कई बार ऐसा होता है कि आप किसी का नाम या कोई शब्द याद करने की बार-बार कोशिश करते हैं, मगर वो शब्द आपके दिमाग में आकर भी आपकी जुबान पर नहीं आता है। ऐसे में आप झुंझला जाते हैं और फिर शब्द को याद करना छोड़ देते हैं। बाद में भले ही वो शब्द आपको याद आ जाए मगर उस समय लाख कोशिश के बाद भी याद नहीं आता है। ऐसा होने पर आपको ये सामान्य बात लग सकती है मगर ये एक तरह का डिसआर्डर है, जिसे मेडिकल की भाषा में लेथोलॉजिका डिसआर्डर कहते हैं।
क्या है लेथोलॉजिका डिसआर्डर
‘लेथोलॉजिका’ एक ऐसा डिसआर्डर है, जिसमें हम शब्द भूल जाते हैं। ये ग्रीक भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है लेथे, यानी भूलने की आदत। और दूसरा ग्रीक शब्द है लोगोस जिसका मतलब है पढ़ाई। जुबां पर आने के बावजूद शब्द न याद कर पाने वाली इस बीमारी को ये नाम, बीसवीं सदी के मशहूर मनोवैज्ञानिक, कार्ल गुस्ताव जंग ने दिया था।
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दिमाग का भी होता है एक शब्दकोश
किसी भी व्यक्ति के लिए पढ़ा हुआ हर शब्द सही समय पर याद करना करीब-करीब नामुमकिन होता है। शोधकर्ताओ के अनुसार आमतौर पर हर इंसान बोलने और लिखने में औसतन पचास हजार शब्दों का इस्तेमाल करता है। इसे वैज्ञानिकों की भाषा में किसी इंसान का एक्टिव शब्दकोश कहते है। इसके अलावा भी लगभग हर व्यक्ति को बहुत से और शब्द पता होते हैं। लेकिन, इन शब्दों को कम ही इस्तेमाल में लाते हैं। और इस तरह अपने दिमाग को संदेश देते हैं कि इन शब्दों की अहमियत हमारे लिए कम है। ऐसे में दिमाग इन शब्दों को छांटकर किसी ऐसी जगह रख देता है, कि, कई बार पता होने के बावजूद भी ये याद नहीं आते। ऐसा लगता है कि बस अभी आपकी जुबां पर ये शब्द आया, मगर याद नहीं आता। ये बिलकुल वैसा ही होता है, जैसे कि हम कोई चीज बक्से में बंद करके भूल जाते हैं। और जिस चीज को हम नियमित रूप से इस्तेमाल नहीं करते, उसको भूल जाते हैं।
कैसे याद आते हैं हमें शब्द
मनोवैज्ञानिक टॉम स्टैफोर्ड के अनुसार हमारा दिमाग किसी कंप्यूटर की तरह काम नहीं करता कि आपने किसी चीज को ढूढ़ा और झट से उसका जवाब हाजिर हो जाये। असल में किसी शब्द या जानकारी को हम जितनी शिद्दत से समझते या महसूस करते हैं। हमारा दिमाग उसी हिसाब से उस शब्द या जानकारी को अपने अंदर अलग-अलग खांचों में रखता है।
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कंप्यूटर में वायरस जैसा है लेथोलॉजिका डिसआर्डर
लेथोलॉजिका एक ऐसी बीमारी है, जिसमें हम शब्द भी भूल जाते हैं, और उसका पता ठिकाना भी। मतलब उससे हमारा रिश्ता टूट सा जाता है। मगर वह हमारे दिमाग के स्टोरेज की जगह, भी घेरे रहते हैं। ये बिल्कुल वैसा है जैसे कंप्यूटर में वायरस आने पर कोई फाइल जगह भी घेरे रहती है और हमें दिखाई भी नहीं देती है। इसके लिए जरूरी है कि हम दिमाग से गैर जरूरी जानकारी साफ करें और जरूरत वाली बातें ही याद रखें, ताकी जब जरूरत पड़े तो हमें फौरन उसे निकाल सके।
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