Coronavirus: कोरोना वायरस को लेकर इबुप्रोफेन दवा का परीक्षण शुरू, 80 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है सर्वाइवल दर

कोरोना वायरस को लेकर एक बार फिर इबुप्रोफेन दवा का परीक्षण शुरू हो गया है, जिसमें 80 प्रतिशत तक सर्वाइवल दर बढ़ाने की बात कही गई है।
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Coronavirus: कोरोना वायरस को लेकर इबुप्रोफेन दवा का परीक्षण शुरू, 80 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है सर्वाइवल दर

कोरोना वायरस (Coronavirus) को लेकर पूरी दुनिया में कई वैक्सीन के परीक्षण चल रहे हैं, ऐसे में एक्सपर्ट्स पहले से मौजूद दवाओं का इस्तेमाल करने की भी कोशिश कर रहे हैं जिससे इस वायरस को मात दी जा सके। इसी कड़ी में कोरोना वायरस के लक्षणों को कम करने के लिए इबुप्रोफेन (Ibuprofen) का भी परीक्षण किया जाना है। ये दर्द निवारक दवा 80 प्रतिशत तक जीवित रहने की दर को बेहतर बनाने में हमारी मदद कर सकता है और सांस की गंभीर समस्याओं को रोकने में कारगर हो सकती है। 

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इबुप्रोफेन को लेकर पहले था विवाद

इबुप्रोफेन (Ibuprofen) को लेकर एक्सपर्ट्स देख रहे हैं कि रोगियों में फैले कोरोना वायरस के गंभीर संक्रमण को कैसे कम किया जा सके। आपको बता दें कि इबुप्रोफेन को लेकर पहले ऐसी आशंकाएं थीं कि ये कोरोनोवायरस (Coronavirus) के लक्षणों को बदतर बना सकता है, लेकिन अब इस पर वैज्ञानिक परीक्षण कर रहे हैं कि क्या यह वास्तव में कोरोना वायरस को खत्म करने में मदद कर सकती है या नहीं। इस मामले पर महामारी की शुरुआती दौर में एक फ्रांसीसी स्वास्थ्य मंत्री ने इसके इस्तेमाल के खिलाफ सलाह देने के बाद इबुप्रोफेन (Ibuprofen) को लेकर विवाद बढ़ गया था। वही, एनएचएस (NHS) ने कोरोनोवायरस से पीड़ित रोगियों को इबुप्रोफेन लेने के लिए सलाह देना बंद कर दिया है, जो कि एंटी-इंफ्लेमेटरी दर्द निवारक दवाओं से चीजें खराब हो सकती है। 

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इबुप्रोफेन और पैरासिटामोल की दी जा रही सलाह

हालांकि, यूके के मानव चिकित्सा आयोग (UK's Commission On Human Medicines) ने आंकड़ों की समीक्षा की और कहा कि अपर्याप्त सबूत थे कि इबुप्रोफेन (Ibuprofen) से लोगों के कोविड-19 के लक्षणों को बिगड़ने का ज्यादा खतरा है। लेकिन अब एक बार फिर कोरोना वायरस के लक्षण देखने पर लोगों को पैरासिटामोल और इबुप्रोफेन लेने की सलाह दी जा रही है।

सांस लेने की समस्या होगी कम?

कोरोना वायरस (Coronavirus) को लेकर नए परीक्षण केवल अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए है, न कि जो कोविड-19 के हल्के लक्षणों से पीड़ित है। मितुल मेहता, न्यूरोइमेजिंग और साइकोफार्माकोलॉजी के प्रोफेसर और किंग्स कॉलेज लंदन में सेंटर फॉर इनोवेटिव थेरेप्यूटिक्स के निदेशक (Mitul Mehta, professor of neuroimaging and psychopharmacology and director of Centre for Innovative Therapeutics at Kings College London) बताते हैं कि ये परीक्षण सिर्फ कोविड-19 के रोगियों के लिए किया जा रहा है जिसमें ये देखा जा रहा है कि क्या ये एंटी-इंफ्लेमेटरी दवा सांस लेने की समस्या को कम करेगा या नहीं।

ऐसे में इन परीक्षण के लिए उन लोगों को शामिल किया जाएगा जो लोग अभी अस्पताल में भर्ती है, लेकिन उन लोगों को इससे बाहर रखा जाएगा जिन्हें गहन देखभाल की जरूरत न हो। इस परीक्षण से ये देखा जाएगा कि रोगियों के लक्षणों को कम किया जा सकता है और इससे हमे कई फायदे होंगे। इसके साथ अस्पताल में ज्यादा समय बिता रहे लोग जल्द स्वस्थ होकर घर लौट सकते हैं। 

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'जीवित रहने की दर 80 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना'

मितुल मेहता ने आगे कहा कि हम श्वसन संकट की डिग्री को भी कम कर सकते हैं ताकि रोगियों को आईसीयू में जाने की जरूरत के बिना अस्पताल में ठीक किया जाए। लेकिन मेहता कहते हैं कि ये निश्चित रूप से यह जानवरों के अध्ययन पर आधारित है। प्रोफेसर मेहता ने कहा कि पशु तीव्र श्वसन सिंड्रोम में अध्ययन करता है, जिसमें कोविद -19 रोग का एक लक्षण दिखाता है कि इस स्थिति वाले लगभग 80 प्रतिशत जानवर मर जाते हैं। लेकिन जब उन्हें इबुप्रोफेन दिया जाता है तो उनकी जीवित रहने की दर 80 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। 

दुनियाभर में चल रहे वैक्सीन पर परीक्षण और शोध के बीच अब इबुप्रोफेन पर परीक्षण किया जा रहा है, जिससे कोविड-19 के लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है। 

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