ओवरी (अंडाशय) सिस्ट की समस्या विशेष रूप से प्रजनन आयु वाली महिलाओं में तेजी से बढ़ रही है। यह सिस्ट मटर जितना छोटा हो सकता है या इतना बड़ा हो सकता है कि महिला मानो गर्भवती दिख सकती है। सिस्ट के कारण दर्द और रक्तस्राव होता है और यह ओवरी कैंसर का प्रारंभिक रूप भी हो सकता है। सिस्ट का अंतिम समुचित इलाज लैप्रोस्कोपिक लेजर तकनीक है। सिस्ट के कुछ प्रमुख प्रकार और उनके इलाज की विधियां इस प्रकार है—
एंडोमीट्रियोटिक सिस्ट
इस तरह के सिस्ट में रक्त भरा होता है। माहवारी के दौरान पीड़ित महिला को बहुत तेज दर्द सहना पड़ता है। इस सिस्ट के कारण पेल्विक (कोख या पेड़ू) में लंबे समय से दर्द, इनफर्टिलिटी और सेक्स के दौरान दर्द की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
इलाज : एंडोमीट्रियोटिक सिस्ट का उपचार समुचित रूप से लैप्रोस्कोपिक विधि से किया जाता है। लैप्रोस्कोपिक विधि से सिस्ट-वाल को हटा दिया जाता है, लेकिन कई बार सिस्ट को दूर करने के दौरान सर्जन की गलती से काफी मात्रा में सामान्य ओवरी टिश्यू भी हटा दिए जाते हैं। इस कारण ओवरी की कार्यक्षमता और बच्चे पैदा करने की क्षमता प्रभावित होती है। ऐसे सिस्ट से पीड़ित महिला को गर्भधारण करने में दिक्कत होती है। यही नहीं, इस सिस्ट से महिलाओं में बांझपन (इनफर्टिलिटी) की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। इस समस्या के समाधान में कार्बन डाइऑक्साइड लेजर काफी कारगर साबित हो रहा है। इस लेजर विधि से सिस्ट निकालने के बाद ओवरी को कोई नुकसान नहीं होता।
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पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज
ऐसे सिस्ट के ज्यादातर मामले युवा महिलाओं में सामने आते हैं। इस समस्या में गर्भधारण करने में कठिनाई होती है। पीड़िता के चेहरे, स्तन व पीठ पर पुरुषों के समान बाल निकल आते हैं। मासिक धर्म अनियमित हो जाता है।
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इलाज : ऐसे सिस्ट का आम तौर पर खान पानऔर व्यायाम व दवाओं से इलाज किया जाता है, लेकिन कुछ मामलों में या चिकित्सा की पारंपरिक विधियों से आराम न मिलने पर इसका इलाज लैप्रोस्कोपिक विधि से किया जाता है।
डर्माइड सिस्ट
प्रजनन आयु की महिलाओं में इस सिस्ट की समस्या अधिक होती है। इसमें तेज दर्द होता है इस तरह के सिस्ट अपनी संरचना में मुड़ सकते हैं, जिससे ओवरी में मरोड़ की वजह से नुकसान हो सकता है। ऐसे सिस्ट का इलाज लैप्रोस्कोपिक विधि से किया जाता है।
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जर्म सेल ट्यूमर और अन्य कैैंसर
युवा महिलाओं में ये समस्याएं ज्यादा होती हैं। इससे भविष्य में इनफर्टिलिटी की समस्या पैदा हो सकती है। ऐसे कैैंसरस ट्यूमर को लैप्रोस्कोपिक बैग में डालकर निकाला जाता है ताकि कैंसर दूसरे भागों में न फैल सके। पीड़ित महिला की ओवरी को भविष्य में प्रसव के लिए सुरक्षित रखा जाता है। इसके बाद उसे रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी दी जाती है।
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