'कोवैक्सीन' के क्लीनिकल ट्रायल के प्रथम चरण के परिणाम आए सामने, जानें कैसे हुआ परीक्षण

भारत की स्वदेशी कोरोना वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल 'कोवैक्सीन' के परिणामों पर सब की नजर है। आइये जानते हैं इसके परिणाम.
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'कोवैक्सीन' के क्लीनिकल ट्रायल के प्रथम चरण के परिणाम आए सामने, जानें कैसे हुआ परीक्षण


देश में फिर उम्मीद की लहर दौड़ी है। बता दें कि 'कोवैक्सीन' (भारत की स्वदेशी कोरोना वैक्सीन) के क्लीनिकल ट्रायल का रिजल्ट सामने आ गया है। इस परिणाम से लोगों को फिर एक नई राहत मिली है। बुधवार को जानकारी मिली कि इस ट्रायल वैक्सीन द्वारा शरीर में एंटीबॉडी बनाई गई है। प्रक्रिया के दौरान किसी भी तरह के साइड इफेक्ट्स देखने को नहीं मिले हैं। आइये जानते हैं परीक्षण के बारे में 

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कंपनी ने जानकारी दी कि प्रथम चरण में हुए टीकाकरण के बाद लोगों को किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा है। खास बात ये है कि जिस अंग में  इंजेक्शन लगा था वहां पर भी कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा है। ध्यान दें कि कोवैक्सीन उन तीन वैक्सीनों में से एक हैं जिन्हें सरकार से आपातकालीन इस्तेमाल के लिए आवेदन किया गया है।

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वैक्सीन को रखा 2 से 8 डिग्री सेल्सियस पर

कोवैक्सीन की सेफ्टी और इम्यूनोजेनिसिटी की जांच करने के लिए ये चरण 1 क्लीनिकल ट्रायल लिया गया। इसके लिए Covaxin (BBV152) को 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच रखा। ध्यान दें कि नेशनल इम्युनाइजेशन प्रोग्राम से जुड़े सभी कोल्ड स्टोरेज के यह टेंपरेचर अनुकूल है। इससे अलग अभी भी कोवैक्सीन को परखने और प्रभावशीलता को जांचने के लिए ट्रायल सक्रिय है।

हल्के साइड इफेक्ट खुद हो गए दूर

फेज 1 ट्रायल के दौरान होने वाले सिस्टैमेटिक साइड इफेक्ट जो बेहद हल्के थे वे खुब-ब-खुद दूर हो गए। इसके लिए मरीजों को किसी भी तरह की दवा का सेवन भी नहीं करना पड़ा। इसके अलावा यही परिणाम वैक्सीन के दूसरे शॉट देने के बाद भी देखे गए। इन साइड इफेक्ट्स में इंजेक्शन वाली जगह पर दर्द होना भी था। लेकिन ये दर्द भी खुद चला गया।

कैसे हुआ परीक्षण

इस ट्रायल में व्यक्ति को 30 जुलाई को वैक्सीन दी। इस मरीज में 4 से 5 दिन बाद कोरोना के लक्षण दिखाई दें और टेस्ट में वह पॉजिटिव निकला। लक्षण माइनर थे। मरीज को 15 अगस्त को हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। 22 अगस्त को न्यूक्लिक एसिड परिणाम नकारात्मक आए और व्यक्ति को छुट्टी दे दी गयी। बता दें कि इस नकारात्मक परिणाम से जुड़े मामले का टीके से कोई लेना देना नहीं था। ट्रायल में 375 स्वयंसेवियों को 11 अस्पतालों में विभिन्न स्थानों पर परीक्षण के लिए शामिल किया गया।

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