कोरोना वायरस की वैक्सीन का इंतजार पूरी दुनिया को है। अब तक 10 लाख लोगों से ज्यादा की जान ले चुके इस वायरस ने पिछले 8 महीने में दुनिया की गति को बहुत धीमा कर दिया है। करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई हैं और दुनिया आर्थिक मंदी से जूझ रही है। ऐसे में सभी की उम्मीदें बस कोविड-19 वैक्सीन पर टिकी हुई हैं। दुनियाभर में कोविड वैक्सीन के 200 से ज्यादा ट्रायल्स चल रहे हैं। इनमें से लगभग 10 वैक्सीन अपने ट्रायल के अंतिम स्टेज में हैं, यानी अगले कुछ महीनों में कोरोना वायरस की सुरक्षित वैक्सीन का पता चल जाएगा। मगर वैक्सीन बन जाने के बाद भी इसकी आपूर्ति दुनियाभर में करना एक बड़ी चुनौती होगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक कोरोना वायरस से बचाव के लिए हर व्यक्ति को 2 डोज वैक्सीन देने की जरूरत पड़ेगी। इस आंकड़े के अनुसार अगर दुनिया के हर व्यक्ति को कोरोना वायरस की वैक्सीन देनी है, तो लगभग 15 अरब वैक्सीन तैयार करनी पड़ेंगी। वैक्सीन अभी बनकर तैयार नहीं हुई है, लेकिन इसे लेकर एक बड़ा विवाद शुरू हो गया है और वो विवाद है शार्क मछलियों को मारने का। आइए आपको विस्तार से बताते हैं शार्क मछलियों का कोरोना वायरस की वैक्सीन से क्या संबंध है।
कोविड-19 की वैक्सीन बनाने में शार्क मछलियों का इस्तेमाल
कोरोना वायरस की वैक्सीन के जो भी ट्रायल चल रहे हैं, उनमें ज्यादातर वैक्सीन में एक खास तत्व का प्रयोग किया गया है, जिसे स्क्वालीन (Squalene) कहते हैं। ये स्क्वालीन एक तरह का नैचुरल ऑयल होता है, जो शार्क मछलियों के लिवर में बनता है। अब सवाल उठता है कि वैक्सीन बनाने के लिए ये ऑयल इतना जरूरी क्यों है कि शार्क को मारना पड़े? तो जवाब ये है कि शार्क के लिवर में बनने वाला ये नैचुरल ऑयल इम्यून सिस्टम को मजबूती देता है।
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शार्क के लिवर में बनने वाला तेल क्यों है खास?
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (Center For Disease Control and Prevention) यानी सीडीसी (CDC) के अनुसार स्क्वालीन वैक्सीन बनाने में एक तरह से सहायक (Adjuvant) का काम करता है, जो इम्यून रिस्पॉन्स को मजबूत बनाता है। इसका अर्थ है कि मुख्य दवाओं के साथ इस स्क्वालीन को मिला देने से इम्यून सिस्टम पर इसका असर बहुत तेजी से होता है और इम्यून सिस्टम ज्यादा अच्छी तरह रिस्पॉन्स कर पाता है।
तो क्या पहली बार हो रहा है शार्क के तेल का वैक्सीन में इस्तेमाल?
शार्क के लिवर में बनने वाले स्क्वालीन ऑयल का वैक्सीन में इस्तेमाल पहली बार नहीं हो रहा है। दुनियाभर में मशहूर GlaxoSmithKline नामक ब्रिटिश फार्मा कंपनी पहले ही फ्लू के वैक्सीन के लिए इस स्क्वालीन का इस्तेमाल करती रही है। लेकिन अभी तक शार्क को मारने को लेकर बवाल इसलिए नहीं खड़ा हुआ था क्योंकि पूरी दुनिया को एक साथ इतनी बड़ी संख्या में अचानक से वैक्सीन की जरूरत कभी नहीं पड़ी थी।
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5 लाख से ज्यादा शार्क को मारा जा सकता है
रिपोर्ट्स के मुताबिक एक टन (1000 किलो) स्क्वालीन निकालने के लिए लगभग 3,000 शार्क मछलियों को मारा जाता है। इस अनुसार अगर पूरी दुनिया के हर व्यक्ति को 2 डोज वैक्सीन (लगभग 15 अरब वैक्सीन) देने के लिए बनाई जाएगी, तो लगभग 5 लाख से ज्यादा शार्क मछलियों को मारने की जरूरत पड़ेगी। ये हमारे इको सिस्टम के लिए बहुत बड़ा खतरा हो सकता है। इसीलिए कैलिफोर्निया के Shark Allies नामक एक एडवोकेसी ग्रुप ने एक पिटीशन जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि वैक्सीन बनाने के लिए शार्क मछलियों को मारने के बजाय किसी दूसरे नॉन एनिमल सब्स्टीट्यूट की तलाश की जाए।
Thank you Allies, we're already at 1,217 signatures! Can YOU help us get to 2,000 and make some noise for sharks? Click the link to sign, share, and tag your friends:https://t.co/WqJEyNeKNb — Shark Allies (@SharkAllies) September 11, 2020
"बड़ी संख्या में शार्क को मारना अच्छी बात नहीं"- याचिकाकर्ता
Shark Allies ग्रुप के फाउंडर Stefanie Brendl ने टेलीग्राफ को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि, "जानवरों को मारकर कुछ हासिल करना बहुत दिन तक नहीं चल सकता है, खासकर जब जानवर इतना बड़ा और विशाल हो, जो तेजी से अपनी संख्या नहीं बढ़ा सकता है। ये महामारी कब तक रहेगी और कितनी बड़ी साबित होगी, इस बारे में अभी किसी को कुछ पता नहीं है। यह भी नहीं पता है कि इस महामारी के कितने और वर्जन आएंगे या आगे कितनी और महामारियां आएंगी। ऐसे में अगर शार्क को मारकर उनके इस्तेमाल से दुनिया वैक्सीन बनाती रही, तो साल दर साल मारे जाने वाले शार्क की संख्या बहुत ज्यादा होती जाएगी और इससे इको-सिस्टम में गड़बड़ी आ सकती है।"
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