कोई भी व्यक्ति इन दिनों अपनी नींद के रूटीन के बारे में कैसे खुद को जाहिर करेगा? ये एक ऐसा सवाल है, जिसपर किसी का भी सिर चकरा सकता है। और हो भी क्यों न वर्क फ्रॉम होम ने सभी को परेशान कर रख दिया है। अगर इस सवाल पर आप भी अपनी आंखें ऊपर-नीचे कर रहे हैं तो आप भी इसी समस्या का शिकार हैं। दरअसल घर से काम करते-करते आप अपने काम से डिस्कनेक्ट होने और कुछ देर के लिए आंखें बंद करने को भी संघर्ष करते हैं और इस समस्या में आप अकेले नहीं हैं। एक तरफ जहां हम सोशल डिस्टेंसिंग, चेहरे को ढंकने और लगातार हाथ धोने की नई दुनिया में अपनी पकड़ बना रहे हैं वहीं दूसरी तरफ दुनिया भर के लोग नींद की आदतों में व्यवधान का सामना कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप नींद खराब हो रही है और शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है।
अध्ययन में हुआ इस बात का खुलासा
जर्नल ऑफ ट्रांसलेशनल मेडिसिन में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, महामारी के कारण हमारी जीवन शैली में बड़े पैमाने पर बदलाव ने हमारी नींद की गुणवत्ता को महत्वपूर्ण तरीके से प्रभावित किया है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में शामिल प्रतिभागियों की नींद की क्षमता, सोने के समय में कमी, नींद की गुणवत्ता और दिन की नींद में प्रतिकूल बदलाव देखा। अध्ययन 18 से 65 वर्ष की आयु के बीच 121 पुरुषों और महिलाओं पर किया गया था। उनकी नींद की आदतों की निगरानी एक बार पहले और फिर 40 दिन बाद क्वारंटाइन से की गई। डेटा इकठ्ठा करने के बाद, पिट्सबर्ग स्लीप क्वालिटी इंडेक्स (पीएसक्यूआई) का उपयोग करके उनकी नींद की गुणवत्ता की जांच की गई और उनके बीएमआई को भी नोट किया गया।
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क्या कहते हैं अध्ययन के निष्कर्ष
शोध में पाया गया कि सभी प्रतिभागियों ने PSQI स्कोर में वृद्धि का उल्लेख किया, जो वास्तव में क्वारंटाइन के बाद खराब हो चुकी नींद की गुणवत्ता को दर्शाता है। डज सार्स कोवि 2 थ्रेटन यूर ड्रीम्स नाम के इस अध्ययन में नींद की गुणवत्ता और बॉडी मास इंडेक्स पर क्वारंटाइन का प्रभाव और नींद की खराब गुणवत्ता व बढ़ी हुई नींद के बीच नाटकीय रूप से एक संबंध को रेखांकित किया है।
आपका वर्क फ्रॉम होम आपको सोने नहीं दे रहा
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि PSQI स्कोर उन व्यक्तियों में अधिक था जो घर से काम कर रहे थे और दिन भर काम करने के लिए स्मार्ट उपकरणों का इस्तेमाल करते थे। शोधकर्ताओं का मानना है कि घर से काम करते समय स्क्रीन समय में वृद्धि नींद की गुणवत्ता को प्रभावित करती है और खराब नींद में एक बड़ी भूमिका निभाती है। अध्ययन में शामिल प्रतिभागियों ने अपनी शारीरिक गतिविधियों में भी कमी देखी और महामारी के दौरान अस्वास्थ्यकर भोजन विकल्प बनाने की उनकी प्रवृत्ति बढ़ गई।
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अध्ययन से क्या सीखने की जरूरत
वैज्ञानिकों ने समझाया है कि स्क्रीन-टाइम में वृद्धि, खराब खाने की आदतों और शारीरिक गतिविधियों में भारी कमी ने भी नींद के चक्र को प्रभावित किया। इसके अतिरिक्त, महामारी से संबंधित चिंता के एक बढ़े स्तर ने भी खराब नींद और नींद को बाधित करने के दुष्चक्र को बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। जैसा कि हम नए सामान्य नियमों को अपने जीवन का हिस्सा बना रहे हैं इसमें यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम अपनी नींद के पैटर्न का मूल्यांकन करने और संभावित व्यवधानों को देखने के लिए जागरूक प्रयास करें।
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