बुद्धिमान बच्चों को हर कोई कामयाब देखना चाहता है, क्योंकि वो अपने शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी मेहनत करने का काम करता है। कई शोध बताते हैं कि भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्कूल में ज्यादा से ज्यादा सफलता, मजबूत संचार कौशल, बेहतर रिश्ते, आत्म-जागरूकता, लचीलापन, बेहतर मानसिक स्वास्थ्य और दूसरे सकारात्मक परिणामों से जुड़े होते हैं। अगर देखा जाए तो माता-पिता का इसमें अहम किरदार होता है जिसमें वो अपने बच्चे की सफलता की नींव रखने का काम करते हैं फिर बच्चे समझ आने के बाद इसे सही तरीके से अपनाते हैं। ऐसे में बच्चों को बुद्धिमान बनाने की परवरिश खास हो जाती है, इसके लिए हम आपको इस लेख के जरिए बताएंगे कि आपको किन चीजों पर ध्यान देने की जरूरत होती है।
भावनाओं को पहचानने का अभ्यास करें
किसी भी बच्चे की भावनात्मक बुद्धिमत्ता के निर्माण के लिए बच्चे के माता-पिता को पहले उन्हें समझने की जरूरत होती है। सभी पैरेंट्स को अपने बच्चों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए साथ ही उसे समझना चाहिए, आपको हमेशा उन पर चर्चा करने का अभ्यास करते रहना चाहिए, जितना आप उनके लिए आरामदायक बन जाएंगे उतना ही वो भी अधिक आरामदायक प्रबंधन करेंगे। माता-पिता बच्चों को किताबों, फिल्मों या टीवी शो में देखे जाने वाले पात्रों में भावनाओं की पहचान करने में मदद कर सकते हैं। आप इसके लिए एक 'इमोशन चार्ट' (Emotions Charts)भी बना सकते हैं जिससे उनके बदलते इमोशन को आसानी से पहचान सकें।
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खुद की भावनाओं के बारे में बात करें
बच्चे अक्सर कुछ न कुछ सीखते हुए ही आगे बढ़ते हैं, पैरेंट्स उन्हें अपनी भावनाओं के बारे में बता सकते हैं या उनसे चर्चा कर सकते हैं। ये इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि आपके बच्चों के लिए ये जरूरी होता है कि आपकी भावनाएं (Emotions) क्या है आप क्या चाहते हैं उनसे और आप क्या सोचते हैं। इसका सीधा असर बच्चे के बर्ताव और भावनात्मक रूप से होता है। इसलिए आपको सिर्फ बच्चों की भावनाओं को नहीं समझना बल्कि आपको अपनी भावनाओं को भी उनके साथ साझा करना है। इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
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नकारात्मक भावनाओं को दूर करें
बच्चों को कई नकारात्मक और सकारात्मक अनुभवों से होकर गुजरना पड़ता है, लेकिन नकारात्मक भावनाओं (Negative Emotions) और अनुभव उनके लिए काफी खतरनाक हो सकते हैं। इसलिए किसी भी बच्चों के लिए उनके माता-पिता को नकारात्मक अनुभवों या भावनाओं से दूर रखना चाहिए। इसके बजाय, माता-पिता को अपने बच्चों को यह समझने में मदद करनी चाहिए कि सभी भावनाएं स्वाभाविक और सामान्य हैं और सभी तरह के अनुभवों से हमे कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। इस तरह की भावनाओं और अनुभवों के कारण बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जो बाद में एक खतरनाक रूप ले सकता है।
अपनी गलतियों को खुद स्वीकार करें
आमतौर पर बच्चों में ये बर्ताव काफी कम होता है, कि वो अपनी गलतियों को स्वीकार या उसे ठीक करने की कोशिश करते हैं। ये भी सीधा पैरेंट्स के ऊपर होता है कि वो अपने बच्चों को इस बारे में कितना सीखाते हैं। सभी पैरेंट्स को तैयार रहना चाहिए कि जब आप कोई गड़बड़ या गलती (Mistakes) करते हैं और इसे सही करने के लिए कार्रवाई भी करें और स्वीकारें। ये स्वीकार करना बच्चों को दिखाता है कि भावनात्मक बुद्धिमत्ता एक आजीवन कौशल है जिसे हर कोई समय के साथ करता रहता है।
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नए अनुभवों के बारे में बताएं
बच्चों को समय-समय पर नए अनुभवों (Experiences) के बारे में बताने की जरूरत होती है, उन्हें इस तरह के भावनात्मक और नए अनुभवों से काफी कुछ सीखने का मौका मिलता है। ये आमतौर पर देखा जाता है कि बच्चे बताए गए ऐसे अनुभवों को ज्यादा याद रखते हैं और अपने जीवन में इसका इस्तेमाल करते हैं।
बच्चे अक्सर अपने माता-पिता के द्वारा की गई चीजों पर जाते हैं, उन्हें भावनात्मक रूप से तैयार करने के लिए पैरेंट्स को काफी ध्यान देने की जरूरत होती है।
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