High Risk Pregnancy in Hindi: वैसे तो महिला को प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले अपने सभी टेस्ट कराने चाहिए, ताकि प्रेग्नेंसी में किसी भी तरह के रिस्क से बचा जा सके। लेकिन भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो महिलाएं प्रेग्नेंट होने के बाद डॉक्टर से सलाह लेने जाती हैं, और चेकअप के बाद डॉक्टर उन्हें प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले रिस्क के बारे में बताते हैं। हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में महिला और उसके भ्रूण की सेहत को लेकर कई तरह की मेडिकल परेशानियां हो सकती हैं। अगर महिला 17 साल से कम उम्र की है या फिर 35 साल के बाद प्रेग्नेंट होती है, तो हाई रिस्क प्रेग्नेंसी होने का खतरा हो सकता है। इसके अलावा, मेडिकल कंडीशन, शराब, स्मोकिंग और मोटापा जैसे कई कारणों (high risk pregnancy causes) के चलते हाई रिस्क प्रेग्नेंसी हो सकती है। NCBI की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 20-30% गर्भधारण इसी श्रेणी में आते हैं। यह वजह माताओं की मृत्युदर और रुग्णता में 70 फीसदी तक योगदान देती है। भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने 5 हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के बारे में बताया है। हमने मेडिकल क्षेत्र में काम कर रहे देशभर के डॉक्टरों से इसके कारणों और बचाव के उपायों की जानकारी ली।
HIV क्यों है हाई रिस्क प्रेग्नेंसी? - Why HIV is High Risk Pregnancy?
प्रेग्नेंसी में HIV होना बहुत रिस्की होता है, लेकिन समय पर पता चल जाए, तो लगातार इलाज और मेडिकल सपोर्ट से मां और शिशु को होने वाले रिस्क से बचाया जा सकता है। फरीदाबाद के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के स्त्रीरोग विशेषज्ञ विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. पूजा सी ठुकराल (Dr. Pooja C Thukral, Associate Director- Department of Gynecology at Cloudnine Group of Hospitals, Faridabad) ने कहा, “कई HIV ग्रस्त महिलाओं को हेल्दी प्रेग्नेंसी होती है और उनके HIV नेगेटिव शिशु होते हैं। लेकिन इसे हाई रिस्क प्रेग्नेंसी कैटेगरी में रखने के कई महत्वपूर्ण कारण हैं।”
टॉप स्टोरीज़
- मां से शिशु में HIV के ट्रांसमिशन का रिस्क - अगर समय पर इलाज शुरू न हो, तो मां से शिशु को प्रेग्नेंसी, डिलीवरी या ब्रेस्टफीडिंग के दौरान HIV ट्रांसमिट होने के 15% से 45% तक चांस हैं। समय पर इलाज करने से यह रिस्क एक प्रतिशत से भी कम रह जाता है।
- कमजोर इम्युनिटी - HIV के कारण मां की इम्युनिटी कमजोर होने से टीबी, यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन या फिर अन्य जटिलताएं भी हो सकती हैं। इससे समय से पहले डिलीवरी, जन्म के समय वजन कम होना या मृत शिशु का जन्म हो सकता है।
- दवाइयों से जटिलताएं - कुछ एंटीरेट्रवायरल दवाइयों (ARVs) के कारण भ्रूण का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता। इसलिए डॉक्टर की सलाह लेकर ही दवाइयां लेनी चाहिए, ताकि मां और शिशु दोनों सुरक्षित रहें।
- डिलीवरी में दिक्कतें - शिशु में वायरस के रिस्क को कम करने के लिए डॉक्टर सर्जरी की सलाह देते हैं।
- दिमागी और इमोशनल हेल्थ रिस्क - HIV ग्रस्त महिलाएं बीमारी की वजह से स्ट्रेस या डिप्रेशन महसूस करती हैं, जिसका असर मां और शिशु की हेल्थ पर पड़ता है।
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प्रेग्नेंसी में HIV को मैनेज करने के तरीके - How to Manage HIV during Pregnancy?
डॉ. पूजा ने बताया कि प्रेग्नेंसी में HIV को मैनेज करने के कई उपाय हैं।
जल्दी पता लगाना - प्रेग्नेंसी में रुटीन HIV स्क्रीनिंग की सलाह दी जाती है, ताकि बीमारी का जल्दी पता चलने से मां और भ्रूण की केयर प्लान की जा सकती है।
एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) लेना - HIV ट्रांसमिशन से बचाव के लिए मां को रोजाना ART लेना चाहिए। इससे भ्रूण में वायरस जाने के चांस लगभग जीरो हो जाते हैं।
CD4 काउंट मॉनीटर करना - इससे मां के इम्युनिटी और इलाज प्रभावी तरीके से होता है।
डिलीवरी प्लान करना - अगर मां में वायरल लोड ज्यादा होता है, तो डॉक्टर सर्जरी की सलाह देते हैं, ताकि ट्रांसमिशन का रिस्क कम किया जा सके।
ब्रेस्टफीड - ब्रेस्टफीडिंग न करने की सलाह दी जाती है।
शिशु की केयर - जन्म के बाद शिशु को 4-6 हफ्ते तक HIV की दवाइयां दी जाती हैं।
इमोशनल काउंसलिंग - मां के स्ट्रेस को कम करने के लिए मनोवैज्ञानिक से परामर्श दिलाया जाता है।
सिफलिस क्यों है हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का कारण? - Why Syphilis is Considered a High-Risk Pregnancy?
इस बारे में गाजियाबाद के मनीपाल अस्पताल के स्त्रीरोग विशेषज्ञ विभाग की कंस्लटेंट डॉ. रंजना बेकॉन (Dr. Ranjana Becon, Consultant – Obstetrics & Gynecology, Manipal Hospital, Ghaziabad) कहती हैं,“प्रेग्नेंट महिला से भ्रूण में इसके ट्रांसमिशन की वजह से सिफलिस को हाईरिस्क प्रेग्नेंसी की श्रेणी में रखा गया है। इस वजह से शिशु के मृत जन्म लेने, जन्मजात सिफलिस होने या भ्रूण के विकास में कई तरह की परेशानियां हो सकती है। इसके अलावा, मिसकैरेज, समय से पहले डिलीवरी और शिशु के जन्म के समय वजन कम होने जैसी दिक्कतें भी हो सकती हैं। इसलिए मां और शिशु की अच्छी सेहत के लिए नियमित मॉनीटरिंग की सलाह दी जाती है।”
प्रेग्नेंसी में सिफलिस होने पर मैनेज करने के तरीके - How to Manage Syphilis During Pregnancy?
डॉ. रंजना के अनुसार, सिफलिस के कारण भ्रूण को पोषण मिलने के चांस कम हो जाते हैं, जिससे शिशु के विकास में दिक्कत होती है। प्रेग्नेंसी से पहले सिफलिस का पता चलने पर पेनिसिलिन से इलाज किया जाता है। अगर पेनिसिलिन संभव नहीं होता, तो अन्य मेडिकल तरीकों से प्रेग्नेंसी में महिला का ध्यान रखा जाता है। अगर प्रेग्नेंसी के 26वें हफ्ते से पहले सिफलिस का पता चल जाए, तो शिशु में जन्मजात सिफलिस होने के रिस्क को कम किया जा सकता है। इसके अलावा, जन्म लेने के बाद शिशु में सिफलिस होने के लक्षणों को मॉनीटर किया जाता है।
प्रेग्नेंट महिलाओं में गंभीर एनीमिया होने के कारण - Causes of Severe Anemia in Pregnancy
प्रेग्नेंसी में महिला में अगर खून की कमी हो जाए, तो यह भ्रूण और मां दोनों के लिए बहुत घातक हो सकती है। कई मामलों में इस वजह से मिसकैरेज के मामले भी देखने को मिलते हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की NFHS 5 रिपोर्ट के अनुसार, एनीमिया के मामले गांवों में 54% हैं, और शहरों में इसके आंकड़े 47% हैं। इस बारे में दिल्ली के मैक्स हेल्थकेयर अस्पताल की क्लिनिकल और बैरिएट्रिक न्यूट्रिशनिस्ट और डायबिटीज एजुकेटर समरीन फारूखी ने बताया कि जो गर्भवती महिलाएं गंभीर एनीमिया से पीड़ित होती हैं, उनमें इंफेक्शन का रिस्क, प्रीटर्म डिलीवरी, शिशु का वजन कम होने और शिशु में आयरन की कमी होने का रिस्क बढ़ सकता है।
इसके कारणों के बारे में बताते हुए पुणे के मनीपाल अस्पताल की सीनियर डाइटिशियन प्रियंका प्रणय बांदल कहती हैं,”भारत में कई मामलों में देखा गया है कि महिलाएं कम गैप में दोबारा प्रेग्नेंट हो जाती हैं, इस वजह से शरीर में आयरन कम हो जाता है। इसके अलावा, प्रेग्नेंसी से पहले टेस्ट न कराने की वजह से महिलाओं को पता ही नहीं होता कि वे विटामिन्स और खास तौर से आयरन, फॉलिक एसिड और विटामिन बी 12 की कमी से जूझ रही हैं। इस कारण प्रेग्नेंसी में एनीमिया की दिक्कत हो जाती है। अगर समय पर ध्यान न दिया जाए, तो ये मां और शिशु दोनों के लिए बहुत गंभीर समस्या बन सकती है।”
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गर्भवती महिलाओं के लिए एनीमिया से बचाव के उपाय - Management of Severe Anemia in Pregnancy
अगर समय रहते प्रेग्नेंट महिलाएं आयरन के सप्लीमेंट्स और खानपान पर ध्यान देना शुरू कर दें, तो एनीमिया की समस्या से बचा जा सकता है। इस बारे में गाजियाबाद स्थित यशोदा सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के फूड और न्यूट्रिशन विभाग की सीनियर मैनेजर भावना गर्ग ने गर्भवती महिलाओं को कुछ उपाय बताए हैं।
- प्रेग्नेंट महिलाओं को डॉक्टर से सलाह लेकर आयरन, मल्टीविटामिन और सप्लीमेंट्स लेने चाहिए।
- विटामिन C डाइट में शामिल करना जरूरी है, क्योंकि यह आयरन को अवशोषित करने में मदद करता है।
- डाइट में गुड़, भुना चना, खजूर और किशमिश शामिल करें।
- हरी पत्तेदार सब्जियां लोहे के बर्तन में खाना बनाना सही रहता है।
- भोजन में मीट, मछली, चिकन और शैलफिश शामिल करें।
- डॉक्टर की सलाह लेकर कसरत या योग जरूर करें।
प्रेग्नेंसी के दौरान हाइपरटेंशन क्यों है हाई रिस्क? Why is Pregnancy Induced Hypertension Considered High Risk?
इस बारे में गाजियाबाद के मनीपाल अस्पताल के स्त्रीरोग विशेषज्ञ विभाग की कंसल्टेंट डॉ. रंजना बेकॉन (Dr. Ranjana Becon, Consultant – Obstetrics & Gynecology, Manipal Hospital, Ghaziabad) का कहना है, “प्रेग्नेंसी के दौरान हाइपरटेंशन (PIH) होना काफी रिस्की हो जाता है। इस वजह से स्ट्रोक और दौरे पड़ने के साथ अंग भी क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। हाइपरटेंशन में खून का दौरा प्लेसेंटा की और चला जाता है, जिसकी वजह से भ्रूण का विकास प्रभावित हो सकता है या जन्म के समय शिशु मृत पैदा हो सकता है। कई मामलों में देखा गया है कि जिन महिलाओं को हाइपरटेंशन की समस्या होती है, उन्हें समय से पहले प्रसव हो सकता है। इसलिए मैं हमेशा हाइपरटेंशन ग्रस्त महिलाओं को नियमित चेकअप की सलाह देती हूं।”
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प्रेग्नेंसी के दौरान हाइपरटेंशन को कैसे करें मैनेज - How to Manage Pregnancy-Induced Hypertension (PIH)
इस बारे में डॉ. रंजना ने बताया कि प्रेग्नेंसी के दौरान हाइपरटेंशन से पीड़ित महिलाओं को संतुलित डाइट लेना बहुत जरूरी है। इसके अलावा, स्ट्रेस बिल्कुल न लें, खुद को एक्टिव रखें और नियमित चेकअप कराएं। डॉक्टर से चेकअप कराने के बाद एंटीहाइपरटेंसिव दवाइयां लें। अगर डॉक्टर ने आराम करने की सलाह दी है, तो ज्यादा भागदौड़ न करें। इस दौरान प्रीक्लेम्पसिया के लक्षणों पर नजर रखें। गंभीर मामलों में महिला को अस्पताल में भर्ती किया जाता है। कुछ मामलों में, मां और शिशु की सेहत को देखते हुए जल्दी डिलीवरी भी कराई जा सकती है।
जेस्टेशनल डायबिटीज हाई रिस्क प्रेग्नेंसी क्यों है? - Why Gestational Diabetes Mellitus is High Risk Pregnancy
प्रेग्नेंसी की दूसरी और तीसरी तिमाही में जब हार्मोन बदलते हैं, तब महिला का ब्लड शूगर का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। वैसे तो शिशु के जन्म के बाद यह समस्या ठीक हो जाती है, लेकिन मां और शिशु में टाइप 2 डायबिटीज का रिस्क बढ़ जाता है। इसके कारणों के बारे में नई दिल्ली के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के स्त्रीरोग विशेषज्ञ विभाग की सीनियर कंस्लटेंट डॉ. साधना सिंघल विश्नोई (Dr. Sadhna Singhal Vishnoi, Senior Consultant – Obstetrics and Gynecology, Cloudnine Group of Hospitals, New Delhi, Punjabi Bagh) ने कहा, “अगर जेस्टेशनल डायबिटीज को सही तरीके से मैनेज न किया जाए, तो मां और शिशु दोनों को कई तरह की जटिलताएं हो सकती हैं।”
- मैक्रोसोमिया (बड़ा शिशु होना) - अतिरिक्त ग्लूकोज प्लासेंटा में चला जाता है, जिससे भ्रूण का विकास अधिक हो जाता है। इस वजह से लेबर होने में दिक्कत होती है और सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।
- प्रीक्लेम्पसिया - हाई ब्लड प्रेशर के कारण कई तरह की जटिलताएं आ जाती हैं, जिससे लिवर और किडनी जैसे अंग खराब हो सकते हैं। अगर इलाज न हो, तो यह जानलेवा हो सकती है।
- प्रीटर्म जन्म - जेस्टेशनल डायबिटीज के कारण महिला को समय से पहले डिलीवरी हो सकती है।
- शिशु को जटिलताएं - इस स्थिति में शिशु का ब्लड शूगर कम हो सकता है, साथ ही सांस लेने में तकलीफ, पीलिया, मोटापा या टाइप 2 डायबिटीज हो सकता है।
- शिशु का मृत जन्म लेना - अगर आखिरी के महीने में इसे कंट्रोल न किया जाए, तो शिशु के मृत जन्म लेने का रिस्क बढ़ सकता है।
जेस्टेशनल डायबिटीज को कैसे करें मैनेज? - How to Manage Gestational Diabetes?
डॉ. साधना सिंघल विश्नोई ने मैनेज करने के कई उपाय बताए हैं।
- हेल्दी डाइट - संतुलित आहार जिसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर, साबुत अनाज, सब्जियां, लीन प्रोटीन और हेल्दी फैट हो, इससे ब्लड शूगर का स्तर नियंत्रित रहता है। रिफाइंड शूगर और जंक फूड से दूर रहें।
- नियमित कसरत - जेस्टेशनल डायबिटीज से बचाव के लिए रोजाना वॉक, प्रीनेटल योग या फिर करीब आधे घंटे तक स्विमिंग करें।
- रूटीन स्क्रीनिंग करें - आमतौर पर इस स्थिति का पता प्रेग्नेंसी के 24-28वें हफ्ते में चलता है। रुटीन चेकअप से बीमारी का जल्दी पता चल जाता है।
- ब्लड शूगर मॉनीटर करें - प्रेग्नेंसी में ब्लड शूगर के स्तर की जांच करते रहें।
- दवाइयां लें - अगर लाइफस्टाइल में बदलाव करके जेस्टेशनल डायबिटीज मैनेज न हो, तो डॉक्टर की सलाह पर दवाइयां लें।
- डॉक्टर से लगातार सलाह लें - नियमित चेकअप से भ्रूण और मां की सेहत से जुड़ी जटिलताओं का पता चलता है।