World Chronic Fatigue Syndrome Awareness Day: थोड़ा काम करते ही ज्यादा थकान है क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम का संकेत

अगर आप थोड़ा सा काम करते ही बहुत अधिक थक जाते हैं या सोकर उठने पर भी सुबह आलस और थकान महसूस होती है, तो आप क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम का शिकार हो सकते हैं।
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World Chronic Fatigue Syndrome Awareness Day: थोड़ा काम करते ही ज्यादा थकान है क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम का संकेत

12 मई को दुनियाभर में वर्ल्ड क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम अवेयरनेस डे (World Chronic Fatigue Syndrome Awareness Day ) के रूप में मनाया जाता है। ये दिन इसलिए खास है क्योंकि इसी दिन मॉडर्न नर्सिंग को जन्म देने वाली फ्लोरेंस नाइटेंगल (Florence Nightingale) का जन्मदिन होता है। क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम एक ऐसी समस्या है, जो काफी लोगों में पाई जाती है, मगर जानकारी के अभाव में लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम (Chronic Fatigue Syndrome) को फाइब्रोमिल्गिया (fibromyalgia) भी कहा जाता है।

क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम एक ऐसा डिसऑर्डर है, जिसमें व्यक्ति को बहुत ज्यादा थकान का अनुभव होता है। खास बात ये है कि इस थकान का कोई मेडिकल कारण बताना मुश्किल होता है। क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम का शिकार व्यक्ति किसी भी तरह के शारीरिक या मानसिक काम को करते हुए बहुत जल्दी थक जाता है, और फिर आराम करने के बाद भी उसकी थकान मिटती नहीं है। ये समस्या लोगों को क्यों होती है, इस बारे में कोई वैज्ञानिक जानकारी नहीं है, लेकिन बहुत सारे वैज्ञानिक इसे स्ट्रेस (तनाव) से जोड़कर देखते हैं।

fatigue

क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम के लक्षण

  • जरा से काम से ही बहुत अधिक थकान लग जाना
  • याददाश्त का कमजोर हो जाना
  • किसी भी काम में ध्यान केंद्रित न कर पाना
  • गले में खराश और कड़वापन घुला रहना
  • गर्दन या कांख (आर्म पिट्स) में लिम्फ नोड्स का बढ़ जाना
  • शरीर और जोड़ों में बिना किसी कारण दर्द होना
  • तेज सिरदर्द होना
  • सोने के बाद सुबह उठने पर भी थकावट महसूस होना
  • किसी भी तरह के शारीरिक या मानसिक काम के बाद 24 घंटे से ज्यादा समय तक थकान महसूस होना।

किन्हें होता है क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम का खतरा?

लक्षणों के आधार पर इस बीमारी को समझा जा सकता है। लेकिन इसे कंफर्म करने के लिए कोई एक विशेष टेस्ट नहीं है। बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर्स परिस्थिति और लक्षणों के आधार पर कई टेस्ट करवा सकते हैं। आमतौर पर ये बीमारी सबसे ज्यादा 40 से 50 साल की उम्र के लोगों को परेशान करती है। वैसे तो ये समस्या किसी को भी हो सकती है, लेकिन महिलाएं इसका ज्यादा शिकार होती हैं। इसके अलावा ऐसे लोग भी इस सिंड्रोम का शिकार होते हैं, जो बहुत अधिक तनाव लेते हैं।

क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम के खतरे क्या हैं?

वैसे तो ये सिंड्रोम कोई विशेष खतरा नहीं पैदा करता है। लेकिन कई बार बहुत अधिक थकान के कारण व्यक्ति को कई तरह की परेशानियां होती हैं, जिसके कारण उसका आत्मविश्वास डिगता है। यही कारण है कि बहुत सारे लोग इस बीमारी के बाद सामान्य रूप से लोगों से घुल-मिल नहीं पाते हैं, जिसके कारण डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। वहीं इस सिंड्रोम का असर व्यक्ति की प्रोफेशनल लाइफ पर भी पड़ता है और कई बार व्यक्ति इतना सुस्त और थका हुआ लगता है कि उसके रोजमर्रा के काम भी प्रभावित होने लगते हैं।

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क्या है क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम का कारण?

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम का कोई एक विशेष कारण नहीं है। वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुभव के आधार पर ये बीमारी आमतौर पर लोगों को 3 कारणों से होती है। पहला जब उनके शरीर में हार्मोन्स का असंतुलन होता है, दूसरा जब उनका इम्यून सिस्टम ही उनका दुश्मन बन जाता है और समस्याएं पैदा करने लगता है और तीसरा किसी वायरल बीमारी के कारण। इन सभी में तनाव भी एक बड़ा कारण होता है इस सिंड्रोम के लिए।

कैसे होता है इलाज?

अगर किसी व्यक्ति को क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम के ऊपर बताए गए लक्षण महसूस होते हैं, तो उसे बिना देरी किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। लक्षणों के आधार पर डॉक्टर इसका इलाज करना शुरू करते हैं। कुछ मामलों में मनोवैज्ञानिकों की मदद लेनी पड़ती है। लेकिन दवाओं, थेरेपी और साइकोलॉजिकल मदद के द्वारा इस सिंड्रोम को ठीक किया जा सकता है।

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