
'जर्नल ऑफ एलर्जी और क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी' में प्रकाशित एक रिसर्च की मानें, तो एक्जिमा से पीड़ित लोगों की हड्डियों में आसानी से फ्रैक्चर आ सकता है।
एक अध्ययन के अनुसार एक्जिमा से पीड़ित व्यक्तियों में ऑस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एटोपिक एक्जिमा वाले 526,808 लोगों की तुलना सामान्य लोगों से की है और पाया कि एक्जिमा वाले लोगों में हड्डियों से जुड़े विकार ज्यादा थे। शोधकर्ताओं की मानें, तो एक्जिमा वाले प्रतिभागियों में कूल्हे, घुटने, रीढ़ और कलाई में फ्रैक्चर होने जैसी समस्याएं ज्यादा पाई गई। 'जर्नल ऑफ एलर्जी और क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी' में प्रकाशित इस रिसर्च की मानें, तो एक व्यक्ति का एक्जिमा जितना बुरा होता है, फ्रैक्चर होने की उनकी संभावना उसमें उतनी ही अधिक होती है। आइए हम आपको बताते हैं इस रिसर्च के बारे में।
क्या कहता है रिसर्च-
'जर्नल ऑफ एलर्जी और क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी' में प्रकाशित इस रिसर्च की मानें, तो सामान्य लोगों की तुलना में एटोपिक एक्जिमा वाले लोगों में फ्रैक्चर होने की संभावना 13 प्रतिशत अधिक होती है। इस स्थिति वाले लोगों में सामान्य लोगों से 50 प्रतिशत अधिक हिप फ्रैक्चर, 66 प्रतिशत अधिक पेल्विक बोन फ्रैक्चर और रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर होने का जोखिम दुगना हो जाता है। सह-लेखक सिनैड लैंगान, नैदानिक महामारी विज्ञान के प्रोफेसर लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन की इस रिपोर्ट में एक्जिमा को लेकर कई और बातें भी बताई हैं। हालांकि उनका ये भी कहना है कि इसके लिए चिंता कि कोई बात नहीं है, जरूरी नहीं कि ये उस हर व्यक्ति को हो, जो एक्जिमा से पीड़ित है। लैंगान ने जोर दिया कि ये जोखिम अभी भी कम है और आगे इसे और कम किया जा सकता है। लैंगान ने कहा, "हम आश्चर्यचकित थे कि गंभीर एटोपिक एक्जिमा वाले लोगों में फ्रैक्चर का जोखिम कितना बढ़ गया है, हमें उम्मीद नहीं थी कि यह कि ऐसा भी हो सकता है।''बता दें कि लैंगान की टीम ने एटोपिक एक्जिमा और ऑस्टियोपोरोसिस को जोड़ने वाले शोध के बाद इस संभावित संबंध की जांच की है और बताया है कि एक्जिमा के एक स्टेज पर जाकर हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और फिर इनके टूटने का खतरा अधिक हो जाता है।
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क्या है एटोपिक एक्जिमा?
वहीं एटोपिक एक्जिमा की बात करें, तो ये एक ऐसी स्थिति है, जो आपकी त्वचा को लाल और खुजली करती है। यह बच्चों में आम है लेकिन किसी भी उम्र में हो सकता है। एटोपिक एक्जिमा की सूजन लंबे समय तक चलने वाली हो सकती है और समय-समय पर ये फिर से भड़क जाती है। ये लगभग 25 प्रतिशत बच्चों और लगभग 60 प्रतिशत लोगों को ये जीवन में एक बार जरूर होती है। एटोपिक एक्जिमा के लक्षणों की बात करें, तो ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। फिर भी उनके कुछ खास लक्षणों में ये शामिल हो सकते हैं-
- -रूखी त्वचा
- -खुजली, जो गंभीर हो सकती है खासकर रात में
- -लाल-भूरा-भूरा पैच, विशेष रूप से हाथ, पैर, टखने, कलाई, गर्दन, ऊपरी छाती, पलकें, कोहनी और घुटनों के मोड़ के अंदर, शिशुओं में, चेहरा पर और सिर में
- -छोटे, उठे हुए दाने, जो तरल पदार्थ को रिसाव कर सकते हैं और खरोंच होने पर फट सकते हैं
- -मोटी, फटी, पपड़ीदार त्वचा
- -कच्ची, संवेदनशील, सूजी हुई त्वचा को खरोंचने से
एटोपिक एक्जिमा अक्सर 5 साल की उम्र से पहले शुरू होती है और किशोरावस्था और वयस्कता में बनी रह सकती है। कुछ लोगों के लिए, यह समय-समय पर भड़कता है और फिर कई वर्षों तक एक समय के लिए साफ हो जाता है।
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वहीं एक्जिमा से पीड़ित व्यक्तियों में ऑस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर के पीछे सही कारण क्या है, ये अभी तक साफ नहीं हुआ है। हालांकि रिसर्च में इसके पीछे के कुछ कारणों को दिया गया है, जैसे कि
- -एक्जिमा वाले लोगों में दैनिक एलर्जी हो सकती है, जिसके कारण कुछ लोग कई चीजों से बचने लगते हैं, जैसे कि धूप में जाना और बाहर घुमना इत्यादि।
- -आहार में परिवर्तन हो सकता है। जैसे कि कुछ लोगों का मानना है कि कुछ खाद्य पदार्थ एक्जिमा को भड़काते हैं।
- -व्यायाम से बचना क्योंकि कुछ लोग, जिनमें एक्जिमा होता है उनमें पसीना उनके एटोपिक एक्जिमा से जुड़े खुजली को बढ़ा सकता है।
इन तमाम कारणों से एक्जिमा से पीड़ित व्यक्तियों की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और समय के साथ उनमें फ्रैक्चर या दर्द आदि की समस्या बढ़ सकती है। इस पर लैंगान का ये भी कहना है कि, ''भले ही आपको एटोपिक एक्जिमा है या नहीं, हर किसी को ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने में मदद करने के लिए अपनी हड्डियों को मजबूत करने के लिए कुछ व्यायाम, विशेष रूप से वजन बढ़ाने वाले व्यायाम करने चाहिए।''
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