बच्चों के कान छिदवाने में न करें कोई जल्दबाजी, जानें कान छिदवाने के बाद कैसे करें अपने बच्चों की देखभाल

बच्‍चों के कान कब छिदवाने है यह पूरी तरह माता-पिता का फैसला है। पर हम आपसे यही कहेंगे कि अपने बच्‍चों के कान छिदवाने से पहले उनके डॉक्‍टर से बात करें।
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बच्चों के कान छिदवाने में न करें कोई जल्दबाजी, जानें कान छिदवाने के बाद कैसे करें अपने बच्चों की देखभाल

कान छिदवाना (Ears Piercing) हमारे यहां एक रिवाज है , जो कि आमतौर पर बच्चे के पैदा होने के तीसरे साल के भीतर करवाया जाता है। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में माता-पिता मुंडन तक इसका इंतजार करते हैं या अपने सुविधा अनुसार बच्चों का कान छिदवाते हैं। वैसे तो यह वैदिक परंपरा है और बच्‍चे को बहुत दर्द भी होता है लेकिन आगे चलकर इसके बहुत फायदे होते हैं। माना जाता है कि ईयर लोब्‍स में एक प्‍वॉइंट होता है, जो दिमाग के बाएं और दाएं हिस्‍से को आपस में जोड़ता है। कान छेदने से दिमाग के दोनों हिस्‍सों को एक्टिव होने में मदद मिलती है और इस प्‍वॉइंट को छेदने से ब्रेन का विकास तेजी से होता है। पर कान छेदने में हुई छोटी सी गलती आपके बच्चे को आगे चलकर परेशान कर सकती है। इसलिए बच्चों के काम छिदवाने से पहले आपको इन बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए।

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क्या है कान छिदवाने की सही उम्र?

साइंस की मानें, तो बच्चों के कान तब तक नहीं छिदवाने चाहिए, जब तक कि उन्हें टेटनस की सुई आदि न लगा हो। यानी कि जन्म के लगभग 4 महीने तक तो बिलकुल भी नहीं। वहीं अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (American Academy of Pediatrics)की मानें, तो वैसे कान छिदवाने का कोई सही खास समय नहीं है, पर बच्चे के छोड़ा बड़े हो जाने तक इंतजार करना चाहिए, ताकि कान छिदवाने के बाद उसकी आसानी से देखभाल हो सके। वास्तव में, अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स मानती है कि जब तक पियर्सिंग उपकरण और तकनीकों के साथ किया जाता है, तब तक पियर्सिंग किसी भी उम्र में सुरक्षित होती है। इसके अलावा, माता-पिता या अन्य देखभाल करने वाले को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पियर्सिंग के बाद बच्चे का ठीक से ख्याल रखा जाए, ताकि कान में कोई इंफेक्शन या घाव की स्थिति पैदा न हो।

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बच्चे के कान छिदवाने से जुड़े जोखिम

कान छिदवाने से जुड़े जोखिमों की बात करें, तो संक्रमण के अलावा भी इस काम के कई जोखिम हैं। जैसे कि  केलॉइड्स का विकास  यानी  कि कान के पास टिशूज का बढ़ जाना। वहीं कान में बाली पहनाने के लिए उपयोग की जाने वाली धातु के साथ एलर्जिक रिएक्शन हो जाना और समय-समय पर इसका फिर से उभर आना। वास्तव में, एक अध्ययन में पाया गया कि 11 वर्ष की आयु के बाद कान छिदवाने पर केलोइड्स विकसित होने की अधिक संभावना होती है। इसलिए अच्छा यही होता है कि कम उम्र में ही काम छिदवा दिया जाए।

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कान छिदवाने के बाद कैसे करें बच्चे की देखभाल

पियर्सिंग ठीक से हो जाने के बाद सबसे ज्यादा जरूरी है बच्चे की सही तरह से देखभाल करना। ऐसा इसलिए क्योंकि देखभाल न होने पर ये घाव बन सकता है, कान में संक्रमण हो सकता है, मवाद बन सकता है या बच्चा खेलने में खुद को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए काम छिदवाने के बाद बच्चे का इस तरह से ध्यान रखें। जैसे कि

  • -एक कॉटन का उपयोग करके दिन में दो बार छिदवाने वाली जगह पर एंटीबायोटिक लोशन जरूर लगाएं।
  • -प्रतिदिन दो बार बाली को घुमाएं।
  • -पहले 4-6 सप्ताह के लिए बाली को न निकालें या न बदलें।
  • -अपने हाथों को अच्छी तरह से धोने के बाद ही आपको अपने बच्चे के छेदों को छूना चाहिए।
  • -खेलते समय बच्चे को बार-बार चेक करते रहें।
  • -बच्चों के बड़े होने के बाद भी काम में कुछ पहना कर रखें, नहीं को लापरवाही होने पर छेद बंद हो सकता है।

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अगर आप अपने बच्चे के कान छिदवाने जा रहे हैं, तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि पियर्सिंग करने वाला अच्छे उपकरण और तकनीकों का उपयोग करता हो। उदाहरण के लिए, पियर्सर को एक पियर्सिंग गन की बजाय एक सुई का उपयोग करना चाहिए, जो कि गहने की दुकानों में बहुत लोकप्रिय है। वहीं डॉक्टर, नर्स या अनुभवी तकनीशियन से ये काम करवाना भी ज्यादा सुरक्षित हो सकता है। वहीं काम छिदवाते वक्त ये सुनिश्चित करें कि धातु संक्रमण और त्वचा की प्रतिक्रिया के जोखिम को कम करने के लिए पियर्सर एक सोने की पोस्ट ईयररिंग जरूर इस्तेमाल करें। इसके अलावा, झुमके जैसी चीजों को बच्चों को पहनाने से बचें, क्योंकि वे किसी चीज़ पर फंस सकते हैं और आपके बच्चे के कानों को फाड़ने के जोखिम को बढ़ा सकता है।

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