आज कल यदि कोई बीमार पड़ जाए तो डॉक्टर कई सारे टेस्ट कराने की सलाह देते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सही तरीके से बीमारी का पता लगाकर उसका उपचार किया जा सके। आज के इस आर्टिकल में हम बात कर रहे हैं एलपीटी यानि (लिपिड प्रोफाइल टेस्ट) की। ये टेस्ट क्यों कराया जाता है, इसे कराने से किन-किन बातों का पता चलता है जानने के लिए जमशेदपुर के साकची के डॉक्टर (जनरल फिजिशियन) एम बक्शी से बात करेंगे। वहीं इससे जुड़ी हर अहम बात को जानेंगे।
क्या होता है लिपिड प्रोफाइल टेस्ट
डॉक्टर बताते हैं कि लिपिड प्रोफाइल टेस्ट के बारे में हर जानकारी जानने के लिए लिपिड क्या है ये जानना जरूरी होता है। लिपिड का अर्थ फैट होता है। हमारे शरीर के बाहर के पार्ट में फैट मौजूद होने के साथ खून की नली में भी फैट मौजूद होती है।
सामान्य सी ब्लड रिपोर्ट है ये टेस्ट
डॉक्टर बताते हैं कि लिपिड प्रोफाइल टेस्ट सामान्य सी ब्लड रिपोर्ट है। जिसमें वीन्स से ब्लड लेकर टेस्ट किया जाता है। खून में मौजूद फैट की मदद से कोलेस्ट्रोल, वीएलडीएल, एलडीएल, एचडीएल, ट्राईग्लिसराइड्स और कोलेस्ट्रोल का पता लगाया जाता है। हमारे शरीर में कितनी मात्रा में ये तत्व मौजूद हैं, इस टेस्ट को करवाने से पता चलता है।
इस टेस्ट को कब कराया जाता
डॉक्टर बताते हैं कि सामान्य तौर पर इस टेस्ट को ब्लड सैंपल देने के पूर्व 12 घंटों की फास्टिंग जरूरी होती है। इसलिए सुबह-सुबह खाली पेट इस टेस्ट को करवाने की सलाह दी जाती है। इस समय तक पानी को छोड़कर कुछ भी खाने-पीने की सलाह नहीं दी जाती है। ताकि रिपोर्ट में फैट की वैल्यू सही-सही मिल सके। यदि आपने कुछ खा लिया तो इसकी वैल्यू में भिन्नता आ सकती है।
किन लोगों को टेस्ट कराने की है जरूरत
डॉक्टर बताते हैं कि यदि आपकी उम्र 20 वर्ष के करीब है तो एक बार टेस्ट करा लें। ताकि आपको यह पता चल सके कि आपके खून में फैट की कितनी मात्रा है। अनुवांशिक कोई बीमारी है तो उसका भी पता चल जाता है, जिसके कारण गंभीर बीमारियों से पहले ही बचाव किया जा सकता है। इसके बाद 35 वर्ष की उम्र के बाद हर पांच साल में डॉक्टर इस टेस्ट को करवाने की सलाह देते हैं। ताकि खून में होने वाली गड़बड़ी का समय रहते पता चल सके। ताकि समय पर ट्रीटमेंट करवाकर, लाइफस्टाइल में बदलाव कर हार्ट और दिमाग संबंधी बीमारी से बचाव किया जा सके। यदि कोई गड़बड़ी रिपोर्ट में मिल जाए तो डॉक्टरी सलाह के बाद आपको हर साल इस जांच को करवाने की सलाह दी जाती है।
रिपोर्ट का है काफी महत्व
डॉ. अमिताभ बताते हैं कि इस रिपोर्ट का काफी महत्व होता है। क्योंकि लिपिड शरीर को एनर्जी देता है। वहीं हार्मोन के विकास में काफी अहम रोल अदा करता है। यदि इसकी मात्रा बढ़ जाए को खून की नली में फैट जमा होने की संभावना होती है। इस वजह से हार्ट की नलियों में फैट जमा होने के कारण हार्ट डिजीज, हार्ट अटैक, स्ट्रोक हार्ट जैसी बीमारी होने की संभावना रहती है। इस रिपोर्ट की जांच के बाद आप बीमारी से बचाव के लिए पहल कर सकते हैं। इसके लिए इलाज के साथ लाइफ स्टाइल मॉडिफिकेशन कर सकते हैं।
इस रिपोर्ट के जरिए डॉक्टर इन चीजों का लगाते हैं पता
डॉक्टर बताते हैं कि जब आप इस टेस्ट को करवाते हैं तो एक तरफ कोलेस्ट्रोल, ट्राइग्लिसराइड्स, एचडीएल, एलडीएल, वीएलडीएल, कोलेस्ट्रोल एलडीएल रेश्यो सहित अन्य अंकित होता है। इसके बाद रिजल्ट और रेफ्रेंस इंटर्वेल अंकित होता है। रिजल्ट में नतीजे अंकित होते हैं और रेप्रेंस इंटर्वेल में मात्रा कितनी होनी चाहिए व कितनी नहीं यह अंकित होता है। डॉक्टर रिजल्ट को रेफ्रेंस इंटर्वेल से तुलना कर मरीज को सलाह देते हैं। इसके बाद दवा व लाइफस्टाइल मॉडिफिकेशन की बात कहते हैं।
जानें कितना होना चाहिए कोलेस्ट्रोल
डॉक्टर बताते हैं कि कोलेस्ट्रोल की मात्रा हमारे शरीर में 200 एमजी/डीएल से कम होनी चाहिए. 200 से 239 बॉर्डर की श्रेणी में आता है। यदि किसी का कोलेस्ट्रोल लेवल इसके बीच है तो उसे सतर्क होने की आवश्यकता होती है। कोलेस्ट्रोल में हमें अंडे, मछली, मीट, चीज, बटर और दूध का सेवन करने से मिलता है। कोलेस्ट्रोल ज्यादा रहे तो ये हमारे दिमाग व हार्ट हेल्थ के लिए खतरनाक होता है, इसलिए इसे नियंत्रण में रखना चाहिए।
जानें शरीर में कितना होना चाहिए ट्राइग्लिसराइड्स का लेवल
डॉक्टर बताते हैं कि ट्राइग्लिसराइड्स का लेवल 150 एमजी/डीएल से कम होना चाहिए। यजि ये 200 से 499 है तो यह हाई होगा। ये हर प्रकार के तेल और ड्राइ फ्रूट्स का सेवन करने से हमारे शरीर को मिलता है।
40 से 60 एमजी/डीएल रहनी चाहिए एचडीएल
एचडीएल के बारे में डॉक्टर बताते हैं कि ये भी कोलेस्ट्रोल का ही पार्ट है। इसे हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल) कहा जाता है। इसे गुड कोलेस्ट्रोल भी कहा जाता है। शरीर में 40 से 60 एमजी/डीएल यदि इसकी मात्रा हो तो ये शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है। यदि इसकी वैल्यू 60 से ज्यादा है फिर भी ये शरीर के लिए अच्छा होता है। क्योंकि आर्टरी में यदि कोलेस्ट्रोल जमा है तो उसे ये निकाल देता है। भविष्य में होने वाली गंभीर बीमारियों से हमें बचाता है।
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बैड कोलेस्ट्रोल है एलडीएल
डॉक्टर बताते हैं कि एलडीएल यानि लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन को बैड कोलेस्ट्रोल कहा जात है। ये शरीर के लिए हानिकारक होता है। शरीर में इसकी रेंज 100 एमजी/डीएल होती है। वहीं ये 100 से 129 के बीच हो तो सामान्य की ही श्रेणी में आता है। इससे अधिक मात्रा हो तो शरीर के लिए हानिकारक होती है। इसे सामान्य रखना है ताकि हार्ट की बीमारी से बचाव किया जा सके। इसके अलावा
- वीएलडीएल (वैरी लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन) 30एमजी/डीएल होना चाहिए
- कोलेस्ट्रल/एचडीएल रेश्यो - इसका सामान्य रेंज पांच से कम रहना चाहिए
- एलजडीएल और एचडीएल का रेश्यो 3.5 से कम होना चाहिए
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इन परिस्थितियों में बढ़ सकता कोलेस्ट्रोल
- तनाव लेने के कारण
- खराब लाइफस्टाइल के कारण
- शराब और धूम्रपान का सेवन करने की वजह से
- हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज और मोटापे के कारण
बीमारी से बचाव के लिए लें डॉक्टर सलाह
डॉक्टर बताते हैं कि यदि आप शरीर के कोलेस्ट्रोल को कंट्रोल में रखकर बीमारियों से बचाव करना चाहते हैं तो जरूरी है कि आप यदि शराब और धूम्रपान का सेवन करते हैं तो न करें, तनावमुक्त जीवनशैली अपनाएं, खानपान पर ध्यान दें। खाने में पौष्टिक खाना ही खाएं। यदि आपको हाई कोलेस्ट्रोल की समस्या ह तो उसके लिए दूध, मिल्क प्रोडक्ट्स, मीट, मछली और अंडा का सेवन करने से परहेज करें। यदि आपको हाई ट्राईग्लिसराइड्स की समस्या है तो ऐसे में आपको तेल, फ्राइड फूड आदि का सेवन करने से परहेज करना चाहिए। एक्सरसाइज और योगा को आम जीवनचर्या में शामिल करना चाहिए।
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