सावन का मौसम आते ही मानसून शुरु हो जाता है। मानसून में लोगों को पाचन से जुड़ी कई तरह की समस्याओं को सामना करना पड़ता है। पाचन क्रिया खराब होने की वजह से संतुलित और सुपाच्य भोजन ही खाने की सलाह दी जाती है। दरअसल, इस मौसम में मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है, जिसकी वजह से पाचन क्रिया पर दबाव पड़ता है। वहीं, सावन में कई लोगों द्वारा व्रत, उपवास रखा जाता हैं। ऐसे में बैंगन, गोभी व अन्य सब्जियों को खाने के लिए माना किया जाता है। माना जाता है कि यह सब्जियों पेट में गैस उत्पन्न करने का कारण बन सकती हैं। इसके अलावा, कुछ दालों को भी डाइट से बाहर रखने की सलाह दी जाती है। इस लेख में एसेंट्रिक्स डाइट क्लीनिक की डाइटिशियन शिवाली गुप्ता से जानते हैं कि सावन के महीने में किन दालों को खाने से बचना चाहिए?
सावन मे किन दालों से बचना चाहिए?
मसूर की दाल (Masoor Dal)
मसूर दाल की तासीर में गर्म मानी जाती है। आयुर्वेद के अनुसार, गर्म तासीर वाली चीजें सावन के नमी भरे मौसम में पाचन को नुकसान पहुंचा सकती हैं। ऐसे में कुछ लोगों को डाइजेशन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
उड़द की दाल (Urad Dal)
उड़द की दाल भारी और पचने में ज्यादा समय लेती है। बारिश और नमी के मौसम में यह दाल गैस, अपच और कब्ज़ जैसी समस्याएं बढ़ा सकती है। वैसे इस दाल की गर्म तासीर होती है, जिससे शरीर में जलन और पेट संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं।
चना दाल (Chana Dal)
चना दाल पेट में भारीपन कर सकती है। चना दाल फाइबर में भरपूर होती है लेकिन मॉनसून में यह जल्दी नहीं पचती। इससे ब्लोटिंग, गैस और डाइजेशन संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं। अगर चना दाल खाना ही है, तो इसे हल्के मसाले और घी के साथ लें।
राजमा (Kidney Beans)
राजमा की तासीर ठंडी होती है। मॉनसून में राजमा खाना पाचन के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। ये पेट में भारीपन, एसिडिटी और कब्ज का कारण बन सकता है। राजमा को मॉनसून में कम ही खाएं और सही तरीके से उबालें व पचाने वाले मसालों का प्रयोग करें।
कुल्थी की दाल (Moth Beans)
कुल्थी दाल की तासीर अत्यधिक गर्म होती है। कुल्थी की दाल आमतौर पर शरीर को गर्मी देने का काम करती है। यह दाल बारिश के मौसम में शरीर के संतुलन को बिगाड़ सकती है और एसिडिटी बढ़ा सकती है।
सावन में कौन-सी दालें खा सकते हैं?
- मूंग दाल (Moong Dal): हल्की, जल्दी पचने वाली और सात्विक दाल मानी जाती है।
- अरहर दाल (Toor Dal): सीमित मात्रा में सेवन किया जा सकता है यदि शरीर को सूट करे।
- चना दाल (Split Bengal Gram): व्रत न होने पर, हल्के रूप में प्रयोग की जा सकती है।
- माल्का (split yellow lentils): बेहद हल्की और वातनाशक दाल है जो पाचन में सहायता करती है।
क्या कहता है आयुर्वेद
सावन का महीना मानसून के साथ आता है, जब हवा में नमी बढ़ जाती है और शरीर की पाचन शक्ति स्वाभाविक रूप से कमजोर हो जाती है। आयुर्वेद के अनुसार, इस मौसम में वात और कफ दोष बढ़ जाते हैं। ऐसे में भारी, तैलीय और देर से पचने वाले भोजन से बचना चाहिए। कुछ दालें जैसे उड़द और मसूर वातवर्धक होती हैं और इनसे अपच, गैस, एसिडिटी, व पेट फूलने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
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सावन का महीना केवल आध्यात्मिक साधना का समय नहीं बल्कि शरीर को भी शुद्ध करने का अवसर होता है। ऐसे में हमें अपने खान-पान को मौसम और स्वास्थ्य के अनुसार बनाना चाहिए। इस मौसम में मसूर, उड़द और राजमा जैसी भारी दालों से परहेज करना चाहिए, क्योंकि ये शरीर में वात और पाचन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकती हैं। वहीं, मूंग दाल जैसी हल्की दालें का सेवन किया जा सकता है और यह शरीर के लिए फायदेमंंद भी होती हैं।
FAQ
क्या बारिश के मौसम में उड़द की दाल से पूरी तरह बचना चाहिए?
हां, उड़द की दाल भारी और पचने में कठिन होती है, इसलिए मॉनसून में इसका सेवन न करना ही बेहतर है, खासकर जिनका पाचन कमजोर है।मूंग की दाल सावन में क्यों अच्छी मानी जाती है?
मूंग की दाल हल्की, जल्दी पचने वाली और सात्विक होती है। यह पाचन में सहायक होती है और बारिश के मौसम में शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाती।क्या सावन में राजमा खाना नुकसानदेह है?
हां, राजमा पचने में समय लेता है और सावन के मौसम में अपच या गैस की समस्या बढ़ा सकता है। इसलिए इससे बचना ही बेहतर है।