हमारे शरीर का डिफेंस मैकेनिज्म बहुत मजबूत होता हैं। आंतों में 500 से ज्यादा अच्छे बैक्टीरिया मौजूद होते हैं जो नुकसानदेह बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं। इनका काम हमारे खाने को पचाना होता है और इन्हीं के कारण हमारा इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। जब हमारे पाचन तंत्र में नुकसानदेह बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है तो हमें उल्टी जैसा महसूस होता है। इसके अलावा व्यक्ति को पेट दर्द और लूज मोशन भी होते हैं। नुकसानदेह बैक्टीरिया के बढ़ने की वजह कई बार सफाई की कमी या एंटीबायोटिक के साइड इफेक्ट होते हैं, जिनके कारण यह बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं और आंतों की बाहरी परत को नष्ट करना शुरू कर देते हैं। यही कारण होता है कि हमारे शरीर में डायरिया, कॉलरा या पेचिश जैसी गंभीर बीमारियां नजर आने लगती हैं। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि प्रोबायोटिक्स किस प्रकार इन गंभीर बीमारियों से लड़ने में मदद करता है और इसके प्रमुख स्रोत क्या है। पढ़ते हैं आगे....
प्रोबायोटिक्स के प्रमुख स्त्रोत
प्राकृतिक प्रोबायोटिक्स के लिए दही एक अच्छा विकल्प है। बता दें कि दही के अंदर लैक्टोबेसिल्स नाम का बैक्टीरिया पाया जाता है। यह बैक्टीरिया स्वास्थ्यप्रद है। ये शरीर में जाकर पाचन तंत्र को दुरुस्त बनाने में मदद करता है। इसके अलावा प्रोबायोटिक्स के लिए आप पनीर का भी सेवन कर सकते हैं। इसके अंदर पर्याप्त मात्रा में यह तत्व पाए जाते हैं। ऐसे में कच्चा पनीर सेहत के लिए ज्यादा अच्छा होता है। ध्यान दें, ज्यादा पका हुआ पनीर या ग्रिल करने के बाद उसके अंदर प्रोबायोटिक्स तत्व खत्म हो जाते हैं। इसलिए कच्चा पनीर खाना ज्यादा अच्छा होगा। प्रोबायोटिक्स की मात्रा के लिए आप सोया दही और टोफू को भी इस्तेमाल में ले सकते हैं। बता दें कि बंदगोभी और ब्रेड में सॉर क्रॉट नामक फर्मेंटेड जर्मन पाया जाता है। इसके अलावा डॉक्टर्स प्रोबायोटिक्स के लिए सप्लीमेंट पाउडर भी प्रोवाइड करते हैं।
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प्रोबायोटिक्स कैसे करते हैं बचाव
प्रोबायोटिक्स मुख्य रूप से बैक्टीरिया और यीस्ट में पाए जाते हैं। यह आंतों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है और उनकी बाहरी परदों की सुरक्षा भी करता है। इसके अलावा यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मददगार साबित हुआ है। इनका काम हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करना होता है और पाचन तंत्र से संबंधित तमाम बीमारियों जैसे कि डायरिया, कोलाइटिस, एंटी कोलाइटिस इरिटेबल बॉवल सिंड्रोम (आईबीएस) और क्रॉन्स डिजीज जैसी बीमारियों से भी बचाता है। इतना ही नहीं इसका काम वजाइनल इंफेक्शन को भी दूर करना होता है।
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इन बातों का रखें ध्यान
- प्रोबायोटिक्स के लिए रोज़ प्रतिदिन दो कटोरी दही का सेवन कर सकते हैं। इसमें भरपूर मात्रा में प्रोबायोटिक्स पाया जाता है।
- दही के अंदर बैक्टीरिया को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें फ्रीज में जमाने के बाद रख दें।
- ताजा दही का सेवन 2 दिन के भीतर कर लेना चाहिए वरना अच्छे बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं।
- आजकल डिबाबंद दही छाछ या चीज़ के पैकेट के ऊपर प्रोबायोटिक्स का लेबल लगा रहता है लेकिन इसे लेकर किसी भ्रम में आने की जरूरत नहीं है। घर में तैयार ताजा दही चका ही सेवन करें। प्रोबायोटिक के नाम पर बेचने वाले किसी भी प्रोडक्ट को खरीदने से पहले उसके लेवल पर ध्यान जरूर दें।
ये लेख आकाश हेल्थकेयर की न्यूट्रिशनिस्ट अनुजा गौर से बातचीत पर आधारित है।
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