अर्थराइटिस को केवल बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था, लेकिन बदलते वक्त में अब ऐसा नहीं रहा है। अर्थराइटिस अब न केवल कम उम्र के लोगों को अपना शिकार बना रही है, बल्कि साथ ही साथ बच्चे भी इसका शिकार हो रहे हैं।
वैसे तो यह कहा जाता है कि बचपन निर्दोष मज़ा और लापरवाह खुशी का समय होता है लेकिन बहुत सी बीमारियां, उनकी जांच और थेरेपी बच्चों को उनके बचपन से दूर कर रही हैं। ऐसी ही बीमारियों में से एक है, ‘जूवेनाइल रयूमेटायड आर्थराइटिस‘।
जूवेनाइल रयूमेटायड आर्थराइटिस‘ एक आटोइम्यून डिज़ार्डर है, जिसका अर्थ है शरीर अपने ही सेल्स को नहीं पहचान पाता। हमारा इम्यून सिस्टम जो कि नुकसान पहुंचाने वाले बाहरी पदार्थों को शरीर के अन्दर आने से रोकता है, वह अपने ही स्वस्थ्य सेल्स और टिश्यूज़ पर अटैक करता है। इसके परिणाम स्वरूप शरीर का नैचुरल डिफेंस काम करता है, जिससे शरीर में सूजन होती है और इस बीमारी को जूवेनाइल र्यूमेटरयड आर्थराइटिस कहते हैं।
अगर आपका बच्चा जोड़ों में दर्द की शिकायत करे तो उसे उसके खेल की वजह मान कर टालने के बजाय डॉक्टर के पास ले जाएं और जांच कराएं कि कहीं आपका लाडला जुवेनाइल अर्थराइटिस से पीड़ित तो नहीं है। अर्थराइटिस केवल बुजुर्गों की बीमारी नहीं है।
जूवेनाइल आर्थराइटिस मुख्यतः तीन तरीके के होते हैं जैसे पालीआर्टिकुलर, पाउकीआर्टिकुलर और सिस्टमिक जूवेनाइल रयूमेटायड आर्थराइटिस। वैज्ञानिक ऐसा पता लगाने मे असमर्थ रहे हैं कि बच्चों में जूवेनाइल र्यूमेटरयड आर्थराइटिस क्यों होता है और वो इसे दो स्टेप में होनेवाली प्रक्रिया मानते हैं। पहला यह कि बच्चांे के जेनेटिक मेक अप में होने वाली गड़बड़ी से यह बीमारी हो सकती है। दूसरे प्राकृतिक कारण जैसे वायरस भी ऐसी बीमारी के कारक हो सकते हैं।
जे आर ए के सबसे आम लक्षण हैं लगातार सूजन, दर्द, अकड़न जो सुबह या सोकर उठने के बाद बहुत तीव्र हो जाती है। जे आर ए अकसर हाथों और पैरों के जोड़ों और घुटनों को प्रभावित करता है। इस बीमारी का सबसे पहला लक्षण है कि सुबह उठने पर व्यक्ति को लंगड़ापन महसूस होता है। दूसरा लक्षण है तेज़ बुखार और त्वचा पर रैशेज़ पड़ना, लिम्फ नोड्स में सूजन जो कि गले में और शरीर के दूसरे भागों में होती हैं। कुछ स्थितियों में हृदय जैसा इन्टर्नल आर्गन भी प्रभावित होता है और कभी-कभी गुर्दे भी प्रभावी होते हैं। बहुत कम स्थितियों में आंखों में सूजन जैसी परेशानी भी होती है। रयूमेटालाजिस्ट से सम्पर्क करने के बाद बच्चांे में बहुत से तरीके अपनाकर इस बीमारी के प्रभाव को कम किया जा सकता है। ऐसे ही कुछ तरीके हैं:
व्यायाम
ऐसे बच्चे जो जूवेनाइल र्यूमेटरयड आर्थराइटिस से परेशान हैं, उन्हें अपने जोड़ों और मांस पेशियों को मजबूत बनाने के लिए प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए। अगर आपका बच्चा 4 साल से कम उम्र का है तो आपको उसको जोड़ों के प्रयोग वाले व्यायाम कराने चाहिए। 4 साल से अधिक उम्र के बच्चे स्वयं व्यायाम कर सकते हैं ,लेकिन उन्हें बड़ों की सलाह की ज़रूरत होती है। स्वीमिंग और साइकलिंग जैसी क्रिया में भाग लेने से भी बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है और दर्द और विकलांगता से भी उनका बचाव मुमकिन है।
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आराम और संतुलन साधने की गतिविधि
वो बच्चे जो जे आर ए से प्रभावित होते हैं उन्हें सामान्य बच्चों की तुलना में दिनभर में अधिक आराम की ज़रूरत होती है। लेकिन अधिक समय तक आराम करने और व्यायाम ना करने से जोड़ और मांस पेशियां लचीली नहीं होतीं और कमज़ोर होती हैं। ऐसे में बहुत ज़्यादा व्यायाम भी नहीं करना चाहिए खासकर तब जब पहले से ही दर्द हो रहा हो।
सहायक उपकरण
ऐसी चीजें जो आपके बच्चे को पकड़ने, खोलने-बन्द करने और काम करने में सहायक होती हैं
- डोरनाब एक्सटेंडर्स जिनसे दरवाजे़ खोलते समय कलाई ना मुड़े।
- चाबी, पेंसिल ,कंघी और टूथब्रश के बढ़े हुए हत्थे जिनसे इन सामानों को उठाने में आसानी।
- हल्के कपड़े पहनना,जिससे चलने फिरने में आसानी हो।
- आर्थराइटिस से प्रभावित बच्चांे के खिलौने भी हल्के होने चाहिए जिससे उन्हें खेलने में आसानी हो।
- कपड़ों में छोटे बटन की जगह लार्ज फास्टेनर या वैल्क्रो फास्टेनर लगायें ।
- ज़िपिंग को आसान बनाने के लिए ज़िप की जगह एक बड़ा पुल टैब लगायें।
- बच्चे को झुकना ना पड़े इसलिए ऊंचे टॉयलेट सीट्स बनवायें ।
- अगर बच्चे को चलने में ज़्यादा परेशानी है, तो वह बैसाखी का प्रयोग भी कर सकता है।
स्कूल को संबोधित करने वाले मुद्दे:
बच्चे के टीचर ,स्कूल नर्स ,कैफेटेरिया स्टाफ और फीज़िकल स्कूल टीचर्स उसके अच्छे दोस्त हो सकते हैं। अगर आपके बच्चे को क्लास तक जाने में परेशानी हो रही है, तो शायद टीचर्स उसकी मदद कर सकते हैं । अगर बच्चा ठीक प्रकार से लिख नहीं पा रहा तो उसे एक लम्बी पेंसिल या पेन दें। बच्चे को भी अपनी स्थितियों को समझना चाहिए ,लेकिन उसे दूसरे बच्चों से अलग नहीं रखना चाहिए। जे आर ए में बच्चे की साइकालाजिकल स्थितियों को भी समझना चाहिए।
ऐसे में बच्चे को परिवार और दोस्तों का समर्थन चाहिए होता है और यह बीमारी एक स्वस्थ बचपन को अपंग नहीं बना सकती।
Image Courtesy- getty images
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