महिलाओं की लाइफस्टाइल में हुए बदलाव का असर उनकी सेहत पर देखने को मिलता है। आज के समय में पीसीओएस और मोटापे से हर दूसरी महिला परेशान है। लेकिन, इन दोनों ही लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्याओं को समय पर नियंत्रित करना बेहद आवश्यक है। यदि, इन्हें नियंत्रित नहीं किया गया तो ऐसे में पीसीओएस और मोटापे से ग्रस्त महिलाओं के बच्चों को कई तरह की स्वास्थ संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इस बात का खुलासा हाल में एक स्टडी से हुआ है। दरअसल, पीसीओएस की वजह से महिलाओं के शरीर के हार्मोन में तेजी उतार चढ़ाव होता है। ऐसे में यदि इस समस्या को कंट्रोल न किया जाए तो यह गर्भवस्थ शिशु के वजन, लंबाई और सिर के आकार को प्रभावित कर सकता है। इस लेख में आगे साईं पॉलिक्निक की सीनियर गाइनाक्लोजिस्ट डॉ. विभा बंसल से जानते हैं कि महिलाओं के पीसीओएस और मोटापे से उनके बच्चों को क्या स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं?
क्या वाकई PCOS और मोटापे से ग्रस्त महिलाओं के शिशुओं की लंबाई कम होती है? - Women PCOS And Obesity Can Increase The Risk Of Smaller Size Of Babies In Hindi
महिलाओं के पीसीओएस और मोटापे से जुड़ी यह स्टडी नॉर्वेजियन यूनिर्वसिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी द्वारा आयोजित की जाती है। इसके आधार पर जो चीजें सामने आई उसको आगे बताया गया है।
पीसीओएस (PCOS) का प्रेग्नेंसी और शिशु पर प्रभाव
पीसीओएस एक हार्मोनल विकार है, जिसमें महिलाओं की ओवरी में छोटे-छोटे सिस्ट बन जाते हैं। इस स्थिति में शरीर में हार्मोनल असंतुलन हो जाता है, जिससे इंसुलिन रेजिस्टेंस और टेस्टोस्टेरोन का स्तर बढ़ जाता है। पीसीओएस की वजह से गर्भधारण में भी कठिनाई हो सकती है। वहीं गर्भावस्था के दौरान गर्भ में शिशु के विकास को भी प्रभावित कर सकता है। इंसुलिन रेजिस्टेंस पाया जाता है, जिससे गर्भावस्था में शिशु को पोषण में समस्या हो सकती है। इससे बच्चे की ग्रोथ धीमी पड़ सकती है।
मोटापा का प्रेग्नेंसी और शिशु पर क्या प्रभाव पड़ता है?
प्रेग्नेंसी के समय मोटापे से जटिलताएं बढ़ सकती हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान अधिक वजन से ब्लड शुगर का स्तर बढ़ सकता है। इससे जेस्टेशनल डायबिटीज हो सकती है। यह शिशु की ग्रोथ को प्रभावित कर सकती है। इससे शिशु को ऑक्सीजन की आपूर्ति में रूकावटें आ सकती है। साथ ही, बच्चे का जन्म के समय आकार कम हो सकता है।
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पीसीओएस और मोटापा गर्भवती महिलाओं में शिशु के छोटे आकार और कम वजन का कारण बन सकते हैं। यह दोनों ही स्थितियां गर्भावस्था में जटिलताओं को बढ़ाती हैं और शिशु के विकास को प्रभावित कर सकती हैं। सही खानपान, नियमित शारीरिक गतिविधि, और डॉक्टर की देखरेख में रहकर इन जोखिमों को कम किया जा सकता है।