Neonatal Sepsis: नवजात शिशुओं की सेहत नाजुक होती है। जरा सी लापरवाही के कारण शिशुओं में संक्रमण और बीमारियां हो जाती हैं। नियोनेटल सेप्सिस उनमें से एक है। यह एक तरह का संक्रमण है, जो शिशु की इम्यूनिटी को प्रभावित करता है। शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। ऐसे में उनकी सेहत को नुकसान पहुंच सकता है। नियोनेटल सेप्सिस शरीर के एक या अनेक हिस्सों पर बुरा प्रभाव छोड़ सकता है। हालांकि यह एक प्रकार की दुर्लभ बीमारी है, लेकिन इसके लक्षण, कारण और इलाज के बारे में आपको भी पता होना चाहिए। इस लेख में जानेंगे नियोनेटल सेप्सिस के बारे में। इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने लखनऊ के डफरिन अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सलमान खान से बात की।
नियोनेटल सेप्सिस क्या है?- What is Neonatal Sepsis
नियोनेटल सेप्सिस नवजात शिशुओं में होने वाला एक संक्रमण है। यह संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है। नियोनेटल सेप्सिस बच्चों की सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। यह संक्रमण उन बच्चों में ज्यादा देखा जाता है जो कम वजन के साथ पैदा होते हैं। लड़कियों के मुकाबले, लड़कों में यह संक्रमण ज्यादा देखने को मिलता है। जो शिशु, हॉस्पिटल में इंटेंसिव केयर यूनिट में लंबे समय तक हॉस्पिटलाइज रहते हैं उनमें भी इस संक्रमण के लक्षण देखे जाते हैं।
नियोनेटल सेप्सिस के लक्षण- Neonatal Sepsis Symptoms
- दूध पीने में समस्या होना।
- उल्टी या बुखार होना।
- पेशाब की मात्रा में कमी होना।
- त्वचा की रंगत में बदलाव आना।
- शिशु की गतिविधि कम हो जाना।
- शिशु के रोने का पैटर्न बदल जाना।
- शरीर का तापमान बढ़ना।
- बेहोशी आना।
- डायरिया होना।
- सांस लेने में समस्या होना।
- पेट से संबंधित समस्याएं होना।
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नियोनेटल सेप्सिस का इलाज- Neonatal Sepsis Treatment
- एक्सरे, हेप्टोग्लोबिन टेस्ट, पेशाब की जांच, सीपीआर टेस्ट, पीसीटी टेस्ट आदि की मदद से नियोनेटल सेप्सिस का इलाज किया जाता है।
- नियोनेटल सेप्सिस होने पर बच्चे के प्लेटलेट काउंट को बढ़ाने पर जोर दिया जाता है।
- इसके अलावा शिशु को एंटीबायोटिक्स देकर इलाज किया जाता है।
- खून की कमी होने पर ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत भी पड़ सकती है।
- इस बीमारी के इलाज के लिए शिशु का तापमान स्थिर करने का प्रयास किया जाता है और उसे एंटीमाइक्रोबॉयल थेरेपी दी जाती है।
नियोनेटल सेप्सिस से नवजात शिशु को कैसे बचाएं?- How to Prevent Neonatal Sepsis
- अगर शुरुआत में ही नियोनेटल सेप्सिस की जांच कर ली जाए, तो शिशु को इस गंभीर समस्या से बचाया जा सकता है।
- गर्भावस्था के दौरान मां को डिलीवरी से पहले बुखार, यूटीआई जैसी समस्याओं के बारे में डॉक्टर को बताना चाहिए, इस तरह के संक्रमण से नियोनेटल सेप्सिस होने की आशंका बढ़ जाती है।
- शिशु को जन्म के समय सभी जरूरी टीके जैसे- न्यूमोकोकल वैक्सीन और हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा वैक्सीन लगनी चाहिए। इससे सेप्सिस जैसी बीमारियों से बचाव होता है।
- नवजात शिशु को संक्रमण से बचाने के लिए उसके आसपास सफाई बनाए रखें क्योंकि शिशु की इम्यूनिटी कमजोर होती है इसलिए उसका शरीर जल्दी इंंफेक्शन पकड़ लेता है।
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