थायरॉयड हार्मोन के असंतुलन के कारण हम में से बहुत से लोग परेशान रहा करते हैं। दरअसल हमारे शरीर में ऐसी कई कोशिकाएं हैं, जो थायराइड हार्मोन पर निर्भर करती हैं। थायराइड हार्मोन से जुड़ी परेशानियों जीन्स से भी जुड़ी हुई हैं, जिसे हमारे आस पास का वातावरण और हमारी आदतें ट्रिगर करती हैं। जैसे कि प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन, सोया, चीनी और कैफीन आदि को डाइट में ज्यादा शामिल करना । वहीं आयोडीन की कमी, खाद्य पदार्थों, प्लास्टिक में पाए जाने वाले बीपीए, विटामिन डी की कमी, तनाव और व्यायाम की कमी भी थायरॉयड हार्मोन के असंतुलन के बड़े कारणों में से एक है। साथ ही आयोडीन की कमी के कारण हाशिमोटो थाइरॉइडाइटिस (Hashimoto Thyroiditis) नामक ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज भी होती है। ये एक गंभीर बीमारी है। तो आइए पहले विस्तार से समझते हैं थायरॉयड के प्रकार और फिर इस बीमारी से बचने का तरीका।
थाइरॉयड की बीमारी
थाइरॉयड की बीमारी को ही हाइपोथायरॉइडिजम के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सामान्य डिसऑर्डर है, जिससे घबराने की नहीं बल्कि सही समय पर इसका इलाज कराने की जरूरत होती है। हाइपोथायरॉइडिज़म को दो भागों में बांटकर देखा जाता है। इन्हें प्राइमरी और सैकंडरी (central) हाइपोथायरॉइडिज़म कहा जाता है। दरअसल थायरॉयड ग्रंथि एक छोटा, तितली के आकार का अंग है जो थायराइड हार्मोन को पैदा करता है। यह थायराइड हार्मोन कई कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है, जिसमें हार्ट बीट का रेगुलेशन, सांस, चयापचय, मासिक धर्म और शरीर का तापमान आदि जुड़ा हुआ है।
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क्यों होता है थायराइड हार्मोन का असंतुलन?
थायराइड हार्मोन का असंतुलन तब होता है जब थायराइड हार्मोन बहुत कम होता है या जब बहुत अधिक थायराइड होता है। प्राइमरी हाइपोथायरॉइडिज़म तब होता है, जब थाइरॉयड ग्लैंड जरूरी मात्रा में थाइरॉयड हार्मोन का उत्पादन नहीं कर पाती। ऐसी स्थिति ज्यादातर आयोडिन की कमी के कारण बनती है। वहीं सैकंडरी हाइपोथायरॉइडिजम, उस स्थिति को कहा जाता है जब थाइरॉयड ग्लैंड सही तरीके से काम कर रही हो लेकिन पीयूष ग्रंथि (Pituitary Gland) और दिमाग का एक हिस्सा हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) सही ढंग से काम ना करे। वहीं जब शरीर में थाइरॉयड ज्यादा हो ज्यादा है तो, इसे हाइपरथायरॉइडिज़म (hyperthyroidism) कहते हैं। इस दौरान हम इसके संकेतों से इन्हें पहचान सकते हैं। जैसे कि
- -यह हमारे शरीर को धीमा कर देता है।
- - वजन बढ़ना।
- - शुष्क त्वचा
- - अवसाद
- -कब्ज
- -बाल झड़ना
- -वजन तेजी से घट जाना आदि।
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हाशिमोटो (Hashimoto Thyroiditis) क्या है?
हाशिमोटो थाइरॉइडाइटिस (Hashimoto Thyroiditis)यह एक ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज है, जो ज्यादातर मामलों में आयोडीन की कमी के कारण होती है। इस बीमारी में मरीज के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता खुद उसके ही शरीर की थायरॉइड ग्लैंड के खिलाफ हो जाती है। इससे थायराइड हार्मोन का लगातार उच्च और निम्न स्तर होता है। यह एक रोलर कोस्टर है और कई रोगी उच्च और निम्न के साथ भ्रमित हो जाते हैं और लक्षणों में फंस जाते हैं। यह जानने के लिए कि कहीं आपको थायरॉयड असंतुलन है या नहीं, इसके लिए आपको अपनी जांच करवानी चाहिए। जिसके लिए आपटीएसएच, टी 3 और टी 4, टीपीओ एंटीबॉडी, टीजी एंटीबॉडी या थायराइड अल्ट्रासाउंड आदि करवा सकते हैं। टीपीओ और टीजी एंटीबॉडी में वृद्धि आमतौर पर एक सकारात्मक हाशिमोटो रोग का परिणाम है।
थाइरॉयड को संतुलित करने का उपाय
खाना बनाने से जुड़े बदलाव
- - एल्यूमीनियम के बरतनों में खाना न पकाएं इसकी जगह स्टेनलेस स्टील का इस्तेमाल करें।
- -अपने भोजन को माइक्रोवेव में विशेष रूप से गर्म करने के लिए प्लास्टिक की चीजों के इस्तेमाल से बचें।
- -एल्यूमीनियम फॉयल का इस्तेमाल न करें और केले के पत्ते का इस्तेमाल करें।
- - भोजन तैयार करने और भंडारण के पारंपरिक तरीकों को अपनाएं।
- -शुद्ध सरसों का तेल, मूंगफली का तेल, खाना पकाने के लिए घी या जैतून का तेल आदि का इस्तेमाल करें।

इन चीजों को अपनी आदत में करें शामिल
- -रोज सुबह मेथी के बीज का पानी पिएं। इसके लिए 1 गिलास में 1 चम्मच मेथी के बीज भिगोएं और हर सुबह इस पानी को पी लें। इसमें पोषक तत्व होते हैं, जो हमारे थायराइड ग्रंथि को ठीक रखता है।
- - धनिया की पत्तियों को खान-पान में खूब शामिल करें। हमारे शरीर के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है।
- - आयोडीन की कमी न होने दें।
- - आयोडीन युक्त नमक का प्रयोग करें।
- - केले, मछली, सी फूड्स, मूंगफली और जौ, दिन में कम से कम एक बार शकरकंद जरूर लें।
इसके साथ ही आप व्यायाम, योग और प्राणायाम आदि कर सकते हैं। यह चयापचय दर को बढ़ाता है और शरीर को स्वस्थ रखता है। वहीं अकेला योग केवल तनाव को शांत करने और राहत देने में मदद नहीं करता है, बल्कि शरीर में लचीलापन भी लाता है।
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