ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा हाल ही में किए गए एक वैश्विक अध्ययन में यह पाया गया कि भारत में उपलब्ध पैक किए हुए खाद्य और पदार्थ सबसे कम हेल्दी हैं। अध्ययन के मुताबिक, इसके अलावा इनमें सैच्यूरेटेड फैट, शुगर और नमक की मात्रा बहुत ज्यादा पाई जाती है। यूनिवर्सिटी के जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ ने विश्व भर के 12 देशों के 4 लाख से ज्यादा खाद्य और पेय पदार्थों का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि हेल्दी फूड परोसने के मामले में ब्रिटेन सूची में सबसे ऊपर है जबकि अमेरिका दूसरे और ऑस्ट्रेलिया तीसरे स्थान पर है।
अध्ययन के मुताबिक, देशों के ऑस्ट्रेलिया के हेल्थ स्टार रेटिंग सिस्टम के तहत रैंकिंग दी गई। इस सिस्टम में एनर्जी, शुगर, सैच्यूरेटेड फैट के साथ-साथ प्रोटीन, कैल्शियम और फाइबर जैसे पोषक तत्वों के स्तर का आकलन किया किया गया और उन्हें आधे (सबसे कम हेल्दी) से लेकर 5 (सबसे ज्यादा हेल्दी )तक के अंक दिए गए।
'ओबेसिटी रिव्यू' में प्रकाशित अध्ययन में यह पाया गया कि इस सूची में शीर्ष पर रहने वाले ब्रिटेन के अंक 2.83, अमेरिका के 2.82 और ऑस्ट्रेलिया को 2.81 अंक दिए गए। वहीं भारत को 2.27 जबकि चीन को 2.43 और चिली को 2.44 अंक मिले। बता दें कि चिली नीचे से तीसरे स्थान पर रहा और भारत सबसे निचले स्थान पर रहा।
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अध्ययन में बताया गया कि चीन के पैकेजड फूड और पेय पदार्थों में सैच्यूरेटेड फैट का सबसे हानिकारक स्तर पाया गया। इसके अलावा चीन में प्रति 100 ग्राम पर 8.5 ग्राम शुगर की मात्रा भी पाई गई। वहीं भारत इस मामले में दूसरे स्थान पर हैं। भारत में पैक किए हुए फूड और पेय पदार्थ में प्रति 100 ग्राम पर 7.3 ग्राम शुगर की मात्रा पाई जाती है।
अध्ययन में यह भी बताया गया कि भारत के पैकेज्ड फूड और ड्रिंक में सबसे कम एनर्जी होती है। इनमें प्रति 100 ग्राम पर किलोजूल की मात्रा 1515 केजे होती है।
अध्ययन की मुख्य लेखक एलिजाबेथ डनफोर्ड का कहना है कि विश्वभर में हम सब ज्यादा से ज्यादा प्रोसेस्ड फूड खा रहे हैं, जो कि चिंता का विषय है क्योंकि हमारे बाजारों या सुपरमार्केट में ऐसे उत्पाद भरे पड़े हैं, जिनमें खराब फैट, शुगर और नमक की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। ये फूड हमें संभावित रूप से बीमार बना रहे हैं।
उन्होंने कहा, ''हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि कुछ देश अन्य के मुकाबले बेहतर काम कर रहे हैं। दुर्भाग्यवश गरीब देश इन अस्वस्थकर फूड से होने वाले प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों को हल करने में सबसे ज्यादा पीछे हैं।''
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अध्ययन के मुख्य सह-लेखक ब्रूस नील का कहना है कि पैकेज्ड फूड लगातार विश्व की खाद्य आपूर्ति में अपना कब्जा जमा रहे हैं, जो कि बेहद ही चिंता की बात है। उन्होंने कहा, ''लाखों लोग रोजाना इन अस्वस्थकर फूड के संपर्क में आते हैं। मोटापे की समस्या इस डाइटरी सुनामी का पहला कदम है, जो बहुत तेजी से हमारी ओर बढ़ रही है।''
ब्रूस ने कहा, ''हमें एक ऐसा रास्ता तलाशना होगा, जिससे खाद्य उद्योग गुणवत्तापूर्ण भोजन की तर्कसंगत मात्रा कीबिक्री करने से लाभान्वित हो सके बजाय कि हमें वह अस्वास्थ्यकर भोजन न परोसे। मानव स्वास्थ्य के लिए कुछ अधिक प्राथमिकताएं होनी चाहिए।''
अध्ययन में पाया गया कि विश्व के कुछ बड़े फूड और ड्रिंक निर्माताओं ने अंतर्राष्ट्रीय फूड और बेवेरेज एलायंस के साथ समझौता किया है और उत्पादों में से सॉल्ट, शुगर और हानिकारक फैट की मात्रा कम करने का संकल्प लिया है। अध्ययन के निष्कर्षों में आशा जगाई है कि कंपनियां अपने उत्पादों में स्वस्थता को बेहतर बनाने के लिए मजबूर होंगी।
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