हें सचेत ज़रूर करते रहें, ताकि वे अच्छे व बुरे का फर्क समझ सकें। अगर कभी लगे कि बच्चे को काउंसलिंग की ज़रूरत है तो क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट से सलाह अवश्य लें। ध्यान दें टीचर्स भीस्कूल पहुंचने के बाद बच्चा टीचर्स की जि़म्मेदारी बन जाता है। इन्‍सलिए उन्हें भी इन बातों का ध्यान रखना चाहिए :

  • अगर कोई बच्चा अकसर उदास रहता है तो पेरेंट्स से वजह जानने की कोशिश करें।
  • स्टूडेंट्स को आपस में घुलने-मिलने का मौका अवश्य दें।
  • उनकी शिकायतों को भी गंभीरता से सुनें
  • उसे खेलकूद जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित करें।
  • बच्चे के हर अच्छे व्यवहार की प्रशंसा करें और शाबाशी दें,  इससे वह खुश होकर स्कूल जाने को प्रेरित होगा।   

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