
महिला के लिए मां बनने का अहसास जीवन के सुखद अनुभवों में से एक होता है, जिसे हर महिला पाना चाहती है लेकिन गर्भावस्था का समय थोड़ा मुश्किलों भरा होता है। 9 माह के इस समय के दौरान एक महिला को कई प्रकार के शारीरिक बदलावों और तकलीफों का सामना करना पड़ता है। ऐसी नाजुक स्थिति में महिला को अपना खास ख्याल रखने की जरूरत होती है। गर्भावस्था के दौरान अगर महिलाएं अपना सही तरीके से ध्यान न रखें तो उन्हें कई सारी हेल्थ प्रॉब्लम हो सकती है इन्हीं में से एक थाइराइड की समस्या। वहीं इस बीमारी के कारण बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास पर बहुत असर पड़ता है। वह असामान्य रूप से भी पैदा हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान अगर किसी महिला को थाइराइड जैसी समस्या होती है तो उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इस बारें में ज्यादा जानने के लिए हमने दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की सीनियर डॉक्टर अंकिता सिंह से बातचीत की।
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थायराइड की समस्या होने पर दिखाई देते हैं ये लक्षण
डॉक्टर अंकिता सिंह के मुताबिक अगर कोई महिला गर्भवती है और उसे थायराइड की समस्या होती है तो उसमें निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं :
-व्यवहार में चिडचिड़ापन और उदासी।
-सर्दी में भी पसीना निकलना।
- जरूरत से ज्यादा थकान और नींद न आना।
- तेजी से वजन बढ़ना या कम होना।
-पीरियड में अनियमितता।
-मिसकैरिज या कंसीव न कर पाना।
-कोलेस्ट्रॉल बढ़ना।
-दिल का सही ढंग से काम न करना।
-शरीर और चेहरे पर सूजन।
थायराइड से बचाव
गर्भावस्था में इस तरह की समस्या को नियंत्रित करने के लिए सही समय पर इसका इलाज और व्यायाम करना बहुत ही जरूरी है। अगर महिला को पहले से ही थायरॉयड होने की जानकारी है तो उन्हें गर्भधारण करने से पहले तो जांच करानी ही चाहिए बल्कि गर्भावस्था के हर महीने भी जांच कराते रहना चाहिए। डॉक्टर के सलाहानुसार, समय-समय पर लगातार जांच करानी चाहिए और नियमित रूप से दवाओं का सेवन करना चाहिए, जिससे होने वाले बच्चे पर थायरॉयड का कोई खास प्रभाव न पड़े और गर्भवती महिला भी सुरक्षित रहें। समय रहते इस बीमारी की तरह ध्यान दिया जाए तो इस समस्या से बचना संभव है।
- भले ही आपको गर्भावस्था संबंधी कोई समस्या न हो लेकिन हर महिला को साल में एक बार गर्भावस्था की जांच जरूर करानी चाहिए।
- गर्भधारण करने से पहले एक बार जांच जरूर करवाएं और अगर गर्भावस्था की समस्या है तो उसे कंट्रोल में करने की कोशिश करें क्योंकि इसकी वजह से मिसकैरिज, एनीमिया और शिशु में जन्मजात मानसिक विकृतियों की संभावना हो सकती है।
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- जन्म के बाद तीसरे से पांचवे दिन के भीतर शिशु का गर्भावस्था टेस्ट भी जरूर करवाएं।
- डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयों को नियमित रूप से लें। समस्या ज्यादा ही गंभीर हो तो अंतिम विक्लप के रूप में आयोडीन थेरेपी या सर्जरी का इस्तेमाल किया जा सकता है।
With Inputs: Dr. Ankita Singh, Senior Consultant, Max Super Speciality Hospital, Shalimar Bagh
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