दुनिया के सबसे मशहूर मेडिकल जर्नल 'द लैंसेंट' की एक नई स्टडी ने सभी को चौंका दिया है। द लैंसेंट की इस स्टडी में दावा किया गया है कि दुनिया के हर 5 में से एक व्यक्ति को कोरोना वायरस के गंभीर संक्रमण का खतरा हो सकता है। ये रिसर्च अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने की है, जिसमें यूके, चीन और यूएस के वैज्ञानिक शामिल थे। आपको बता दें कि कोरोना वायरस अब तक दुनिया के 213 देशों में फैल चुका है। इस वायरस की चपेट में दुनियाभर में 8,256,000 (82 लाख 56 हजार) से ज्यादा लोग आ चुके हैं। वहीं अब तक 4 लाख 45 हजार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है।
रिसर्च क्या कहती है- ध्यान से पढ़ें
द लैंसेंट ने बीती सोमवार को एक स्टडी जारी की। इस स्टजी में बताया गया है कि दुनिया का हर 5 में से 1 व्यक्ति पहले से ही किसी न किसी ऐसी बीमारी का शिकार है, जिससे कोरोना वायरस से होने वाले कोविड-19 इंफेक्शन का खतरा उसे 'गंभीर' रूप से हो। यानी इस रिसर्च में यह नहीं कहा गया है कि दुनिया का हर 5वां व्यक्ति कोविड-19 का शिकार होगा। बल्कि यह कहा गया है कि अगर कोरोना वायरस व्यापक रूप से फैलता है, तो दुनिया के हर 5वें व्यक्ति को इस इंफेक्शन के कारण गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। इन बीमारियों में- एचआईवी/एड्स, डायबिटीज, क्रॉनिक किडनी डिजीज, क्रॉनिक रेस्पिरेटरी डिजीज, कार्डियोवस्कुलर बीमारियां आदि शामिल हैं।
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दुनिया के 170 करोड़ लोगों को पहले से हैं बीमारियां
इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने बताया कि दुनिया की 1.7 अरब आबादी (कुल जनसंख्या का 22%) को पहले से ही कम से कम एक ऐसी बीमारी है, जो कोविड-19 का शिकार होने पर उनके खतरे को बढ़ा सकती है। इस संख्या में 20 साल से कम उम्र के लोग 5% शामिल हैं, तो 70 साल से ज्यादा उम्र के लोग 66% शामिल हैं। इसका अर्थ है कि बुजुर्गों को इस महामारी का खतरा बहुत ज्यादा है। रिसर्च में वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि अगर कोरोना वायरस फैलता है तो दुनिया भर में लगभग 35 करोड़ लोग इस बीमारी के इतने गंभीरता से शिकार होंगे कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ेगा। रिसर्च में यह भी बताया गया कि संक्रमण की गंभीरता का खतरा महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा है।
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वैज्ञानिक क्यों मान रहे हैं इस रिसर्च को महत्वपूर्ण?
द लैंसेंट की इस रिसर्च को वैज्ञानिक और मेडिकल जगत में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसका कारण यह है कि कोरोना वायरस अभी भी रुका नहीं है और लगातार फैलता जा रहा है। ऐसे में इस रिसर्च के आधार पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ और अलग-अलग देशों की सरकारों को अपने यहां स्वास्थ्य संबंधी इंतजाम, अस्पतालों में बेड का इंतजाम, मेडिकल स्टाफ का इंतजाम आदि करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा अगर अगले कुछ महीनों या सालों में कोविड-19 को रोकने के लिए वैक्सीन बनती है, तो इस रिसर्च के आधार पर उसके प्रोडक्शन और बंटवारे को भी सही दिशा दी जा सकती है, ताकि अधिक से अधिक लोगों को इस वायरस से बचाया जा सके और सुरक्षा प्रदान की जा सके।
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