कई आहार सप्लीमेंट लेने वाले लोगों को लगता है कि कैप्सूल से मिलने वाले न्यूट्रीएंट्स जल्दी हमारे शरीर में घूल जाता है जबकि टैबलेट्स में ऐसा नहीं होता। कई लोग कैप्सूल को इसलिए भी बेहतर मानते हैं क्योंकि उसका सेवन करने में कोई परेशानी नहीं होती।
ऐसा ही टैबलेट को आपने देखा होगा कि कई लोगों इसे तोड़कर खाते हैं। ऐसा लोग तब करते हैं जब दवाई की डोज आपको कम मात्रा में लेने के लिए कहा गया हो। लेकिन क्या दवाइयों को तोड़कर खाना सही है ये बहुत कम लोगों को ही पता होगा। कई दवाइयों में ये लिखा होता है कि उसे तोड़कर खाया जा सकता है या नहीं। अगर ऐसा टैबलेट पर कोई निर्देश नहीं लिखा गया है तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि आपको वो दवा तोड़कर नहीं खानी है।
इसके बाद भी अगर आप समझ नहीं आ रहा कि दवा को तोड़कर लेना सही है या नहीं तो किसी अच्छे डॉक्टर से इस बारे में जरूर संपर्क कर। वहीं, अगर बात की जाए पिल्स या कैप्सूल की तो इसे आपको भूलकर भी नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि इससे उसका डोज काफी हद तक कम हो सकता है। कैप्सूल आमतौर पर पशु स्रोत जिलेटिन, स्टार्च हाइड्रोलाइजेट या हाइड्रॉक्सीप्रोपाइल मिथाइलसेलुलोज से बनाया जाता है। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि हमारी सेहत के लिए कैप्सूल और टैबलेट्स में से क्या ज्यादा बेहतर है।
कैप्सूल के फायदे
- कैप्सूल में कई तरह के तत्व को मिक्स किया जा सकता है।
- कैप्सूल हमारे अच्छे ऑक्सीजन अवरोधक हो सकते हैं।
- कई तत्वों को सुरक्षित रखता है कैप्सूल।
- कैप्सूल में मौजूद तत्व को बाहर खोलकर निकाला जा सकता है।
- कैप्सूल को आसानी से खाया जा सकता है।
- सभी मौजूदा न्यूट्रीएंट्स हमारे शरीर में आसानी से पहुंचते हैं।
टैबलेट्स के फायदे
- टैबलेट काफी देर तक असरदार रहती है।
- सस्ते दामों पर उपलब्ध हो जाती है।
- कस्टम आकार, आकार और उपस्थिति।
- कैप्सूल के नुक्सान
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कैप्सूल के प्रकार
सॉफ्ट कैप्सूल
कैप्सूल काफी सॉफ्ट होती है। जब आप इसे हाथ से दबाएंगे तो ये दबने लगती है और ज्यादा दबाने से फट भी जाती है। ये एक तरह का जैल का प्रकार ही होता हैं। दवा इस एक हल्के लेयर के अंदर होती है। ये कई तरह से बन सकता है, लेकिन आमतौर पर कैप्सूल के लिए कॉड लिवर ऑयल इस्तेमाल होता है जो कि एक मछली की ही प्रजाति है।
हार्ड जिलेटिन कैप्सूल
हाई जिलेटिन कैप्सूल वो कैप्सूल है, जो लोगों को काफी परेशान करता है कहीं वे प्लास्टिक तो नहीं खा रहे। आपको बता दें कि इस कैप्सूल में लगने वाला मैटेरियल जिलेटिन होता है। ये एक तरह का पॉलिमर ही होता है, लेकिन ये प्लास्टिक से अलग होता है। जिलेटिन एक तरह का प्रोटीन होता है जो आपके शरीर में भी पाया जाता है। कैप्सूल में काम आने वाला प्रोटीन जानवरों के शरीर से निकाला जाता है। मरने के बाद जानवरों की हड्डियों और चमड़ी को डीहाइड्रेट करने पर जिलेटिन मिलता है। जिससे कैप्सूल बनाया जाता है।
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ये जिलेटिन कैप्सूल पूरी तरह से सुरक्षित होता है। लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि एनिमल प्रोटीन होने की वजह से कैप्सूल उतना स्टेबल नहीं रहता। इसकी जगह हाइड्रॉक्सिल प्रोपाइल मिथाइल सेलुलोज (HPMC) को इस्तेमाल किया जा सकता है। बता दें कि ये सेल्यूलोस पेड़-पौधों में पाया जाता है। ये एचपीएमसी कैप्सूल जिलेटिन वाले कैप्सूल के मुकाबले 2 से 3 गुना महंगा होता है।
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