बच्‍चों के फेफड़ों में संक्रमण के संकेत हैं ये 5 लक्षण, जानें कारण और उपचार

शिशुओं में दीर्घकालिक फेफड़ों के रोग के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। जानें क्या है शिशुओं में दीर्घकालिक फेफड़ों के रोग।
  • SHARE
  • FOLLOW
बच्‍चों के फेफड़ों में संक्रमण के संकेत हैं ये 5 लक्षण, जानें कारण और उपचार


संक्रमण और प्रदूषण का असर फेफड़ों पर भी पड़ता है। दुनिया भर में बहुत से लोग अलग- अलग तरह के फेफडों के रोगों से ग्रस्त हैं। अस्थमा और सीपीपीडी रोग इनमें प्रमुख हैं। भारत में भी फेफड़ों के रोग से ग्रस्त रोगियों की तदाद काफी है। बच्‍चों का कम उम्र में इस रोग से ग्रस्‍त होना चिंता का विषय बना हुआ है। शिशुओं में दीर्घकालिक फेफड़ों के रोग के मामले तेजी से बढ़े हैं। इस लेख में हम आपको विस्तार से बता रहे हैं शिशुओं में दीर्घकालिक फेफड़ों के रोगों के बारे में।

 

विश्‍व स्वास्थ्य संगठन भी इस रोग को लेकर बेहद चिंतित है। डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रदूषित वातावरण के कारण यहां बड़ी संख्या में लोग फेफड़ों से संबंधित एवं सीओपीडी (सांस की नली से संबंधित रोग) से ग्रस्त हैं।

भविष्य में लगातार इसके रोगियों के बढ़ने की आशंका बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस बीमारी की रोकथाम के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में यह खतरनाक बीमारी बन जाएगी। भारत में भी यह समस्‍या तेजी से बढ़ रही है। प्रतिदिन जन्म लेने वाले लगभग हर 20 बच्चों में से एक बच्चा इस रोग से ग्रस्‍त होता है।

शिशुओं में दीर्घकालिक फेफड़ों के रोग

नवजात शिशु के फेफड़ों में क्षतिग्रस्त ऊतकों के कारण सांस लेने में परेशानी और अन्य संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं को दीर्घकालिक फेफड़ों के रोग कहा जाता है। ऐसे में फेफड़े हवा को रोकते हैं और क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे में इनमें तरल पदार्थ भर जाता है और भारी मात्रा में बलगम बनने लगता है। 

कई बच्चों में शुरुआत से ही फेफड़ों की समस्याएं शुरू हो जाती हैं। हालांकि क्रोनिक फेफड़ों की बीमारी से ग्रस्‍त ज्‍यादातर बच्चे बच जाते हैं। लेकिन इसके लक्षण वापस आ सकते हैं और बच्चों को इलाज की जरूरत हो सकती है। क्रोनिक फेफड़ों के रोग ब्रोन्कोपल्मोनरी डिस्पेलेसिया, या बीपीडी के नाम से भी जाने जाते हैं। 

क्रोनिक फेफड़ों की बीमारी बच्चे के फेफड़ों में समस्या का कारण होती है। समय से पहले जन्म लेने वाले बच्‍चों में यह समस्‍या आम है। जो बच्‍चे गर्भावस्‍था के 26वें सप्‍ताह में पैदा हो जाते हैं और जिनका वजन 1 किलो (2.2 पाउंड) से कम होता है। समय से पहले जन्‍म लेने वाले बच्‍चे के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते। इस तरह के बच्चों में निम्न प्रकार से क्रोनिक फेफड़ों की समस्याएं हो सकती हैं। 

वेंटीलेटर के प्रयोग से फेफड़ों पर लगी चोट

कई प्रीमेच्‍योर बच्चों (समय से पूर्व जन्मे बच्चे) को इस उपचार की जरूरत होती है, खासतौर पर जब उन्हें रेस्पेरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम (श्‍वसन संकट सिंड्रोम) हो। लेकिन सांस देने और उच्च ऑक्सीजन का स्तर बनाने के लिए उपयोग किया गया वेंटीलेटर, बच्चे के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है। 

फेफड़ों में तरल पदार्थ

प्रीमेच्‍योर बच्चों को जन्म के साथ या बाद में यह समस्या हो सकती है। कभी-कभी पूरी अवधि में शल्य क्रिया की मदद से पैदा हुए बच्चों के फेफड़ों में तरल पदार्थ भर जाता है। 

इसे भी पढ़ें: बच्चों में उदासी और मायूसी हो सकते हैं सायकॉटिक डिप्रेशन के लक्षण, ये हैं 3 कारण

संक्रमण

समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों के फेफड़ों में संक्रमण होने की आशंका बढ़ जाती है। अक्सर रेस्पेरेट्री सिंट्यलवायरस (आरएसवी) के कारण ऐसा होता है।

इसे भी पढ़ें: आमतौर पर वयस्कों को होने वाली इन 6 बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है बच्चों में

दीर्घकालिक फेफड़ों के रोग के लक्षण

दीर्घकालिक (क्रोनिक) फेफड़ों की बीमारी वाले बच्चों में जन्म के तीन दिन बाद ही लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इसका पहला लक्षण सांस लेने में परेशानी होना होता है। इसके अलावा शिशुओं में दीर्घकालिक फेफड़ों के रोग के लक्षण निम्न प्रकार के भी हो सकते हैं।

  • गुरगुराहट या तेजी से सांस लेना।
  • नाक लाल हो जाना।
  • सांस लेने के लिए गर्दन, छाती, और पेट की मांसपेशियों का प्रयोग करना। यह ऐसा लगता है जैसे कि बच्चा पसलियों के बीच या नीचे सांस ले रहा हो।
  • जोर जोर से सांस लेना, या सांस लेने में एक अजीब सी तेज ध्वनि करना।
  • खाने-पीने के दौरान जल्दी थक जाना।
  • धब्बे या मुंहासे वाली त्‍वचा, खासतौर पर होंठ, जीभ पर व नाखून आदि पर।

बच्चों में किसी भी प्रकार के दीर्घकालिक फेफड़ों के रोग के लक्षण दिखाई देने पर देरी नहीं करनी चाहिए और तत्काल डॉक्टर से मिलना चाहिए। इस रोग में किसी प्रकार की देरी बच्चे के लिए घातक साबित हो सकती है।

ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: ओनलीमायहेल्थ ऐप

Read More Articles On Children Health In Hindi

Read Next

बच्चों में उदासी और मायूसी हो सकते हैं सायकॉटिक डिप्रेशन के लक्षण, ये हैं 3 कारण

Disclaimer

How we keep this article up to date:

We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.

  • Current Version