
शिलाजीत पहाड़ों और पर्वतों पर पाया जाने वाला एक खनिज पदार्थ होता है। यह भारत के हिमालय की पहाड़ियों के अलावा गिलगित बल्टिस्तान, ति ब्बत, काराकूरम, अल्ताई और काकेसस के पर्वतों में पाया जाने वाला एक दुलर्भ पदार्थ है। यह देखने में कोयले जैसा काला, चिकना, चमकीला और ठोस लेकिन जल में घुलनशील पदार्थ होता है। इसमें तेज गंध और इसका स्वाद कड़वा होता है जबकि इसकी तासीर गर्म होती है। कई स्थानों पर यह पीले और हलके भूरे रंग में भी पाया जाता है, लेकिन चिक्तिसीय प्रयोग के लिए गहरे काले रंग वाले शिलाजीत को सर्वोत्तम माना गया है।
उपकर्मा आयुर्वेद के सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक विशाल कौशिक का कहना है कि यूं तो इसका इस्तेमाल दुनिया भर में विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में दवा के तौर पर किया जाता रहा है, लेकिन आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा में इसका खास महत्व बताया गया है। तीसरी ईसवी की सुश्रत संहिता में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है। सुश्रत संहिता के अनुसार ज्येष्ठ और अषाढ़ माह में पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर पड़ने वाली सूर्य की तेज गर्मी से इस पदार्थ का निर्माण होता है जो मानव शरीर में होने वाली कई व्याधियों का नाश करता है। आयुर्वेद में इसे बल और वीर्यवर्धक, ओजवर्द्धक और वात, पित एवं कफ से उत्पन्न तमाम बीमारियों को हरने वाला औषधि बताया गया है।
नए शोधों में शिलाजीत की उतपत्ति का स्रोत पहाड़ों पर उगने वाली कैक्टस प्रजाति की जड़ी-बूटी वाली वनस्पतियों को बताया गया है। शोधकर्ताओं ने प्रमाणित किया है कि शिलाजीत एक प्राकृतिक मल्टी सप्लीमेंट है जो विटामिंस और मिनरल्स से भरपूर है। फल्विक, ह्यूमिक एसिड, कॉपर, जिंक, आयरन, मैगनेशियम, निकेल, पोटैशियम, सिलिकॉन, सोडियम, बोरियम, सल्फर, आयोडीन, फॉस्फोरस, विटामिन सी और विटामिन बी 12 इसमें प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यानी इसमें काफी महत्त्वपूर्ण खनिज लवण मौजूद हैं जिसकी जरूरत मानव शरीर को होती है।
इसे एक डिटॉक्सिन एजेंट के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके सेवन से शरीर में मौजूद टॉक्सिन को आसानी से दूर किया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार इसके सेवन का शरीर के लगभग सभी अंगों पर सकारातमक प्रभाव पड़ता है। इसका सेवन महिला और पुरूष दोनों कर सकते हैं, लेकिन 12 साल से कम उम्र के बच्चों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
इसकी तासीर गर्म होने की वजह से सिर्फ सर्दियों में इसके इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। हालांकि मर्ज की कैफियत और चिकित्सकों की सलाह के बाद गर्मियों में भी इसका सेवन किया जा सकता है। इसे दूध या हल्के गुनगुने पानी के साथ लिया जा सकता है। हालांकि किसी भी सूरत में 24 घंटे में 150 से 300 मिलीग्राम से अधिक शिलाजीत नहीं लेना चाहिए। शिलाजीत का सेवन हमेशा इसके शुद्ध स्वरूप में प्रोसेसिंग के बाद ही करना बेहतर माना जाता है। बाजार में शिलाजीत के नाम पर ढेर सारे नकली पदार्थ भी मिलते हैं इसलिए हमेशा भरोसेमंद ब्रांड से खरीदे गए शिलाजीत का ही प्रयोग करना चाहिए, नही तो इससे लाभ के बजाए हानि भी उठानी पड़ सकती है।
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शिलाजीत के लाभ
- इसका इस्तेमाल एंटी एजिंग एजेंट के तौर पर किया जाता है।
- यह मांसपेशियों को मजबूत कर उसकी कमजोरी को दूर करने में मदद करता है।
- यह शरीर से अतिरिक्त चर्बी को कम करके वजन कम करने में मदद करता है।
- पेशाब में जलन, बार-बार और कम मात्रा में पेशाब आने के साथ ही यह गुर्दे की पथरी को भी खत्म करता है।
- यह डायबिटीज में भी कारगर है। रक्त में शर्करा को नियंत्रित करता है और डायबिटीज के कारण होने वाली शारीरिक कमजोरी को दूर करने में मदद करता है।
- इसका इस्तेमाल पुराने ज्वर, सर्दी-खांसी और अस्थमा एवं ब्रोंकाइटिस जैसे श्वास संबंधी रोगों को देूर करने में भी किया जाता है।
- सेक्सुअल पावर बढ़ाने और बढ़ती उम्र में होने वाली अल्जाइमर की बीमारी में यह खास असरकारक औषधि मानी जाती है।
- बेहोशी, थकावट, अनिद्रा, सर दर्द, शरीर में अकड़न, बांझपन, हृदय रोग, कैंसर, बाल झरना और एसिडिटी और अरूचि में भी यह समान रूप से गुणकारी है।
- त्वचा को मुलायम रखने, जलने, कटने और घावों को भरने में भी यह मददगार साबित होता हैं।
शिलाजीत का सेवन किसे नहीं करना चाहिए
थैलेसिमिया, एनिमिया, एसिडीटी, अल्सर, उच्च रक्तचाप, और पाइल्स के रोगियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। इसके सेवन से यदि शरीर में लाल दाने, सर में चक्कर और हृदय की गति बढ़ती है तो तुरंत इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। किसी भी प्रकार के रोग से ग्रस्त व्यक्ति को आयुर्वेदिक डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही इसका सेवन करना चाहिए।
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