
सिफलिस व्यक्ति के गुप्तांगों में होने वाली यौन संचारित बीमारी है। यदि काई व्यक्ति सिफलिस से ग्रस्त है, तो उससे शारीरिक संबंध बनाने वाली व्यक्ति को भी यह हो सकती है। सिफलिस का पहला, दूसरा और अंतिम तीन चरण होते हैं।
तीनों चरणों के लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। इसकी शुरुआत ट्रेपोनेमा पल्लिडम नामक जीवाणु से होती है। कुछ लोग मानते हैं कि यह बीमारी शौचालय में बैठने के स्थान, दरवाजे की मूठ, तालाब, नहाने के टब और दूसरे के कपड़े पहनने से होती है, जबकि यह धारणा गलत है। कुछ मामलों में इस रोग के लक्षण पता भी नहीं चलते, इस कारण कई बार यह घातक रुप भी ले लेती है। तीन चरणों में फैलने वाली बीमारी सिफलिस के तीनों चरणों के लक्षण भी अलग-अलग होते हैं।
लक्षण
सिफलिस के शुरुआती लक्षण महिला और पुरुषों दोनों में अलग-अलग होते हैं। पुरुषों के लिंग के अग्र भाग में या चारों तरफ और महिलाओं की योनि के बाहरी भाग में फुन्सियां हो जाती हैं। ये फुन्सियां दर्द रहित व खुजली रहित होती हैं। शुरुआती तीन-चार दिनों के बाद ये फुन्सियां फूटकर घाव में बदल जाती हैं, घावों में जलन होती है। साथ ही इनमें दुर्गंधयुक्त पानी भी निकलता है। शुरुआती स्थिति के तीन से चार माह बाद शरीर पर छोटे-छोटे दाने वचकते और होंठो पर घाव हो जाते हैं। हड्डियों में दर्द, बाल झड़ना, गठिया और शरीर में कमजोरी आदि की शिकायत भी सिफलिस में होने लगती है।
पहले चरण के लक्षण
सिफलिस के पहले चरण में जननांग के ऊपर या आस-पास एक या कई फुन्सियां दिखाई देती हैं। ये फुन्सियां गुदा के पास भी हो सकती हैं। इनमें दर्द नहीं होता और इनमें द्रव होता है, जो रुक-रुक कर बहता रहता है। कई मामलों में इनके बढ़े होने पर फोड़े से पस जैसा पदार्थ यानी रक्त की श्वेत कोशिकायें निकलती हैं। ये आमतौर पर एक से पांच हफ्तों के बीच ठीक हो जाता है, लेकिन व्यक्ति इससे अभी भी संक्रमित रहता है।
दूसरे चरण के लक्षण
सिफलिस के दूसरे या मध्यम चरण में हथेलियों और पैर के तलुओं पर खरोंच और चकते दिखाई देते हैं। हाथ और पैर की त्वचा पर दानें निकल आते हैं। गोरी त्वचा वाले लोगों के शरीर पर लाल-पीले रंग के गोल चकते और सांवली त्वचा वाले लोगों के छाले जैसे पड़ जाते हैं। होंठ, जीभ और गाल पर छाले होने के साथ ही मलद्वार, गुदा और होठों के किनारों पर भी मस्सों जैसे दाने निकल आते हैं। साथ ही बुखार आना, सिर दर्द होना, बाल झड़ना, हड्डियों और जोड़ों में दर्द होना, रक्त की कमी होना और वजन घटना भी दूसरे चरण के लक्षण हैं। यह समस्या दो से तीन वर्षों तक रह सकती है।
तीसरे चरण के लक्षण
सिफलिस की तीसरे चरण के लक्षण कभी भी शुरू हो सकते हैं। दो से तीन वर्ष बाद या फिर दस वर्ष बाद भी। इस अवस्था के शुरू होने पर त्वचा, उपत्वचा, लसिका ग्रंथि, अस्थि, पेशी, अस्थि आवरण और यकृत आदि शरीर के विभिन्न भागों में ग्रंथियां बनने लगती हैं, जिन्हें गमा या गोन्दार्बुद या श्यान ग्रंथि कहते हैं। ये ग्रंथियां गांठदार और चपटी होती हैं। ये श्यान ग्रंथियां धीरे-धीरे सड़कर फोड़े की तरह फूट जाती हैं और उनसे गोंद के समान चिपचिपा स्राव निकलने लगता है। पूरे शरीर की दशा दयनीय हो जाती है।
इस रोग का कोई घरेलू उपचार नहीं है, घरेलू उपचार की कोशिश करना खतरनाक हो सकता है, इसकी चिकित्सा आसान नहीं होती। इसका उपचार कुशल चिकित्सक से ही कराना चाहिए।
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